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सीवेज सिस्टम : वाराणसी में 120 एमएलडी मलजल नहीं होता शोधित, गंगा को करता प्रदूषित

गंगा निर्मलीकरण के दावे भले ही कुछ भी किए जाएं लेकिन हकीकत यही है कि काशी में गंगा का आंचल मैला हो रहा है। प्रतिदिन 120 एमएलडी मलजल गिर रहा है। इसमें 80 एमएलडी मलजल शाही नाले का है तो 40 एमएलडी मलजल वाया वरुणा गंगा में जा रहा है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 05 Nov 2021 07:40 AM (IST)Updated: Fri, 05 Nov 2021 07:40 AM (IST)
सीवेज सिस्टम : वाराणसी में 120 एमएलडी मलजल नहीं होता शोधित, गंगा को करता प्रदूषित
वाराणसी में गंगा में जाता नगवां नाले का पानी।

जागरण संवाददाता, वाराणसी : गंगा निर्मलीकरण के दावे भले ही कुछ भी किए जाएं लेकिन हकीकत यही है कि काशी में गंगा का आंचल मैला हो रहा है। इसमें प्रतिदिन 120 एमएलडी मलजल रोज गिर रहा है। इसमें 80 एमएलडी मलजल शाही नाले का है तो 40 एमएलडी मलजल वाया वरुणा गंगा में जा रहा है। इसे लेकर एनजीटी ने एसटीपी संचालन करने वाली संस्था जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई को एक करोड़ से अधिक के जुर्माने की संस्तुति भी कर चुकी है लेकिन हालात नहीं बदले। अब भी गंगा में गंदगी गिर रही है। इसे लेकर अब उच्च न्यायालय की भी भृकुटी तनी नजर आ रही है।

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वास्तव में शाही नाला अंग्रेजों के जमाने का बना है जिसकी क्षमता 80 एमएलडी की है। वर्तमान में जनसंख्या वृद्धि की वजह से शाही नाले से 160 एमएलडी मलजल बह रहा है। इसमें 80 एमएलडी मलजल ही दीनापुर एसटीपी में शोधित होता है। शेष खिड़किया घाट के आगे सीधे गंगा में गिराया जाता है। वहीं, वरुणापार इलाके के लिए भले ही गोइठहां में 120 एमएलडी मलजल शोधन की क्षमता का एसटीपी स्थापित किया गया है लेकिन सीवर लाइन में शौचालयों का कनेक्शन नहीं होने से नालों के माध्यम से गंदगी वरुणा नदी में गिर रही है जहां से गंगा में जा रही है। वरुणापार में बनी नई सीवर लाइन में अब तक 23 हजार 400 शौचालयों का कनेक्शन हुआ है। वहीं, पूरे सारनाथ में अब तक सीवर लाइन नहीं बिछाई गई है। इन इलाकों के घरों के शौचालय जल निकासी सिस्टम से जुड़े हैं जो वरुणा को प्रदूषित कर रहे हैं। केंद्र सरकार ने ने इस इलाके में 105 करोड़ रुपये से नए सीवेज सिस्टम से घरों के शौचालयों को जोडऩे के लिए दिए थे। इसमें 50 हजार 332 शौचालयों का कनेक्शन करना था। 23 हजार चार सौ घरों के शौचालयों का कनेक्शन करने में ही पूरी रकम खर्च हो गई। करीब 27 हजार शौचालयों के कनेक्शन का काम तीन वर्ष से अटका है। संबंधित विभाग जल निगम की गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई के अफसरों से जानकारी ली जाती है तो बजट नहीं होने का रोना रोया जाता है। कमोवेश ऐसे ही हालात पुराने शहर में हुए विस्तारित इलाके का भी है। इस इलाके के लिए दीनापुर में 140 एमएलडी क्षमता की एसटीपी लगी है। इससे लहरतारा, फुलवरिया, छावनी क्षेत्र, नदेसर, मंडुआडीह, महमूरगंज आदि इलाके जुड़े हैं लेकिन इन इलाकों में भी करीब 23 हजार घरों के शौचालयों का कनेक्शन नहीं हो सका है। इन इलाकों में भी नाममि गंगे के तहत जारी बजट से शौचालयों का कनेक्शन करना था। सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़े शौचालय सोख्ता पिट, भूमिगत जल निकासी व नालों से जुड़े हैं। सोख्ता पिट भूमिगत जल स्रोत को दूषित कर रहा है। गंगा का जल स्तर भी भूमिगत जल स्रोत से जुड़ा है। ऐसे में अप्रत्यक्ष रूप से गंगा ही मैली हो रही हैं। वहीं भूमिगत जल निकासी व नालों से जुड़े शौचालय तो प्रत्यक्ष तौर पर गंगा को मैला कर रहे हैं।

गंगा एक्शन प्लान की शुरुआत

गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा निर्मलीकरण का अभियान काशी से ही शुरू हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 14 जून 1986 को यहीं के दशाश्वमेध घाट पर गंगा एक्शन प्लान की नींव रखी थी। पहले चरण में नगर में सीवेज सिस्टम को बनाने का प्रस्ताव बना। इसके तहत 80 एमएलडी का एसटीपी दीनापुर में स्थापित हुआ जिसमें अंग्रेजों के जमाने के शाही नाले को कनेक्ट किया गया। इस नाले से प्रतिदिन करीब 80 एमएलडी मलजल रोज निकलता था जो सीधे गंगा में जा रहा था। यह कार्य धीमी गति से होते हुए अपने तय समय से करीब दो साल देर से पूरा हुआ।

वर्ष 2010 में आया जेएनएनयूआरएम

जेएनएनयूआरएम के तहत वरुणापार इलाके 50 हजार घरों के लिए सीवेज सिस्टम तैयार करने का प्रस्ताव बना जिसे ट्रांस वरुणा सीवेज सिस्टम नाम दिया गया। इसी के साथ जायका के फंड से सिस वरुणा यानी पुराने शहर में के विस्तार वाले इलाके मसलन, छावनी क्षेत्र, लहरतारा, मंडुआडीह, महमूरगंज, कैंट, इंग्लिशिया लाइन, सिगरा आदि इलाके के लिए प्रस्ताव बना। यह कार्य स्वीकृति के दो साल बाद यानी 2010 में प्रारंभ हुआ लेकिन जमीन की उपलब्धता समेत विभिन्न स्थानीय रुकावटों की वजह से पूरा होने में करीब नौ साल लग गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब सांसद हुए तो वरुणापार इलाके के सीवेज सिस्टम के 120 एमएलडी एसटीपी के लिए गोइठहां में जमीन मिली। इसके बाद निर्माण ने गति पकड़ी तो 2018 में कार्य पूर्ण हुआ। कमोवेश यही हाल जायका के फंड से प्रस्तावित 140 एमएलडी सीवेज सिस्टम के लिए भी रहा। यह कार्य भी 2018 में ही पूर्ण हुआ। इतनी कवायद के बाद भी गंगा निर्मलीकरण अभी भी शहरी क्षेत्र में दूर की कौड़ी नजर आ रही है। रोजाना करीब 120 एमएलडी मलजल गंगा में सीधे तौर पर जा रहा है।

लंका व रामनगर में हालात विषम

लंका क्षेत्र के इलाके के लिए रमना में 50 एमएलडी मलजल शोधन के लिए एसटीपी बनाया गया। ट्रायल में ही प्लांट ओवरलोड हो गया। हालात ऐसे हो गए कि नगवां नाला से अब भी गंदगी गंगा में गिर रही है। ऐसे ही रामनगर का हाल है। पांच नालों से गंगा में गंदगी गिरती है जो अब भी निर्बाध जारी है।

शाही नाले को किया जाएगा डायवर्ट

गंगा में शाही नाले से खिड़किया घाट पर गिर रहे 80 एमएलडी मलजल को रोकने के लिए शहर के पुराने इलाके से गुजरे शाही नाले को डायवर्ट किया जाएगा। कबीरचौरा स्थित महिला जिला अस्पताल से शाही नाले की आधी लाइन को मोड़ कर चौकाघाट लिफ्टिंग पंप से जोड़ जाएगा ताकि दीनापुर में बने 140 एमएलडी क्षमता के नए एसटीपी तक मलजल को भेजा जा सके लेकिन यह भी कार्य कछुआ की चाल हो रहा है। कबीरचौरा इलाके में सड़क एक साल से खोदी गई है लेकिन काम अब तक पूरा नहीं हुआ।

नगर में क्रियान्वित सीवेज सिस्टम

-पुराने शहर का सीवेज सिस्टम : क्षमता-80 एमएलडी, लगात-50 करोड़

-वरुणापार सीवेज सिस्टम : क्षमता-120 एमएलडी, लगात-400 करोड़

-सिस वरुणा सीवेज सिस्टम : क्षमता 140 एमएलडी, लागत-500 करोड़

-बीएचयू के लिए भगवानपुर सीवेज सिस्टम : क्षमता 12 एमएलडी, लागत- 25 करोड़

-डीरेका का सीवेज सिस्टम : क्षमता- 10 एमएलडी, लागत-25 करोड़

-असि नाले को जोड़ता सीवेज सिस्टम = क्षमता 50 एमएलडी, लागत-145 करोड़

-रामनगर का सीवेज सिस्टम : क्षमता 12 एमएलडी, लागत-75 करोड़


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