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    भारत में पहली बार: गाय के दूध में लैक्टोफेरिन से होगा IBD का इलाज, बीएचयू में सफल परीक्षण

    Updated: Sun, 06 Apr 2025 06:00 PM (IST)

    BHU Varanasi| Institute of medical sciences | बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग ने आइबीडी के इलाज के लिए देसी गाय के ...और पढ़ें

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    देश में पहली बार गाय के दूध में लैक्टोफेरिन से होगा आइबीडी का इलाज। (तस्वीर जागरण)

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। पेट संबंधी परेशानी कई गंभीर बीमारियों की जड़ हो सकती है और इसका प्रभाव पूरे शरीर पर देखा जा सकता है। इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज यानी आइबीडी पाचन संबंधी ऐसी ही एक बीमारी है। यह बीमारी मनुष्य की आंत को प्रभावित करती है और पाचन तंत्र में दीर्घकालिक सूजन की समस्या हो सकती है।

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    इस खतरनाक बीमारी के उपचार के लिए देश में पहली बार बीएचयू के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग ने देसी गाय के दूध में पाए जाने वाले लैक्टोफेरिन का उपयोग शुरू किया है। दो माह से मनुष्यों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है, जिसके शुरुआती परिणाम भी काफी उत्साहवर्धक हैं।

    1500 से ज्यादा मरीजों का हो चुका है पंजीकरण

    गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. देवेश प्रकाश यादव ने बताया कि अभी तक यहां 1500 से अधिक मरीजों का पंजीकरण किया जा चुका है। इनमें 30 मरीजों को लेक्टोफेरिन के परीक्षण के लिए चिह्नित किया गया है। 12 मरीजों को बीमारी से जुड़ी दवा के साथ ही कैप्सूल के रूप में लैक्टोफेरिन दी जा रही है।

    बीएचयू की आइबीडी क्लिनिक में मरीजों का उपचार करते गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. देवेश प्रकाश यादव। - जागरण

    शोध में शामिल होने के लिए खानी है तीन महीने तक दवा

    शोध में शामिल मरीजों को लगातार तीन माह तक कैप्सूल खानी है। अभी तक रोगियों की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने और संक्रमण से लड़ने में मदद मिल रही है। शोध में शामिल डॉक्टर इन मरीजों की सतत निगरानी कर रहे हैं। गाय के दूध में लैक्टोफेरिन की मात्रा करीब 0.2 मिलीग्राम प्रति लीटर होती है। मरीजों पर अध्ययन के लिए विभागीय बजट से गाय के दूध का लेक्टोफेरिन अमेरिका से तैयार करवा कर मंगाया गया है।

    कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वालों को अधिक खतरा

    कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) वाले लोगों को आइबीडी की समस्या होने का खतरा अधिक होता है। प्रतिरक्षा प्रणाली आमतौर पर शरीर को उन रोगाणुओं से बचाने में मददगार होती है, जो ऐसी बीमारियों और संक्रमण का कारण बनते हैं। एक अध्ययन के अनुसार महिलाओं की तुलना में पुरुषों को इस बीमारी का खतरा अधिक होता है।

    आइबीडी के मरीजों को इसी कैप्सूल के रूप में दिया जा रहा लेक्टोफेरिन। - जागरण

    आइबीडी से पीड़ित मरीज की आंतों में सूजन हो जाती है और पाचन तंत्र संबंधी गंभीर दिक्कतें हो जाती हैं। मरीज को लंबे समय तक दवाएं खानी होती हैं। इसमें थकान, दस्त, पेट में दर्द और ऐंठन, खून या म्यूकस के साथ दस्त आना, भूख में कमी और आंतों में छाले पड़ जाते हैं।

    मरीजों में अल्सर के साथ ही एनीमिया, विटामिन बी12, विटामिन डी और कैल्शियम की कमी हो जाती है, क्योंकि आंतें इन्हें ठीक से अवशोषित नहीं कर पातीं। लंबे समय तक अल्सरेटिव कोलाइटिस रहने पर कोलन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।

    गैस्ट्रोइंटरोलाजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. देवेश प्रकाश यादव।- जागराण

    बीमारी की प्रगति रोकने में सहायक सिद्ध होगा प्रयोग

    बीएचयू आइएमएस में गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के डॉ. विनोद कुमार कहते हैं कि आंतों की सूजन आइबीडी का प्रमुख कारण बनती है। दवाएं बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने व बीमारी की प्रगति रोकने में सहायक होती हैं। दवाएं ठीक से काम करें, इसके लिए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में सुधार आवश्यक है।

    लेक्टोफेरिन के प्रयोग के प्राथमिक परिणाम वास्तव में काफी उत्साहजनक हैं, इससे मरीजों में बेहतर लाभ मिलने की उम्मीद है। बता दें कि वर्ष 2021 से बीएचयू में प्रत्येक गुरुवार को देश का चौथा आइबीडी क्लीनिक संचालित किया जा रहा है।

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