BHU के रिसर्चर ने बनाया गजब का क्लीनर, सिर्फ एक बार छिड़कने से महीने भर तक मिलेगी बैक्टीरिया-वायरस और फंगस से मुक्ति
बीएचयू के शोध अध्येता व स्टार्टअप उद्यमी डॉ. फणींद्रपति पांडेय ने एक ऐसा क्लीनर विकसित किया है जिसका एक बार छिड़काव करने के बाद प्रभावित क्षेत्र में म ...और पढ़ें

शैलेश अस्थाना, वाराणसी। अब हानिकारक बैक्टीरिया, वायरस व फंफूद से बचाव के लिए बार-बार सैनिटाइज करने की आवश्यकता नहीं होगी। अल्कोहल आधारित सैनिटाइजर से त्वचा, आंख आदि को होने वाले नुकसान से बचाव तो होगा ही, सांस के रोगियों को भी राहत मिलेगी।
बीएचयू के शोध अध्येता व स्टार्टअप उद्यमी डाॅ. फणींद्रपति पांडेय ने एक ऐसा क्लीनर विकसित किया है, जिसका एक बार छिड़काव करने के बाद प्रभावित क्षेत्र में महीने भर से अधिक समय तक बैक्टीरिया, वायरस, फंफूद आदि नहीं पनपेंगे।
डाॅ. पांडेय का यह क्लीनर नैनो सिल्वर आधारित है और इसे उन्होंने कोलाइडल नैनो सिल्वर पार्टिकल नाम दिया है। वह बताते हैं कि चांदी के नैनों कणों को पानी में घोलकर इसका छिड़काव किसी भी बड़े या छोटे धरातल पर किया जा सकता है। इसमें मिश्रित पानी तो कुछ ही देर में सूख जाता है, लेकिन चांदी के अत्यंत महीन नंगी आंखों से दिखाई नहीं देने वाले नैनो कण सतह पर चिपक जाते हैं।
चांदी के प्रभाव से पूरे प्रभावित क्षेत्र में लगभग दो महीने तक बैक्टीरिया, फंफूद या वायरस का प्रभाव नहीं होता। चांदी के अत्यंत धीमी गति से ऑक्सीकरण के गुण के कारण यह नैनो सतह काफी समय तक बनी रहती है। इस नैनो घोल का प्रयोग हैंड सैनिटाइजर के रूप में भी किया जा सकता है।
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बीआइए द्वारा अपने शोध व स्टार्ट अप बढ़ाने के लिए चेक प्राप्त करते डाॅ. फणींद्रपति पांडेय। फोटो- स्वयं
नगर निगम तथा अन्य बड़ी संस्थाओं द्वारा बड़े क्षेत्रों में किए जाने वाले सैनिटाइजेशन के लिए भी यह काफी उपयोगी है। यदि यह छिड़काव खुले क्षेत्र में किया गया है तो भी वर्षा, धूल, हवा, पदचाप आदि झेलते हुए एक माह तक प्रभावी बने रह सकते हैं।
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सूक्ष्मजीवियों को पनपने नहीं देते कोलाइडल नैनो सिल्वर पार्टिकल
चांदी के ये छोटे नैनों कण एक मीटर का एक अरबवां हिस्सा होते हैं। इन्हें देखने के लिए सामान्य सूक्ष्मदर्शी के स्थान पर इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी का प्रयोग करते हैं। चांदी की प्रकृति के अनुसार इन नैनों कणों का आयनीकरण होता है, इसलिए लंबे समय तक सतह पर बने रहते हैं और सूक्ष्मजीवी प्रतिरोधी सक्रियता बनाए रखते हैं।
सतह पर इनकी उपस्थिति से कोई भी जीवाणु, फंफूद, विषाणु नहीं पनप सकता। ये उन्हें निष्क्रिय कर देते हैं और समाप्त कर देते हैं। चांदी के नैनो कण विषाणुओं (वायरस) के डीएनए संरचना को नष्ट कर देते हैं। कूड़ों पर इनके प्रभाव को अत्यंत बेहतर पाया गया है।
प्रचलित सैनेटाइजर्स की अपेक्षा लाख गुना बेहतर
डाॅ. पांडेय बताते हैं कि अभी तक पूरी दुनिया में क्लीनर व सेनेटाइजर के नाम पर आइसोप्रोपाइल अल्कोहल, एथेनाल, एथिसिटीन आदि का प्रयोग किया जाता है। इन्हें एक बार प्रयोग करने के बाद कुछ ही देर में यह वातावरण में घुल जाते हैं। इनके घुलते ही बैक्टरीरिया, वायरस पुन: पनपने लगते हैं। फिर इन रसायनों का अधिक प्रयोग भी त्वचा व श्वसन संबंधी समस्याएं बढ़ा सकता है, लेकिन नैनो सिल्वर का एक बार कोट कर देने पर यह लंबे समय तक प्रभावी बने रहते हैं और चांदी किसी भी प्रकार से हानिकारक नहीं है।

बीएचयू के बायो-नेस्ट में साइटेक ईजी रिसर्च एवं टेक्नालाजी प्रा. लि. का लैब।
मिला अनुदान, उत्पादन आरंभ, प्रयोग में ला रहे अनेक संस्थान
डाॅ. फणींद्रपति पांडेय ने अपने शोध का पेटेंट कराने के लिए अप्लाई किया है लेकिन अभी पेटेंट मिला नहीं है। इसके बाद बीएचयू के बायो-नेस्ट में साइटेक इजी रिसर्च एवं टेक्नालाजी प्रा. लि. नाम से स्टार्ट अप आरंभ किया। केंद्र सरकार ने डीबीटी बाइरैक योजना के अंतर्गत बायोटेक्नालोजी इग्निशियन ग्रांट के रूप में 50 लाख रुपये व बिहार सरकार के स्टार्ट अप इंडिया डीआइए पटना की ओर से 20 लाख रुपये का अनुदान मिला। इसकी कीमत 80 रुपए प्रति लीटर रखते हुए मार्केट में लॉन्च किया जाएगा।

नीति आयोग की टीम के साथ डाॅ. फणींद्रपति पांडेय।
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उन्होंने ग्रेटर नोएडा में प्लांट स्थापित कर पिछले एक महीने से उत्पादन भी आरंभ कर दिया है। एक माह में लगभग एक टन नैनो सिल्वर पार्टिकल का उत्पादन हुआ है। उत्पाद गुणवत्ता को प्रमाणित करने वाली सरकार द्वारा अधिकृत प्रयोगशाला फेयर लैब प्राइवेट लिमिटेड मुंबई द्वारा इसे प्रमाणित किए जाने के बाद नेशनल एक्रीडेशन बोर्ड फार टेस्टिंग कैलिबेशन लैब द्वारा प्रमाण पत्र मिलने के बाद अब यह होम केयर, हेल्थ केयर व कृषि उद्योग के अतिरिक्त अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में प्रयुक्त होने लगा है। आइआइटी बीएचयू, डीआरडीओ, बिट्स पिलानी जैसे संस्थानों ने भी उनके उत्पाद को सराहा है।

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