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बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भगवान बुद्ध के अहिंसात्मक उपदेश को अपनाने से ही देश व समाज का विकास संभव

आषाढ़ पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ की ओर से आयोजित सारनाथ स्थित मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर में सुबह धम्म चक्क प्रवर्तन सूत्र पाठ का आयोजन किया गया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 04 Jul 2020 05:29 PM (IST)Updated: Sun, 05 Jul 2020 01:31 AM (IST)
बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भगवान बुद्ध के अहिंसात्मक उपदेश को अपनाने से ही देश व समाज का विकास संभव
बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भगवान बुद्ध के अहिंसात्मक उपदेश को अपनाने से ही देश व समाज का विकास संभव

वाराणसी, जेएनएन। आषाढ़ पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर संस्कृति मंत्रालय के तहत अंतरराष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ  की ओर से आयोजित सारनाथ स्थित मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर में सुबह धम्म चक्क प्रवर्तन सूत्र पाठ का आयोजन किया गया। इसका सीधा प्रसारण मूलगंध कुटी बौद्ध विहार मंदिर से वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से किया गया। इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से जानते हैं। इस दिन भगवान बुद्ध ने सारनाथ के हिरन पार्क के समीप अपना पहला उपदेश दिया था। उन्होंने कहा कि भगवान का उपदेश मानवीय मूल्यों व वैज्ञानिकता पर आधारित है। भगवान बुद्ध के अहिंसात्मक उपदेश को अपनाने से ही देश व समाज का विकास संभव है। तथागत ने लगभग ढाई हजार साल पूर्व ही पुरुष, महिला व गरीबों के सम्मान की भी बातें कहीं हैं। भगवान बुद्ध का उपदेश आशा व उद्देश्य पर आधारित है। यह लोगों के आत्मबल को मजबूत करता है। भगवान बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग दयालुता व प्रतियोगिता को भी दर्शाता है। मुझे 21वीं सदी में युवा दोस्तों से काफी आशा है। आज के युवा हर तरह की समस्या का समाधान करने में सक्षम हैं।

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तथागत का चार आर्य सत्य व आष्टांगिक मार्ग पूर्णतया जीवन जीने की कला है : राष्ट्रपति

वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने कहा कि तथागत का चार आर्य सत्य व आष्टांगिक मार्ग पूर्णतया जीवन जीने की कला है। भगवान बुद्ध के प्रथम उपदेश धम्म चक्र प्रवर्तन का मूल उद्देश्य है कि लोग धर्म व अहिंसा को अपनाएं और अपना जीवन स्तर बेहतर करें। कहा कि भगवान बुध का उपदेश तार्किक व व्यवहारिक है।

बुद्ध के उपदेश मानवीय मूल्यों, प्रतियोगिता व दयालुता को बढ़ावा देता है : किरेन रिजिजू

अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि भगवान बुद्ध ने अपना पहला उपदेश धम्म चक्र प्रवर्तन पालि भाषा में ऋषियों की भूमि सारनाथ में दिया था। यह भारत की उच्च संस्कृति व सभ्यता को दर्शाता है। बुद्ध के उपदेश मानवीय मूल्यों, प्रतियोगिता व दयालुता को बढ़ावा देता है। इसे अपनाने से हम एक दूसरे से सदैव जुड़े रह सकते हैं।

मंगोलिया के राजदूत कामबोध ने राष्ट्रपति के संबोधन को पढ़ा

संस्कृति मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि बुद्ध के विचार भारत की भौगोलिक सीमाओं के तोड़कर पूरे विश्व मे शांति का संदेश फैला दिया है। जिन राष्ट्रों ने भगवान बुद्ध के उपदेश का अनुसरण किया आज वह विकसित राष्ट्र बन गए हैं। वहां के लोगों का जीवन स्तर उच्च व स्वस्थ्य है। मंगोलिया के राजदूत कामबोध ने राष्ट्रपति के संबोधन को पढ़ा। इसके बाद संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की ओर से एक  बौद्ध पांडुलिपि  मंगोलिया के राजदूत के माध्यम से राष्ट्रपति को सौंपा गया। इसे मंगोलियाई मठ में सुरक्षित रखा जाएगा। इस मौके पर अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिषद के महासचिव धम्मपिया ने भी संबोधित किया।

30 लाख लोगों ने देखा धम्म चक्र प्रवर्तन सूत्र पाठ

आषाढ़ पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर सारनाथ के मूलगंध कुटी बौद्ध मंदिर  में  बुद्ध के  उपदेश धम्म चक्र प्रवर्तन सूत्र का पाठ सुबह सात बजे थेरोवाद व महायान परम्परानुसार किया गया। जिसे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विश्व के लगभग 30 लाख लोगों ने ऑनलाइन देखा। सूत्र पाठ का नेतृत्व महाबोधि सोसायटी ऑफ इंडिया के संयुक्त सचिव भिक्षु  के मेधांकर थेरो व केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान के निदेशक प्रो.  नवांग सामतेन ने किया। भिक्षु हेमरत्न, भिक्षु जीवानंद, भिक्षु कोलित, भिक्षु मैत्री शामिल थे।

मोदी के संदेश को बौद्ध भिक्षुओं ने सुना

आषाढ़ पूर्णिमा की पूर्व सांध्य पर शनिवार को बौद्ध मठों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संदेश को बौद्ध भिक्षुओं ने सुना। सारनाथ स्थित धम्म शिक्षण केंद्र के संस्थापक  भिक्षु चंदिमा ने कहा कि आषाढ़ पूर्णिमा के अवसर पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के मध्य से अंतराष्ट्रीय कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसके माध्यम से भगवान बुद्ध के विचार दुनिया में फैलाया गया। आषाढ़ पूर्णिमा बौद्ध परम्परा के लिए अति महत्वपूर्ण है। इस दिन भगवान बुद्ध अपनी माँ महामाया के गर्भ में प्रवेश किये थे। इसी दिन उन्होंने गृह त्याग किया था। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही उन्होंने सारनाथ में पांच वर्गियों को पहला उपदेश दिया था। उनके जीवन काल मे प्रथम संगीति का आयोजन हुआ था। बौद्ध भिक्षुओं का वर्षावास आषाढ़ पूर्णिमा से ही शुरू होता है।


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