वाराणसी में मच्छरों से लड़ने वाली सेना रह गई एक चौथाई
वर्ष 1982 में जहां एंटी लार्वल टीम में कर्मचारियों की संख्या 118 थी, वहीं अब यह कम होते हुए 33 पर आ गई है। ...और पढ़ें

वाराणसी (अमरदीप श्रीवास्तव)। जल जनित बीमारियों को रोकने के लिए एंटी लार्वल कर्मचारियों की नियुक्ति बीते कई वर्षों से नहीं हुई है। कम कर्मचारियों के बीच शहर को मच्छर जनित बीमारियों से बचाना स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बनी हुई है। पिछले वर्ष तकरीबन 200 लोग डेंगू की चपेट में आए थे, जबकि चार लोगों की इससे मौत हुई थी।
वर्ष 1982 में जहां एंटी लार्वल टीम में कर्मचारियों की संख्या 118 थी, वहीं अब यह कम होते हुए 33 पर आ गई है। बचे हुए आधे दर्जन कर्मचारी भी अगले छह महीने में रिटायर हो जाएंगे। रामनगर में महज छह लार्वल कर्मचारी हैं। इनमें से भी तीन कर्मचारियों का रिटायरमेंट करीब है। गंगापुर में एक भी एंटी लार्वल कर्मी नहीं है।
कर्मचारियों की कमी से संक्रमित बीमारियों को रोक पाने में स्वास्थ्य विभाग को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। शहर की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों की स्थिति और खराब है। ग्रामीण इलाकों में एंटी लार्वल व नगर निगम कर्मचारी पहुंच ही नहीं पाते।
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हालांकि डेंगू के लार्वा को शुरूआती दौर में ही नष्ट करने के लिहाज से संवेदनशील स्थानों पर एंटी लार्वल का छिड़काव किया जा रहा है। इसके लिए भीड़-भाड़े वाले क्षेत्र को चुना गया है। मसलन, रेलवे स्टेशन, अस्पताल व घनी आबादी वाले क्षेत्र। मच्छरों को पनपने से रोकने को स्वास्थ्य विभाग, निगम के साथ फागिंग अभियान की शुरूआत करेगा।

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