Karwa Chauth 2025: अखंड सौभाग्य कामना का पर्व करवा चौथ आज, पढ़ें पूजा की विधि से लेकर चंद्र को अर्घ्य देने का मुहूर्त
वाराणसी में, सौभाग्यवती स्त्रियों ने पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। उन्होंने माँ गौरी और गणेश जी की पूजा की और चंद्रोदय के बाद व्रत तोड़ा। ज्योतिषाचार्य के अनुसार, चंद्रोदय शाम 7:58 बजे हुआ। करवा चौथ पर पूरे दिन उपवास रखा जाता है और चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। द्रौपदी ने भी अर्जुन की कुशलता के लिए यह व्रत किया था।
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दिन भर निर्जला व्रत कर शाम को चलनी से चंद्रदर्शन कर, अर्घ्य दे, करेंगी पारण
जागरण संवाददाता, वाराणसी। पति की दीर्घायु एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए सौभाग्यवती स्त्रियां कार्तिक कृष्ण चतुर्थी शुक्रवार 10 अक्टूबर को करक चतुर्थी यानी करवा चौथ का व्रत करेंगी। उस दिन पूरी तरह से सज-धजकर सोलह श्रृंगार कर मां गौरी संग भालचंद्र गणेशजी की अर्चना करेंगी।
चंद्रोदय के समय चंद्रदर्शन कर व्रत संपन्न करेंगी। करवाचौथ में भी संकष्टीगणेश चतुर्थी की तरह पूरे दिन उपवास रखकर रात में चंद्रदर्शन कर चंद्रमा को अर्घ्य देने के उपरांत ही पारण करने का विधान है।
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार शुक्रवार को चतुर्थी के चंद्रमा का उदय 7:58 बजे शाम को होगा।कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी या करक चतुर्थी भी कहा जाता है। यह चतुर्थी चंद्रोदय काल व्यापिनी होती है अर्थात चंद्रोदय के समय चतुर्थी मिलने पर इस व्रत का संधान किया जाता है।
इस बार शुक्रवार 10 अक्टूबर की भोर लगभग तीन बजे चतुर्थी लग जाएगी जो अर्धरात्रि के पश्चात 12:24 बजे तक रहेगी और फिर पंचमी लग जाएगी। अतएव चंद्रोदय कालव्यापिनी चतुुर्थी शुक्रवार की शाम को प्राप्त होगी, अत: करक चतुर्थी या करवा चौथ व्रत शुक्रवार को ही किया जाएगा।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषि विभाग के आचार्य प्रो. सुभाष पांडेय ने बताया कि शुक्रवार की ब्रह्ममुहूर्त में चतुर्थी लगने के पूर्व ही कुछ मीठा आदि खाकर जल ग्रहण कर सौभाग्यवती स्त्रियां व्रत का संधान करेंगी। शाम 7:58 बजे चंद्रोदय पश्चात चंद्रदर्शन कर पारण करेंगी। सायंकाल से ही व्रती मां गौरी, भगवान भालचंद्र गणेश की पूजा-अर्चना कर सौभाग्यवती वीरावती की कथा सुनती हैं। चंद्रमा के उदित होने पर चलनी से चंद्रदर्शन कर पति के हाथों जल ग्रहण कर व्रत तोड़ती हैं।
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चहुंओर छलका पर्व का उत्साह
व्रत को लेकर गुुरुवार को हर ओर उत्साह का वातावरण रहा। सौभाग्यवती स्त्रियों ने व्रत के लिए नए वस्त्र, श्रृंगार के सामान, आभूषण के अतिरिक्त करवा, दीपक, चलनी, फल-फूल इत्यादि पूजन सामग्रियों की खरीदारी की। गुुरुवार सायं जगह-जगह हाथों में मेंहदी लगवाने के लिए स्त्रियों की भीड़ लगी रही। बहुत सी महिलाओं ने घरों में ही मेंहदी लगाई व लगवाई।
व्रत कर द्रौपदी बनीं थीं अर्जुन की संकल्प सिद्धि में सहायक
प्रो. पांडेय ने बताया कि महाभारत में वनवास काल में अर्जुन संकल्पबद्ध हो इंद्रकील पर्वत पर तप करने चले गए थे, उधर उनकी कुशलता व संकल्प सिद्धि को लेकर चिंतित द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण से इसका उपाय पूछा। भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को निर्जला व्रत रखकर भगवान गणेश की आराधना का सुझाव दिया। बताया कि भगवान गणेश सभी संकटों को काट देते हैं। इस पर द्रौपदी यह व्रत कर अर्जुन की संकल्पसिद्धि में सहायक बनीं। तभी से पति की कुशलता, दीर्घायु व सफलता के लिए विवाहित स्त्रियां यह व्रत रखती हैं। कालांतर में वीरावती की घटना से प्रेरित हो व्रतियों ने चलनी से चंद्रदर्शन की परंपरा अपना ली।
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