कबीर दास प्राकट्य दिवस : कबीर के रंग में रंगी काशी, गूंजी कबीर वाणी varanasi news
कबीर दास प्राकट्य दिवस 17 जून को है। इसके मद्देनजर आयोजनों की श्रृंखला के तहत रविवार को पूरी काशी कबीर के रंग में रंगी नजर आई। कहीं संत समागम हुआ तो कहीं शोभायात्रा निकली गई।
वाराणसी, जेएनएन। कबीर दास प्राकट्य दिवस 17 जून को है। इसके मद्देनजर आयोजनों की श्रृंखला के तहत रविवार को पूरी काशी कबीर के रंग में रंगी नजर आई। कहीं संत समागम हुआ तो कहीं शोभायात्रा निकली गई। इस मौके पर कबीर दास से जुड़े साहित्यों का विमोचन तो उमरहां उमड़ा श्रद्धालुओं रेला उमड़ा। इन आयोजनो में भजनों, संत समागमों में कबीरदास की वाणी गूंजी। सतगुरु कबीर 14वीं सदी के ऐसे संत थे जिनकी वाणी में विश्व के मंगल का संदेश छिपा है। कबीर ने मानवीय सहिष्णुता और एकात्मकता का संदेश तो दिया ही उन्होंने साहित्य विज्ञान, मनोविज्ञान और पर्यावरण का समन्वय भी किया।
यह उद्गार कबीर मठ मूलगादी के पीठाधीश्वर संत विवेक दास ने कबीर साहब की 621 वी जयंती के अवसर पर मूल गादी के तत्वावधान में आयोजित कबीर मेला के अवसर पर साहित्य संगोष्ठी में व्यक्त की। उन्होंने साखी सबद और रमैनी के अनेक उद्धरणों द्वारा अपनी बात को सिद्ध करते हुए अपनी विदेश यात्राओं का संस्मरण साझा किया। उन्होंने पाच पुस्तकों का विमोचन किया। इस दौरान उनके साथ किताब विमोचन में रामप्रसाद, राजेश भगत, प्रो. श्रद्धानंद, विवेक दास आचार्य, प्रो. सुरेंद्र प्रसाद, विजय शकर पाडेय, डा. इंदीवर, प्रो. दीपक मलिक, जिन्होंने क्रमश: कबीर साहेब, कबीर साहब के कातिल, कबीर शब्दावली, कबीर साहित्य की प्रासंगिकता, कबीरचौरा त्रैमासिक पत्रिका का विमोचन किया। तत्पश्चात भजन, सत्संग हुआ और भंडारा का आयोजन किया गया।
कबीर साहित्य में समाज सुधार का शखनाद स्वर्वेद महामंदिर धाम उमरहां में आयोजित सद्गुरु कबीर प्राकट्य समारोह में संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने कहा कि साहब कबीर के साहित्यों में जहां दर्शन, अध्यात्म, ज्ञान, वैराग्य की गूढ़ता मिलती है, वहीं उनके साहित्य में समाज सुधार का शखनाद भी है। साहब कबीर की वाणियों में उनका कालजयी व्यक्तित्व विद्यमान है और उनके उपदेश, दर्शन, सिद्धात के ज्ञान व संदेश को किसी पंथ के रूप में स्वीकार करना उनकी महान उदारता को आवरण में रखने के समान है। कहा कि कबीर किसी मत संप्रदाय के प्रवर्तक नहीं। उन्होंने संपूर्ण मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है।
संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने भक्तों को संदेश दिया कि विहंगम योग में हम केवल साहब की वाणियों का शाब्दिक प्रयोग ही नहीं करते बल्कि उनकी क्रियात्मक साधना को भी जानते हैं। हमारे हृदय में अनेक दुर्बलताएं हैं जो साहब की वाणियां इन समस्त दुर्बलताओं का त्याग करने का संदेश देती हैं, जिससे प्रेम, आनंद, विद्या के पथ पर हम चल पड़ते हैं। कहा कि कबीर साहब का मुख्य सिद्धांत बीजक है। कार्यक्रम का शुभारंभ अध्यात्म की सर्वोत्कृष्ट ध्वजा 'अ' अंकित श्वेत ध्वजा फहराकर किया गया। तत्पश्चात आश्रम के कुशल योग प्रशिक्षकों द्वारा शारीरिक आरोग्यता के लिए आसन-प्राणायाम व ध्यान प्रशिक्षण आगत योग साधकों को दिया गया।
नाचते, गाते, भजन सुनाते निकली शोभायात्रा सद्गुरु कबीर प्राकट्य महामहोत्सव का अंतिम दिवस सत्संग समारोह का सुबह सभी भक्तजन स्नानादि से निवृत्त होकर सभी भव्य शोभायात्रा में शामिल हुए। सुबह नौ बजे पुष्प व मालाओं से सजे रथ पर कबीर पंथ आचार्य 1008 पंत हजूर अर्धनाम साहेब श्वेत पोशाक धारण कर विराजमान हुए। रथ के पीछे वाहन पर धर्माधिकारी साहेब विराजित थे। संत महंत भक्त समुदाय सत्य नाम अंकित झडा लेकर चल रहे थे। सदगुरु कबीर साहेब की जय जयकार ध्वनि लगा रहे थे। शोभायात्रा में श्रद्धालु भजन गाते, नाचते, झूमते, कला कौशल की प्रस्तुति कर रहे थे। नगर भ्रमण कर पुन: आश्रम आकर शोभा यात्रा संपन्न हुई। जहा संतों महंतों का अमृत प्रवचन हुआ। इसमें महंत सुनील शास्त्री व पंथ आचार्य 1008 पंत हजूर अर्धनाम साहेब अपने आशीर्वाद वचन की वर्षा की। कहा कि सतगुरु कबीर साहेब ने जो भी मार्ग बताया उस मार्ग पर चलने से जीवन का भार उतर गया।
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