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    IIT BHU : कचरे से प्रति घंटे 400 वॉट बिजली का होगा उत्पादन, IIT बीएचयू के इंजीनियरों ने 'माइक्रोबियल फ्यूल सेल' किया तैयार

    Updated: Sun, 19 May 2024 08:24 PM (IST)

    Banaras Hindu University बता दें कि एक किलोग्राम अपशिष्ट पदार्थ में इस बैक्टीरिया का इस्तेमाल करने से 400 वाट (0.4 किलोवाट घंटा प्रति किलोग्राम) प्रति घंटा बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। आइआइटी बीएचयू के रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. आरएस सिंह ने बताया कि लैब में इलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया हर तरह का कचरे को बिजली में बदलने में समर्थ है।

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    IIT BHU : कचरे से प्रति घंटे 400 वाॅट बिजली का होगा उत्पादन

    संग्राम सिंह, वाराणसी : कचरा निस्तारण बड़ी समस्या है। पूरे देश में ऊर्जा की मांग भी लगातार बढ़ रही है। ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुन दोहन पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है। जहरीली हवा, दूषित पानी लोगों के स्वास्थ्य के लिए घातक होते जा रहे हैं।

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    आबोहवा में बढ़ा अशुद्धि का दायरा सिर्फ मानव नहीं, प्रकृति और पृथ्वी के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो रहा है। आइआइटी बीएचयू के रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग ने एलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया से कचरा निपटान के साथ ही बिजली और हाईड्रोजन गैस बनाने का तरीका खोजा है। भगवानपुर एसटीपी में विज्ञानियों को सीवर से इलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया की मदद से जैविक अपशिष्ट पदार्थ से ऊर्जा का उत्पादन करने में सफलता मिली है।

    हर तरह का कचरे को बिजली में बदलने में समर्थ

    एक किलोग्राम अपशिष्ट पदार्थ में इस बैक्टीरिया का इस्तेमाल करने से 400 वाट (0.4 किलोवाट घंटा प्रति किलोग्राम) प्रति घंटा बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। आइआइटी बीएचयू के रासायनिक इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. आरएस सिंह ने बताया कि लैब में इलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया हर तरह का कचरे को बिजली में बदलने में समर्थ है। उत्पादित बिजली को स्टोर करने के लिए माइक्रोबियल फ्यूल सेल (एमएफसी) का माडल तैयार किया गया है।

    सेल बनाने में 50 प्रतिशत खर्च प्रोटान एक्सचेंज मेंब्रेन पर होता है। संस्थान के मटेरियल साइंस विभाग के डा. चंदन उपाध्याय की मदद से सस्ता मेंब्रेन भी विकसित किया गया है। इसकी कीमत बाजार में उपलब्ध मेंब्रेन से 17 गुना कम है और सिर्फ 300 रुपये में सेल तैयार किया गया है।

    भविष्य में माइक्रोबियल फ्यूल सेल को सामान्य बैट्री में उपयोग किया जा सकता है। फ्यूल सेल कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। घर में ही अपशिष्ट का उपयोग कर ऊर्जा प्राप्त होगी। यह शोध दिसंबर 2023 में अमेरिका के जर्नल इन्वायरमेंट साइंस ने प्रकाशित हो चुका है।

    फ्यूल सेल है प्रकृति आधारित प्रक्रिया, कोई दुष्प्रभाव नहीं

    प्रो. आरएस सिंह ने बताया कि माइक्रोबियल फ्यूल सेल प्रकृति आधारित प्रक्रिया है और इसका कोी दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। इसे एनोरोबिक रिएक्शन भी कहते हैं। इलेक्ट्रान को सर्किट में फ्लो कराकर बिजली बनाते हैं।

    हाइड्रोजन आयन को भी हाइड्रोजन गैस में बदला जा सकता है जो ऊर्जा का प्रमुख साधन है। कचरे की बिजली से विभाग की लैब में छोटा बल्ब जलाकर देखा गया है, जबकि बड़े स्तर पर उत्पादन हो तो बल्ब, पंखा और दूसरे उपकरण भी चलाए जा सकते हैं।

    ऐसे बनती है बिजली 

    एमएफसी एनोड और कैथोड की प्रणाली का उपयोग करते हैं। इलेक्ट्रोड जो करंट को अंदर या बाहर प्रवाहित करते हैं। एमएफसी सिस्टम में एक एनोड कक्ष और एक झिल्ली के जरिए अलग किया गया, इससे बैक्टीरिया एनोड पर बढ़ने लगते हैं। इलेक्ट्रोजन बैक्टीरिया सब्सट्रेट्स (कार्बनिक पदार्थ) को हाइड्रोजन आयन, इलेक्ट्रान और कार्बन डाइआक्साइड में परिवर्तित कर देती है। इलेक्ट्रान को सर्किट में प्रवाहित करने पर बिजली का उत्पादन होता है।

    कचरे से अभी ऐसे बनती है बिजली 

    एकत्र कचरे को एक कुएं में डंप किया जाता है। कुएं से निकली गैस को प्यूरीफायर तक पहुचाते हैं, फिर इस इस कंटेनर में कुएं से निकली गैस को शुद्ध किया जाता है। शुद्ध हुई गैस से प्लांट में टरबाईन घुमाकर बिजली जनरेट किया जाता है। प्लांट में जनरेट बिजली को आवश्यकता के अनुसार वाट में परिवर्तित किया जाता है।