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    काशी में जन्मे महान दार्शनिक डा. भगवान दास को देश के पहले भारत रत्न प्राप्त होने का गौरव

    By Saurabh ChakravartyEdited By:
    Updated: Wed, 12 Jan 2022 07:10 AM (IST)

    काशी ने देश को कई रत्न दिए। उन्हीं में से एक रत्न डा. भगवान दास (जन्म 12 जनवरी वर्ष 1869 निधन 18 सितंबर 1958 को) का भी नाम शामिल है। काशी के इस महान दार्शनिक को देश का पहला भारत रत्न होने का गौरव प्राप्त है।

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    काशी ने देश को कई रत्न दिए। उन्हीं में से एक रत्न डा. भगवान दास का भी नाम शामिल है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी : काशी ने देश को कई रत्न दिए। उन्हीं में से एक रत्न डा. भगवान दास

    (जन्म : 12 जनवरी वर्ष 1869, निधन : 18 सितंबर 1958 को) का भी नाम शामिल है। काशी के इस महान दार्शनिक को देश का पहला भारत रत्न होने का गौरव प्राप्त है। वर्ष 1955 भारत रत्न की उपाधि देने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने प्रोटोकाल तोड़ते हुए उनका पैर छूकर आशीर्वाद लिया। जब उन्हें प्रोटोकाल का याद दिलाया गया तो उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति होने के कारण डा. भगवान दास को भारत रत्न दिया और सामान्य नागरिक होने के नाते पैर छूकर आशीर्वाद लिया। ऐसे भारत रत्न थे डा. भगवान दास, जिनके आगे राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री भी सिर झुकाते थे।

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    विद्वान व दार्शनिक डा. भगवान दास का जन्म 12 जनवरी वर्ष 1869 को काशी के प्रतिष्ठित माधवदास और किशोरी देवी के परिवार में हुआ था। उनके अध्ययन और लेखन की परिधि बड़ी व्यापक थी। 18 वर्ष में एमए कर लिया था। समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, वैदिक, पौराणिक साहित्य, दर्शन शास्त्र सहित अन्य विषयों पर गहरी पकड़ थी। कार्यक्षेत्र हमेशा काशी रही। कई वर्षों तक वह केंद्रीय विधानसभा के सदस्य रहे। हिंदी के प्रति अनुराग के कारण कई साहित्यिक संस्थाओं से भी जुड़े रहे। विद्यापीठ, नागरी प्रचारिणी सभा-काशी, हिंदी साहित्य सम्मेलन से भी उनका बहुत गहरा संबंध था।

    विद्यापीठ की स्थापना में अहम भूमिका

    महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की स्थापना में भी डा. भगवान दास की अहम भूमिका रही। यही नहीं वह विद्यापीठ के प्रथम आचार्य और कुलपति बने। ²ढ़ निश्चय, अथक प्रयास, अनेक झंझावात व विरोधों का सामना करते हुए उन्होंने विद्यापीठ को प्रगति के मार्ग पर प्रशस्त किया।

    बीएचयू का मोनो डा. भगवान दास की कल्पना का देन

    महामना पं. मदन मोहन मालवीय भी समय-समय पर डा. भगवान दास से परामर्श लेते रहते थे। बीएचयू का मोनो भी डा. भगवानदास की कल्पना की देन है।

    देश के लिए छोड़ा डिप्टी कलेक्टर का पद

    उन्होंने देश की आजादी के लिए डिप्टी कलेक्टर पद को भी छोड़ दिया और असहयोग आंदोलन में कूद पड़े, जबकि उस समय डिप्टी कलेक्टर का रूतबा होता था।

    सीएचएस की स्थापना में भी भूमिका

    वर्ष 1898 में उन्होंने सेंट्रल हिंदू स्कूल (सीएचएस) की स्थापना में एनी बेसेंट के साथ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 1899 से 1814 तक थियोसाफिकल सोसाइटी के संस्थापक सदस्य के साथ आनरेरी सेक्रेटरी (मानद सचिव) के रूप में कार्य किया।

    बनारस नगर पालिका के रहे चेयरमैन

    उनके प्रपौत्र बीएचयू के डा. पुष्कर रंजन ने बताया कि डा. भगवान दास 1923 से 24 तक बनारस नगर पालिका के चेयरमैन भी रहे। देश के इस महान सपूत का निधन 89 वर्ष की आयु में 18 सितंबर 1958 को हुआ।

    उनके नाम पर विद्यापीठ में पुस्तकालय

    डा . भगवान दास जीवनपर्यंत चिंतन, मनन, लेखन करते रहे। इसे देखते हुए काशी विद्यापीठ परिसर में उनके नाम पर केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना की गई है।

    विद्यापीठ में नई प्रतिमा लगाने का प्रस्ताव

    विद्यापीठ प्रशासन ने केंद्रीय लाइब्रेरी के सामने डा. भगवान दास मूर्ति लगवाई थी। एक दशक पहले चोरी हो गई। इसे देखते हुए उनके प्रपौत्र डा. पुष्कर रंजन नई प्रतिमा लगाने का निर्णय लिया है। विद्यापीठ की कार्यपरिषद ने इसकी स्वीकृति दे दी है। ऐसे मेें इसी माह मेें प्रतिमा लगने की संभावना है।