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    काशी में नारियल के छिलके से मिट्टी तक, स्थानीय निकाय नारियल के कचरे को पुनर्चक्रित कर प्राप्‍त कर रहे लाभ

    By Abhishek sharmaEdited By: Abhishek sharma
    Updated: Wed, 31 Dec 2025 03:36 PM (IST)

    ओडिशा के पुरी, उत्तर प्रदेश के वाराणसी और आंध्र प्रदेश के तिरुपति जैसे धार्मिक स्थल मंदिर के नारियल कचरे को संसाधित कर रहे हैं। आवास और शहरी मामलों के ...और पढ़ें

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    नार‍ियल का बेहतर प्रयोग कर उसे र‍िसाइक‍िल क‍िया जा रहा है।

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। ओडिशा के पुरी, उत्तर प्रदेश के वाराणसी और आंध्र प्रदेश के तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों ने मंदिर से निकलने वाले नारियल के कचरे को संसाधित करने के लिए विशेष सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएं स्थापित की हैं। 

    वाराणसी में नारियल के छिलके से मिट्टी और रेशे प्राप्त करने का लाभ अब शुरू हो चुका है। भारत के शहरी स्थानीय निकाय नारियल कचरे को पुनर्चक्रित करके आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ प्राप्त कर रहे हैं। ओडिशा के पुरी, उत्तर प्रदेश के वाराणसी और आंध्र प्रदेश के तिरुपति जैसे धार्मिक स्थलों ने मंदिर से निकलने वाले नारियल कचरे को संसाधित करने के लिए विशेष सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाएं स्थापित की हैं।

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    आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (MoHUA) की पहल मंदिर के नारियल कचरे को स्थायी आजीविका और हरित संपदा में परिवर्तित कर रही है। हरित डी-फाइबरिंग इकाई नारियल कचरे को गंधहीन खाद में बदल रही है, जिससे किसानों की आय और स्थानीय हरित रोजगारों को बढ़ावा मिल रहा है। पीपीपी इकाइयां नारियल कचरे को कॉयर और खाद में संसाधित कर रही हैं।

    एकीकृत नारियल कचरा प्रसंस्करण इकाई से नारियल कचरे को कोकोपीट और कॉयर में परिवर्तित कर रही है, जिससे बायो-सीएनजी और चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल रहा है। शून्य लागत वाला नारियल कचरा मॉडल प्रतिदिन नारियल कचरे को कॉयर, कोकोपीट और जैविक खाद में संसाधित कर रहा है, जिससे कचरे को लैंडफिल में जाने से रोका जा रहा है।

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छ भारत मिशन के तहत, भारत ने कचरे को एक संसाधन में बदलने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। तटीय शहरों में नारियल का कचरा अब चक्रीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन चुका है। पर्यटक स्वच्छ और सुरक्षित पर्यटन स्थलों की तलाश में तटीय शहरों की ओर आकर्षित हो रहे हैं, और नारियल पानी समुद्र तट पर एक लोकप्रिय पेय बन गया है।

    नारियल का कचरा अब "हरित अपशिष्ट" से एक बहुमूल्य संसाधन में तब्दील हो चुका है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, शहरी गीले कचरे में नारियल के छिलके का हिस्सा 3-5% होता है। कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल उत्पादन में अग्रणी हैं। भारत का नारियल उत्पादन वैश्विक स्तर पर धूम मचा रहा है, जिसमें 2023-24 और 2024-25 में कुल उत्पादन 21,000 मिलियन यूनिट से अधिक होने की संभावना है।

    सरकारी योजनाएं नारियल के कचरे को आर्थिक रूप से बढ़ावा दे रही हैं। एसबीएम-यू 2.0 के तहत, उद्यमियों और शहरी स्थानीय निकायों को 25-50% केंद्रीय वित्तीय सहायता मिल रही है। गोबर्धन योजना के तहत 500 नए 'कचरा-से-धन' संयंत्र स्थापित किए जा रहे हैं, जो कचरे को लाभदायक बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।