... तो क्या स्वामी शिवानंद को हो गया था पहलगाम हमले का पूर्वाभास, शिष्यों को बुलाकर कही थी ये बात
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल हुए आतंकी हमले के कुछ घंटे पूर्व तक स्वामी शिवानंद अपने 25 शिष्यों के समूह के साथ वहीं थे। उन लोगों को 23 अप्रैल को पहलगाम से निकलना था लेकिन 22 की सुबह ही स्वामीजी ने शिष्यों को बुला कर कहा सभी लोग अभी यहां से निकल लो यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा है।

जागरण संवाददाता, वाराणसी। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल हुए आतंकी हमले के कुछ घंटे पूर्व तक स्वामी शिवानंद अपने 25 शिष्यों के समूह के साथ वहीं थे। उन लोगों को 23 अप्रैल को पहलगाम से निकलना था लेकिन 22 की सुबह ही स्वामीजी ने शिष्यों को बुला कर कहा, सभी लोग अभी यहां से निकल लो, यहां कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
इसके बाद सभी शिष्य सुबह लगभग 10 बजे ही होटल खाली कर निकल गए और कटरा आ गए। वहां धर्मशाला में रुके और फिर स्वामी जी ने 25 अप्रैल को वैष्णो माता के दर्शन के दर्शन-पूजन के बाद स्वामीजी 27 अप्रैल को काशी आ गए। शिष्यों का कहना है कश्मीर की ठंड और मौसम के हेरफेर से शायद उनको सांस संबंधी समस्या हो गई होगी।
अमेठी निवासी बाबा के शिष्य धर्मपाल यादव ने बताया कि मेरा सौभाग्य रहा कि पूरा दो महीना मेरा स्वामीजी के साथ ही व्यतीत हुआ, महाकुंभ के बाद कश्मीर यात्रा के समय भी उनके साथ रहे। बताए कि स्वामीजी आठ अप्रैल को काशी से दिल्ली पहुंचे। वहां प्रजापिता ब्रह्मकुमारी संस्था के लोगों के आग्रह पर उनके आश्रम में रुके।
10 को हम सभी लोग दिल्ली से कटरा के लिए प्रस्थान किए और वहां पहुंचकर धर्मशाला में रुके। फिर कश्मीर आ गए। वहां सबके साथ बाबा ने नौदुर्गा मंदिर, शंकराचार्य मंदिर, सारिका देवी मंदिर में दर्शन-पूजन किया। पहाड़ियों पर बिना किसी की सहायता स्वयं ही चढ़कर गए।
इसके बाद सब लोग सोनमर्ग, गुलमर्ग, भोजमल हुए 21 अप्रैल को पहलगाम पहुंचे। वहां घूमकर 23 को वापस होना था लेकिन बाबा सुबह ही सबसे कहा कि यहां कुछ ठीक नही होेने वाला है। आप सब लोग यहां से अभी चलिए। इसके बाद सब लोग अपनी ट्रैवेलर से 23 की सुबह वापस कटरा आ गए।
धर्मपाल ने बताया कि 24 अप्रैल को हम लोगों ने श्रीवैष्णो माता के दर्शन किए, बाबा न कहा कि वह कल जाएंगे यानी 25 अप्रैल को बाबा के दर्शन करने के बाद सभी लोग वापस दिल्ली आ गए और 27 को स्वामीजी काशी आ गए।
काश मैं स्वामीजी का आग्रह मान लेता और छोड़कर नहीं जाता, फूट-फूट कर रो पड़े टुलटुल
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सिलीगुड़ी से रविवार की शाम सामुदायिक भवन पहुंचे टुलटुल पाल स्वामीजी की पार्थिव देह देख फूट-फूट कर रो पड़े। बोले, काश मैं स्वामीजी की बात मानकर 28 अप्रैल को रुक गया होता।
टुलटुल भी बाबा के साथ कश्मीर यात्रा पर जाने वाले शिष्याें में शामिल थे। वह स्वामीजी को दिल्ली से काशी तक छोड़ने आए थे। 27 को यहां पहुंचने के बाद 28 अप्रैल को जब वापस जाने लगे तो बाबा ने उनसे एक दिन और रुक जाने का आग्रह किया।
टुलटुल ने बताया कि बाबा टिकट कन्फर्म हो गया है। इस पर स्वामीजी ने निराश स्वर में कहा कि, टिकट कन्फर्म हो गया है तो फिर पता नहीं हो या न हो, ठीक है तब जाओ, वैसे रुक जाते तो हमें अच्छा लगता। लेकिन टुलटुल स्वामीजी को प्रणाम कर चले गए।
अब जब यहां पहंचे तो उन बातों को याद कर फूट-फूट कर रोने लगे, बोले इतना प्यार तो कभी पिता ने नहीं किया जितना स्वामीजी हम लोगों को करते थे। काश, उस दिन उनकी बात मान लेता तो शायद उनकी कुछ और सेवा कर पाता।

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