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    दाराशिकोह ने यहां संस्कृत, वेदांग, दर्शन का लिया था ज्ञान, शहजादे के आग्रह पर लिखी गई थी 'विराट विवरणम्'

    By Abhishek SharmaEdited By:
    Updated: Sat, 23 Nov 2019 01:17 PM (IST)

    देववाणी संस्कृत में रुचि के कारण मुस्लिमों के काशी आने की परंपरा रही है। संस्कृत भाषा के आकर्षण से मुगल भी अछूते नहीं थे।

    दाराशिकोह ने यहां संस्कृत, वेदांग, दर्शन का लिया था ज्ञान, शहजादे के आग्रह पर लिखी गई थी 'विराट विवरणम्'

    वाराणसी [मुहम्मद रईस]। देववाणी संस्कृत में रुचि के कारण मुस्लिमों के काशी आने की परंपरा रही है। संस्कृत भाषा के आकर्षण से मुगल भी अछूते नहीं थे। सत्रहवीं शताब्दी में संस्कृत, वेदांग, दर्शन आदि की ज्ञान पिपासा लेकर शंहशाह शाहजहां के पुत्र दारा शिकोह भी बनारस आए थे। उन्होंने यहां आकर न सिर्फ संस्कृत सीखी, बल्कि कई संस्कृत ग्रंथों का फारसी में अनुवाद भी किया। 

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    संस्कृत सीखने के लिए जब मुगल शहजादा दारा शिकोह पंडित रामनंदपति त्रिपाठी के यहां पहुंचे तब भी विरोध के स्वर मुखर हुए थे। इस पर पंडित रामनंदपति ने कहा था कि, 'ज्ञान की पिपासा लेकर ड्योढ़ी पर आए किसी भी व्यक्ति को शिक्षा का दान देना ही ब्राह्मणत्व है।' बाद में दारा शिकोह के कहने पर ही पंडित रामनंदपति ने 'विराट विवरणम्' लिखी। दारा मुगल राजकुमारों में सबसे अलग थे। उन्होंने अपना जीवन वेदांतिक और इस्लामिक अध्यात्म में समन्वय बिठाने में समर्पित कर दिया। संस्कृत सीखकर उन्होंने उपनिषद, गीता और योग वशिष्ठ का फारसी अनुवाद किया। ये अनुवाद ईरान होते हुए यूरोपियन देशों तक पहुंचे जहां इनके अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में अनुवाद हुए और वहां के लोग संस्कृत की समृद्ध परंपरा से परिचित हुए। दारा शिकोह के नाम पर ही मैदागिन के पास का यह क्षेत्र आज भी दारानगर के नाम से जाना जाता है। 

    दारा की मौत के बाद सशंकित था परिवार 

    -वर्तमान में पंडित कमलापति त्रिपाठी परिवार के पूर्वज हैं पं. रामनंदपति त्रिपाठी। पंडित कमलापति त्रिपाठी के करीबी रहे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ से सेवानिवृत्त प्रो. सतीश राय बताते हैं कि 30 अगस्त 1659 को दारा शिकोह की मौत के बाद औरंगजेब बनारस आया था। उसने पंडित रामनंदपति त्रिपाठी के घर से कुछ ही दूर डेरा डाला। परिवार इसलिए चिंतित था, क्योंकि दारा ने यहीं से संस्कृत सीखी थी। औरंगजेब जब वहां सराय बनावा रहा था तो बार-बार दीवार टूट जा रही थी। इस पर किसी ने उसे पंडित जी से सलाह लेने की बात कही। उसने संदेशा भेजवाया। पंडित रामनंदपति त्रिपाठी ने गंगा जल से गारा बनवाने की सलाह दी। उस दौर में दशाश्वमेध घाट से मश्क में भरकर गंगा जल आता था। सराय बन जाने के बाद बातचीत का सिलसिला भी आगे बढ़ा। बाद में औरंगजेब ने इस क्षेत्र में काली मंदिर का भी निर्माण कराया।