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    Cyber Crime: साइबर अपराधियों को गढ़ बन रहा बनारस, फर्जी कंपनी का खुलासा

    Updated: Sat, 31 May 2025 11:25 AM (IST)

    वाराणसी में साइबर ठगी का जाल बढ़ता जा रहा है जहाँ CBI ने छापा मारकर एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह का पर्दाफाश किया। फर्जी कंपनियों के माध्यम से क्रिप्टो करेंसी में निवेश के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा है। गिरोह के सदस्य फर्जी सिम कार्ड और बैंक खाते बनाकर युवाओं को लालच देकर ठगी का शिकार बनाते हैं।

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    साइबर ठगी के कई मामले में युवकों को किया गया गिरफ्तार। जागरण

    जागरण संवाददाता, वाराणसी। धर्म की शिक्षा की नगरी वाराणसी साइबर ठगी का गढ़ बनती जा रही है। सीबीआइ की दिल्ली टीम ने यहां छापा मारकर अंतरराष्ट्रीय साइबर ठगों के गिरोह के प्रमुख केंद्र का राजफाश किया। गिरोह के तीन प्रमुख सदस्यों को गिरफ्तार किया। इसके पहले भी यहां से कई सक्रिय साइबर ठग पकड़े गए हैं।

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    बीएसजी नाम की फर्जी कंपनी ने क्रिप्टो कैरेंसी में निवेश के बहाने ठगी करने वाले गैंग के सरगना के साथ पुलिस ने रामनगर के गोला घाट के दानिश खान को गिरफ्तार किया था। ठगों ने बस्डग्लोबल डाट काम, डब्ल्यूडब्ल्यू डाट एमबीएसीवर्ल्ड डाट काम नाम से फर्जी वेबसाइट बनाकर बीएसजी नाम की कंपनी शुरू की थी जिसका इसका आफिस रामनगर में था।

    रामनगर के भीटी मच्छरहट्टा के नवनीत सिंह, शुभम मौर्या, पंचवटी के विकास नंदा, गोलाघाट का मो. दानिश खान, रामेश्वर पंचवटी के सत्यम पांडेय को सुपरवाइजर बनाया गया। इन लोगों ने स्थानीय युवकों को अच्छा वेतन और कमीशन का लालच देकर नौकरी पर रखा और इनके जरिए वाराणसी और आसपास के जिलों के अलावा बिहार, झारखंड, उत्तराखंड के लोगों को शिकार बनाया है। ठगी के शिकार हुए लोगों की संख्या लगभग तीन हजार है। आशंका है कि ठगी की रकम 50 करोड़ रुपये तक हो सकती है।

    अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक के क्रेडिट कार्ड से 34 लाख रुपये की साइबर ठगी करने के मामले में विकास नगर कालोनी चांदपुर निवासी सौरभ कुमार पटेल, पंजाब के संगरूर जिले के धूरी गेट निवासी हैप्पी सिंह को पुलिस ने पकड़ा था।

    इस मामले में मंडुवाडीह थाना क्षेत्र के चांदपुर इंडस्ट्रीयल स्टेट निवासी पंकज प्रजापति व महेशपुर निवासी संदीप भारती शामिल रहेे। पुलिस को साइबर ठगों के वाराणसी में बड़े नेटवर्क का पता चला। चौबेपुर थाना क्षेत्र के शिवदशा निवासी वंशनारायण सिंह के साथ 11.5 लाख की साइबर ठगी हुई थी।

    ठगी करने वाले उत्तराखंड के देहरादून निवासी अंकित भारद्वाज को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था। उसने वाराणसी के लोहता के धमरिया निवासी अली हुसैन और शकील अहमद की मदद से एक महीने में जमानत हासिल कर लिया। अंकित भारद्वाज ने जमानतदारों को रुपयों की लालच देकर धमरिया के सुहेल (25 वर्ष) की मदद से जमानतदारों का फर्जी आधार कार्ड बनवाकर अदालत में जमानत के लिए प्रस्तुत किया।

    वाराणसी में सब मिल जाता है आसानी से

    साइबर ठगों के वाराणसी को गढ़ बनाने की बड़ी वजह यह है कि यहां उन्हें सब कुछ आसानी से मिल जाता है। गिरोह के लिए जरूरी पढ़े-लिखे युवक मिल जाते हैं। गिरोह के सदस्य आसपास के गांवों, जिलों में जाकर लोगों को तरह-तरह से बरगलाकर फर्जी सिम कार्ड और बैंक खाता हासिल कर लेते हैं।

    यहां देश-दुनिया से आने वाले लोगों को बीच उन्हें छुपने के लिए ठिकाना आसानी से मिल जाता है। देश के हर हिस्से से यहां तक आने-जाने का इंतजाम मिल जाता है। बिहार में बड़ी संख्या में साइबर ठगों का गिरोह सक्रिय है। हर स्थान के गिरोह की ठगी का तरीका अलग-अलग है। बिहार से वाराणसी नजदीक होने की वजह से भी यहां ठगों से सक्रिय होने की वजह है।

    कई स्तर पर काम करता है साइबर ठग गिरोह

    साइबर ठगों का नेटवर्क कई स्तर पर काम करता है। सबसे पहले फर्जी सिमकार्ड और बैंक खाता का इंतजाम करना होता है। इसके लिए एक टीम होती है जो अलग-अलग तरीका अपना लोगों को धोखे में रखकर या लालच देकर हासिल करती है।

    ठगी का शिकार बनाने के लिए लोगों की व्यक्तिगत जानकारी जुटानी होती है जिसे एक टीम अंजाम देती है। एक टीम लोगों को फोन और मैसेज करके ठगी का जाल बुनती है। जाल में फंसने के बाद साइबर ठगों की एक टीम उससे रुपये ऐंठ कर दो या तीन बैंक खातों में पीड़ित से ट्रांसफर कराती है।

    इसके बाद इंटरनेट बैंकिंग की एक्सपर्ट टीम उसे बेहद कम समय में सौ से अधिक बैंक खातों तक पहुंचा देती है। इन खातों को संचालित करने वाले गिरोह से जुड़े सदस्य उन रुपयों को निकालते हैं या विदेशों में भेजकर क्रिप्टो कैरेंसी या गेमिंग एप में निवेश करते हैं। अंत में एक टीम सारे रुपये को इकट्ठा करके गिरोह संचालित करने वाले तक पहुंचा देती है। हर टीम के सभी सदस्य का कमीशन तय रहता है।