BHU में पीएचडी प्रवेश में अनियमितता पर कमेटी गठित, जांच शुरू होने में देर
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में हुई अनियमितताओं की जांच यूजीसी जल्द शुरू करेगा। जांच कमेटी गड़बड़ी करने वालों की पह ...और पढ़ें

जागरण संवाददाता, वाराणसी। बीएचयू (काशी हिन्दू विश्वविद्यालय) में अनियमितता की शिकार हुई पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया की जांच जल्द शुरू होगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयाेग (यूजीसी) की तरफ से जांच कमेटी गठित हो चुकी है, शीघ्र ही जांच टीम विवि आएगी और गड़बड़ी करने वालों को चिह्नित करेगी।
विस्तृत रिपोर्ट यूजीसी के चेयरमैन को सौंपी जाएगी और जिम्मेदारों पर विभागीय कार्रवाई होगी ताकि ऐसी अनियमितता करने से पहले शिक्षक और विवि प्रबंधन कई बार सोचे। प्रवेश प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों को जांच में पूर्ण सहयोग करने के लिए कहा गया है।
इसके लिए परीक्षा नियंता कार्यालय की ओर से जांच से संबंधित दस्तावेज जुटाए जा रहे हैं, क्योंकि टीम आएगी तो सबसे पहले दस्तावेजों का ही अध्ययन करेगी। बता दें कि मार्च व अप्रैल में प्रवेश प्रक्रिया में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए विद्यार्थियों और राजनीतिक दलों ने आवाज उठाई थी।
राष्ट्रीय स्तर पर विवि की ख्यात पर चोट पहुंची। दो बार यूजीसी को हस्तक्षेप करना पड़ा। अनियमितता की विस्तृत जांच के आदेश हुए थे। विभागीय गड़बड़ियों पर विस्तृत रिपोर्ट तलब की गई। कार्यवाहक कुलपति व कुलगुरु प्रो. संजय कुमार और कुलसचिव प्राे. अरुण कुमार सिंह दिल्ली बुलाए गए थे।
यूजीसी का कहना था कि वर्ष 2024-25 के लिए पीएचडी प्रवेश पर तब तक कोई और कार्रवाई नहीं की जाए जब तक कि समिति द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं कर दी जाती है। प्रकरण में उपयुक्त प्राधिकारी की तरफ से ही निर्णय लेने के आदेश दिए।
विवि प्रशासन ने तय तिथि से दो दिन पहले ही प्रवेश काउंटर बंद कर दिया था। मेरिट लिस्ट के अनुसार प्रवेश और अभ्यर्थियों को काल करने की सुविधा पर रोक लगा दी गई। इस तरह करीब 944 अभ्यर्थियों को दाखिला मिला जबकि 1466 सीटें निर्धारित की गईं थी। 522 सीटें खाली रह गईं।
पीएचडी प्रवेश का हाल
- 1466 कुल सीट
- 944 को प्रवेश मिला
- 475 छात्र
- 469 छात्राएं
श्रेणी वार प्रवेश स्थिति
- 432 सामान्य एवं ईडब्ल्यूएस श्रेणी
- 353 पिछड़ा वर्ग
- 120 अनुसूचित जाति
- 39 अनुसूचित जनजाति
परीक्षा नियंता कार्यालय और विभागों की रही जिम्मेदारी
पीएचडी में अनियमितता की जिम्मेदारी परीक्षा नियंता कार्यालय और विभागों की रही। कई विभाग मनमानी पर उतर आए थे। नियमों को दरकिनार करते हुए अपने चहेतों को प्रवेश दे दिया, इसका खामियाजा योग्य उम्मीदवारों को भुगतान पड़ा। अधिकांश अभ्यर्थी दूसरे विश्वविद्यालयों में प्रवेश ले लिया जबकि कुछ अभ्यर्थियों ने गडबड़ी के खिलाफ आंदोलन की राह चुनी।
हिन्दी विभाग, सोशल साइंस, रिसर्च सेंटर फार सोशल इन्क्लूजन और एंशियन हिस्ट्री समेत कई विभागों में मनमानी के चलते समूचा विवि शर्मसार हुआ। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन दोषी शिक्षकों पर सीधी कार्यवाही से बचता रहा, इसका एक बड़ा कारण स्थायी कुलपति की नियुक्ति नहीं होना भी रहा।
शिवम सोनकर, अर्चिता सिंह और विक्रमादित्य पांडेय जैसे कई छात्र धरना-प्रदर्शन करने के लिए विवश हुए। शिवम और अर्चिता को प्रवेश मिला, इनके लिए नियमों में बदलाव करना पड़ा।

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