इम्युनिटी को मजबूत करने के लिए गुणकारी हल्दी लाभप्रद, 30 हजार लागत में एक लाख मुनाफा
हल्दी बहुत गुणकारी होती है। इसका कई प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खेती भी बड़े काम की होती है। खासकर जैविक विधि से कम लागत में अधिक मुनाफा मिल ...और पढ़ें
बलिया, जेएनएन। हल्दी बहुत गुणकारी होती है। इसका कई प्रकार से इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खेती भी बड़े काम की होती है। खासकर जैविक विधि से कम लागत में अधिक मुनाफा मिलता है। प्रति एकड़ लगभग 30 हजार की लागत में एक लाख रुपये तक लाभ अर्जित किया जा सकता है।
आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र सोहांव में तीन वर्षाें से जैविक विधि से हल्दी की खेती की जा रही है। इस बार एक बिस्वा में खेती की गई है, इसकी खेती में एक एकड़ में 28 क्विंटल से अधिक उत्पादन मिलता है। इसके बीज की किसानों में अधिक मांग होती है, जो 50 रुपये किलो तक बिकता है। कम क्षेत्रफल में भी इसकी खेती करने से अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इसकी फसल सात से दस माह में तैयार हो जाती है।
मई से जून के बीच करें बोआई : हल्दी की बोआई का उचित समय मध्य मई से जून के बीच का समय होता है। किसी कारण बोआई नहीं हो पाई है तो 15 जुलाई तक कर सकते हैं लेकिन उपज प्रभावित होगी। बोआई से पहले खेत की 4-5 बार जोताई करानी चाहिए। पाटा लगाकर मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर लिया जाना चाहिए। इसके लिए दोमट मिट्टी, जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो, उत्तम है।
20-25 दिन बाद हल्की सिंचाई : बोआई के 20-25 दिन बाद हल्की सिंचाई की जरूरत पड़ती है। गर्मी में सात दिन तथा शीतकाल में 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। हरी पत्ती व सूखी घास क्यारियों के ऊपर फैला देनी चाहिए।
बागीचों में भी लगा सकते हैं फसल : बागीचों में फसल लगाने से अतिरिक्त आय प्राप्त की जाती है। केंद्र पर आंवला के नीचे भी हल्दी की फसल लगाई गई है। जनवरी से मार्च के मध्य खोदाई की जाती है जब पत्तियां पीली पड़ जाएं तथा ऊपर से सूखना प्रारंभ कर दें।
फायदे का सौदा है इसकी खेती : कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष प्रो. रविप्राश मौये ने बताया कि हल्दी में रंग, महक एवं औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसमें जैव संरक्षण एवं जैव विनाश दोनों ही गुण विद्यमान हैं। भोजन में सुगंध एवं रंग लाने में, बटर, चीज, अचार आदि भोज्य पदार्थों में इसका उपयोग किया जाता है। यह भूख बढ़ाने तथा उत्तम पाचक में सहायक होती है। रंगाई, दवाई व कास्मेटिक सामग्री बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। ऐसे में इसकी खेती फायदे का सौदा है। किसानों में भी इसका रूझान बढ़ रहा है।

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