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    हाइपर एसिडिटी की हो जाएगी छुट्टी, आयुर्वेद में है एक ऐसीअनोखी घुट्टी

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 03 Sep 2018 08:05 AM (IST)

    आज लगभग हर व्यक्ति हाइपर एसिडिटी का शिकार है मगर आयुर्वेद में इसका सटीक उपचार भी है।

    हाइपर एसिडिटी की हो जाएगी छुट्टी, आयुर्वेद में है एक ऐसीअनोखी घुट्टी

    कृष्ण बहादुर रावत, वाराणसी : आज के भागदौड़ वाली जिंदगी में लगभग हर व्यक्ति हाइपर एसिडिटी यानि अम्लपित्त से परेशान है। खाली पेट ज्यादा देर तक रहने से या अधिक तला भुना खाना खाने के बाद खट्टी डकार व पेट में गैस आदि बनने लगती है। एसिडिटी होने पर पेट में जलन, खट्टी डकारें आना, मुंह में पानी भर आना, पेट में दर्द, गैस की शिकायत, जी मिचलाना आदि लक्षण महसूस होते हैं।

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    राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय, वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डा. अजय कुमार बताते हैं कि आयुर्वेद के ग्रंथों में अम्लपित्त रोग के बारे में विस्तार से बताया गया है और इसकी चिकित्सा भी बताई गयी है। पेट में अम्लता और पित्त की वृद्धि से यह रोग होता है। इसके निम्न लक्षण बताये गए है - क्या है अम्लपित्त के मुख्य लक्षण--

    1. खट्टी डकारें आना

    2. पेट और गले में जलन होना

    3. खाना खाने की इच्छा नहीं होना

    4. खाना खाने के बाद उल्टी या मिचली आना

    5. कभी कब्जियत होना, कभी दस्त होना

    6. भूख नही लगना अम्लपित्त के प्रमुख कारण हैं-

    1. अधिक चटपटा मिर्च मसालेदार खाना जैसे अचार, चटनी, इमली, लाल और हरी मिर्च, प्याज, लहसुन

    2. गोल गप्पे, आलू चाट या टिक्की, बर्गर, चाऊमीन आदि जंक फूड अधिक खाना

    3. देर रात तक जागना

    4.दर्द निवारक गोली का खाली पेट सेवन

    5. मानसिक तनाव,

    6. अधिक समय तक खाली पेट रहना

    7. धूम्रपान, तम्बाकू, शराब आदि के सेवन से

    8. खाली पेट चाय, कॉफी का सेवन

    9. खाना खाकर बिस्तर पर लेट जाना अम्लपित्त रोग में क्या करें और क्या न करें

    1. अधिक मिर्च मसाले वाली चीजों को ना खाएं।

    2. अधिक गर्म काफी व चाय ना पीएं।

    3. मासाहार का सेवन ना करें।

    4. दही व छाछ का भी सेवन नहीं करना चाहिए।

    5. खाना खाने के बाद थोडा बहुत टहलना चाहिए।

    6. नियमित रूप से व्यायाम करें।

    7. नींद पूरी लें। क्या खाये पीयें

    1. आयुर्वेद के सिध्दात के अनुसार तिक्त रस प्रधान आहार, गेहूं के बने पदार्थ, सत्तू तथा मधु एवं शर्करा का सेवन अधिक करना चाहिए।

    2. परवल की सब्जी के सेवन से लाभ मिलता है।

    3. कच्चा नारियल और उसका पानी, खीरे आदि सेवन करें।

    4. भोजन में हलके आहार जैसे दलिया, खिचड़ी खाएं।

    5. गाय का दूध, अनार का रस, अंगूर, मौसमी, सौंफ, मुनक्का, आवला, अंजीर, पुराना चावल आदि खाद्य पदार्थ का अधिकता से सेवन करना चाहिए।

    6. मिश्री, आंवला, गुलकंद, मुनक्का आदि मधुर द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए।

    7. चाय, कॉफी, शराब, तंबाकू , कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजों का सेवन न करें।

    8. अधिक समय तक खाली पेट न रहें।

    9. दूध का प्रयोग नियमित रूप से करें।

    10. सुबह खाली पेट एक-दो गिलास पानी पिएं। आयुर्वेद से कैसे करे इलाज़-

    आयुर्वेद में इसका इलाज संशमन और संशोधन दो प्रकार से किया जाता है। संशमन चिकित्सा में औषधियों का प्रयोग किया जाता है और संशोधन में पंचकर्म द्वारा इसका इलाज किया जाता है। इन सभी औषधियों का प्रयोग बिना चिकित्सक के परामर्श के बिल्कुल नही करना चाहिए।

    1. अविपत्तिकर चूर्ण

    2. सुतशेखर रस

    3. कामदुधा रस

    4. मौक्तिक कामदुधा

    5. अमलपित्तान्तक रस

    6. अग्नितुण्डि वटी

    7. फलत्रिकादी क्वाथ पंचकर्म चिकित्सा में इसका इलाज़ वमन चिकित्सा द्वारा किया जाता है जिससे इस रोग से पूर्ण रूप से मुक्ति मिल जाती है।