Acharya Prafulla Chand Rai ने बीएचयू में विज्ञान के अध्यापन और मौलिक शोध पर जताया था संतोष
देश में रसायन विज्ञान के जनक और औद्योगिक पुनर्जागरण के स्तंभ आचार्य प्रफुल्ल चंद राय यानी पीसी राय ने प्राचीन रसायन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़कर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी क्योंकि तब औषधि निर्माण से लेकर इसके सीखने की अकादमिक विधा पर पूरी तरह अंग्रेजों का एकाधिकार था।
वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। देश में रसायन विज्ञान के जनक और औद्योगिक पुनर्जागरण के स्तंभ आचार्य प्रफुल्ल चंद राय यानी पीसी राय ने भारत के प्राचीन रसायन ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोड़कर अंग्रेजी हुकूमत को चुनौती दी, क्योंकि तब औषधि निर्माण से लेकर इसके सीखने यानी अकादमिक विधा पर पूरी तरह अंग्रेजों का एकाधिकार था। 1932 में देश का पहला फार्मास्यूटिक्स का स्नातक कोर्स बीएचयू में शुरू हुआ था। इसके सूत्रधार पीसी राय ही थे। मालवीय जी के आह्वान पर प्रख्यात वैज्ञानिक प्रो. महादेव लाल सर्राफ ने फार्मास्यूटिकल विभाग (वर्तमान में आइआइटी-बीएचयू में स्थित) का पाठ्यक्रम तैयार कर आचार्य के समक्ष विचार के लिए प्रस्तुत किया। आचार्य ने इसकी व्यावहारिकता को जांच-परख कर अपने सुझावों के साथ सिलेबस को मंजूरी दी थी।
आचार्य राय बीएचयू से शुरू से ही जुड़े रहे। 4 फरवरी 1916 को बीएचयू की स्थापना के मौके पर आचार्य राय ने 'विज्ञान के एक विद्यार्थी का संदेश विषय पर बोलते हुए कहा था कि मेरे लिए संतोष की बात है कि बीएचयू में विज्ञान की विविध शाखाओं के अध्यापन और मौलिक शोध के लिए पर्याप्त प्रविधान किए गए हैं। इससे नए युग का सूत्रपात होगा। 1933 में मालवीय जी ने आचार्य को बीएचयू के डाक्टर आफ साइंस (डीएससी) की मानद उपाधि से नवाजा था।
आइआइटी-बीएचयू में डिपार्टमेंट आफ फार्मास्यूटिकल इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलाजी के वैज्ञानिक प्रो. सुशांत श्रीवास्तव ने बताया कि विभाग स्थापित होने के बाद यहीं से भारत में पहली बार औषधि निर्माण विधा में अध्ययन-अध्यापन और प्राचीन रसायन विज्ञान पर बड़े स्तर पर शोध कार्य शुरू हुए। इस तरह ब्रिटिश साम्राज्य के औषधि कारोबार के दबदबे पर पहला हमला बीएचयू से हुआ था। आज आइआइटी, बीएचयू स्थित फार्मास्यूटिकल इंजीनियरिंग और टेक्नोलाजी के नाम से जाना जाने वाला यह विभाग उस दौर में देश-विदेश की कई बड़ी फार्मा संस्थानों व उद्योगों के लिए आदर्श बना।
मशहूर ग्रंथ द हिस्ट्री आफ हिंदू केमेस्ट्री लिखी
आचार्य न सिर्फ स्वदेशी विज्ञान के प्रणेता थे, विज्ञान स्वतंत्रता दिलाने का मार्ग हो सकता है, यह विचार भी उन्होंने देश को दिया। जब वह विदेश में थे तो रसायन विज्ञान को लेकर कहा जाता था कि भारतीय उतना ही जानते हैं, जितना अंग्रेजों ने सिखाया। इसके जवाब में आचार्य ने कहा कि भारतीयों को अपना इतिहास ही नहीं मालूम। इसके बाद उन्होंने दो खंड में रसायन विज्ञान पर विश्व विख्यात ग्रंथ 'हिस्ट्री आफ हिंदू केमेस्ट्री फ्राम द अॢलएस्ट टाइम्स टू सिक्सटीन सेंचुरी लिखकर दुनिया को भारत के प्राचीन रसायन व चिकित्सा पद्धति से अवगत कराया।
नाना प्रकार के कार्य करने का उन जैसा किसी के पास उदाहरण
महात्मा गांधी के बाद किसी ऐसे अन्य व्यक्ति को पाना कठिन था, जिसने मालवीय जी के समान त्याग किया हो और नाना प्रकार के कार्य करने का उन जैसा किसी के पास उदाहरण हो।
-आचार्य प्रफुल्ल चंद राय
जीवन परिचय
जन्म- 2 अगस्त, 1861 ( जैसोर, बांग्लादेश)
निधन- 16 जून, 1944 ( कोलकाता)
प्रसिद्ध किताब- हिस्ट्री ऑफ हिंदू केमेस्ट्री
प्रमुख खोज- मक्र्यूरस नाइट्रेट