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    Sultanpur Lok Sabha seat: कहीं ‘साइकिल’ की हवा न निकाल दे ये अंतर्कलह, पहले बसपा और अब कांग्रेस का सहारा

    Updated: Fri, 19 Apr 2024 08:58 AM (IST)

    सुलतानपुर सीट का इतिहास रोचक मुकाबलों और किस्सों से भरा पड़ा है। यहां छोटे दलों के अलावा निर्दलीय भी जीत दर्ज कर राजनीतिक रणनीतिकारों को चौंकाते रहे लेकिन सपा जीत को तरस रही है। ऐसा तब है जबकि विधानसभा के चुनाव में उसे अच्छी सीटें भी मिलीं। समाजवादी पार्टी की स्थापना चार अक्टूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने की थी।

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    Sultanpur Lok Sabha सपा में टिकट को लेकर विरोध का दौर शुरू हुआ, जो अब तक खत्म नहीं हो सका।

     अजय सिंह, जागरण सुलतानपुर। Sultanpur Lok Sabha seat स्थापना काल के बाद से समाजवादी पार्टी सुलतानपुर लोकसभा सीट पर कामयाबी से दूर है। ऐसा तब है जबकि उसने हर चुनाव में चेहरे बदलने के साथ जातिगत समीकरण साधने के ज्यादा से ज्यादा प्रयोग कर डाले। ठाकुर, ब्राह्मण, मुस्लिम और पिछड़ी जाति का उम्मीदवार दिया।

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    अबकी बार सपा में टिकट को लेकर विरोध का दौर शुरू हुआ, जो अब तक खत्म नहीं हो सका। पहले अंबेडकरनगर के भीम निषाद को लड़ाने की घोषणा की गई। इनके नाम पर कुछ नेताओं ने मोर्चा खोल दिया तो पार्टी मुखिया अखिलेश यादव को अपना फैसला बदला पड़ा।

    अब गोरखपुर निवासी पूर्व मंत्री रामभुआल निषाद को प्रत्याशी घोषित किया गया है। इनको लेकर भी विरोध प्रदर्शन का सिलसिला शुरू हो गया है। यह स्थिति कहीं सपा के लिए घातक न हो जाए।

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    जीत को तरस रही सपा

    इस सीट का इतिहास रोचक मुकाबलों और किस्सों से भरा पड़ा है। यहां छोटे दलों के अलावा निर्दलीय भी जीत दर्ज कर राजनीतिक रणनीतिकारों को चौंकाते रहे, लेकिन सपा जीत को तरस रही है। ऐसा तब है जबकि विधानसभा के चुनाव में उसे अच्छी सीटें भी मिलीं।

    समाजवादी पार्टी की स्थापना चार अक्टूबर, 1992 को मुलायम सिंह यादव ने की थी। इसके बाद 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में पार्टी ने कमरुज्जमा फौजी को चुनाव मैदान में उतारा था। वर्ष 1998 में पार्टी ने यहां से बड़े चेहरे के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पुत्री रीता बहुगुणा जोशी को चुनाव लड़ाया।

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    एक ही वर्ष बाद 1999 में सपा ने अंबेडकरनगर के निवासी रहे पूर्व मंत्री रामलखन वर्मा पर दांव लगाया। 2004 में शैलेन्द्र प्रताप सिंह, 2009 में अशोक पांडेय और 2014 में शकील अहमद चुनाव लड़े, लेकिन कोई भी सपा की नाव को पार नहीं लगा सका।

    वर्ष 2019 में बसपा के साथ थी सपा, इस बार कांग्रेस का सहारा

    वर्ष 2019 के चुनाव में यह सीट सपा ने गठबंधन के कारण बसपा को दे दी। बसपा प्रत्याशी चंद्रभद्र सिंह को चार लाख, 44 हजार, 670 वोट मिले जरूर, लेकिन भाजपा प्रत्याशी मेनका गांधी से पराजित होना पड़ा। अब इस बार निषादों के करीब डेढ़ लाख वोटों को साधने के लिए सपा ने इसी बिरादरी का प्रत्याशी दिया है, लेकिन उठापटक के कारण चुनाव अभियान गति नहीं पकड़ पा रहा है।

    हालांकि, सपा के प्रवक्ता व पूर्व विधायक अनूप संडा कहते हैं कि जिसे पार्टी हाईकमान ने टिकट दिया है, उसे सब मिलकर चुनाव लड़ाएंगे। पार्टी में किसी प्रकार की अंतर्कलह नहीं है। इस बार आइएनडीआइए गठबंधन की स्थिति काफी बेहतर है। भाजपा सरकार की नाकामी और झूठे नारों से ऊबी जनता ने परिवर्तन का मन बना लिया है।

    कुल मतदाता- 1834355

    महिला मतदाता- 879932

    पुरुष मतदाता- 954358

    युवा मतदाता- 852179

    नव मतदाता- 23699

    थर्ड जेंडर- 65

    चुनाव परिणामों पर एक नजर

    2014

    वरुण गांधी भाजपा 4,10,348

    पवन पांडेय बसपा 2,31446

    2019

    मेनका गांधी भाजपा 4,58,196

    चंद्रभद्र सिंह सोनू बसपा4,44,670