कंडाकोट में लगाई जाएगी कण्व ऋषि की प्रतिमा
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जिला मुख्यालय से सटे बहुआर गांव में आदिकाल के ऋषि कण्व की तपोस्थल
जागरण संवाददाता, सोनभद्र : जिला मुख्यालय से सटे बहुआर गांव में आदिकाल के ऋषि कण्व की तपोस्थली कंडाकोट में जल्द ही उनकी प्रतिमा स्थापित की जाएगी। प्रतिमा स्थापित कराने का जिम्मा कर्नाटक के एक अनुयायी ने लिया है। इससे जिले के इस ऐतिहासिक स्थल का विकास तेजी से होने की पूरी उम्मीद है। वहीं पर्यटन विभाग ने भी इस स्थल को जिला योजना में अपने प्रस्ताव का हिस्सा बनाया है, जिससे इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सके।
रहस्य, रोमांस व आस्था की संगमस्थली कंडाकोट यानी जहां कण्व ऋषि ने तपस्या किया था वह स्थल कंडाकोट जमीन से करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर है। इस पहाड़ी पर ही अर्धनारीश्वर भगवान शिव व माता-पार्वती की प्राचीन मूर्ति भी है। यहां हर वर्ष वसंत पंचमी और महाशिवरात्रि पर मेला लगता है। वर्षों से उपेक्षित इस स्थल के विकास में लगी कंडाकोट संरक्षण एवं विकास समिति के प्रबंधक व अध्यक्ष धनंजय तिवारी और सर्वेश तिवारी ने बताया कि कनार्टक के एक बैंक से सेवानिवृत्त हुए मैनेजर कुछ ही दिन पहले यहां आये थे। वे कण्व ऋषि को काफी मानते हैं।
ऐसे में उन्होंने यहां आदिकाल के ऋषि कण्व की प्रतिमा यहां लगवाने का वादा किया है। उम्मीद है कि मार्च में इसके लिए लिए फाउंडेशन आदि बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा। प्रतिमा स्थापना के बाद कुछ लोग तो इसे देखने के लिए भी आएंगे। ऐसे में प्रशासन की भी नजर पड़ेगी तो यहां का विकास जरूर होगा। यहां के भित्ति चित्र भी हैं जिसे सुरक्षित करने की जरूरत है।
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यहीं पर हुआ था भरत का पालन-पोषण
कंडाकोट विकास एवं संरक्षण समिति के प्रबंधक धनंजय त्रिपाठी बताते हैं यह स्थल काफी महत्वपूर्ण है। इस ऐतिहासिक स्थल के बारे में मान्यता है कि देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया था। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। ऋग्वेद के आठवें मंडल के मुताबिक महर्षि कण्व अष्टम मंडल के द्रष्टा ऋषि कहे गये हैं। इनमें लौकिक ज्ञान-विज्ञान तथा अनिष्ट-निवारण संबंधी उपयोगी मंत्र हैं। यहीं पर कण्व ऋषि ने तपस्या किया था।
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उपेक्षित है कंडाकोट
जहां पर हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ, कण्व जैसे ऋषि की तपोस्थली व अर्धनारीश्वर भगवान हैं वह स्थल कंडाकोट आज भी उपेक्षित है। यहां पहुंचने के लिए न तो कायदे की सड़क है और न ही यहां बेहतर इंतजाम है। अगर इसे पर्यटनस्थल के रूप में विकसित कर दिया जाय तो ऐसी धरोहर संरक्षित भी होगी और अन्य व्यवस्थाएं करने से राजस्व भी मिलेगा। इतना ही नहीं बहुआर जैसे पिछड़े गांव के लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
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औषधीय गुणों से परिपूर्ण है पहाड़ी
कंडाकोट की पहाड़ी ऐतिहासिक ही नहीं औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है। कई बीमारियों को एक साथ ठीक करने की विशेषता वाले पारिजात के यहां हजारों पौधे हैं। इसी तरह मुरेरा, पथरचट्टी, वन तुलसी आदि के भी पर्याप्त संख्या में पौधे हैं। अगर इन स्थलों का संरक्षण और विकास हो तो आस-पास के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।