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सोनभद्र में मानसून पूर्व बारिश सामान्य स्तर पर पहुंची

जागरण संवाददाता ओबरा (सोनभद्र) पिछले 13 दिनों से जनपद के विभिन्न हिस्सों में हो रही लगाता

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 May 2021 05:49 PM (IST)Updated: Tue, 18 May 2021 05:49 PM (IST)
सोनभद्र में मानसून पूर्व बारिश सामान्य स्तर पर पहुंची

जागरण संवाददाता, ओबरा (सोनभद्र) : पिछले 13 दिनों से जनपद के विभिन्न हिस्सों में हो रही लगातार बारिश के कारण मानसून पूर्व बारिश सामान्य स्तर पर आ गई है। बीते एक मार्च से 16 मई तक सामान्य बारिश 19.2 मिलीमीटर के सापेक्ष 19 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है। जो सामान्य बारिश से मात्र एक फीसद कम है। पिछले दो सप्ताह के दौरान जनपद के दसों विकास खंडों में बारिश हुई है। इनमे भी चोपन, नगवां, चतरा, म्योरपुर और कोन ब्लाक में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है। बीते एक मार्च से पूर्व होने वाली बारिश में मई के शुरूआत तक काफी कम बारिश दर्ज की गई थी। सोनभद्र में सात मई तक मानसून पूर्व सामान्य बारिश 70 फीसद तक कम हुयी थी, लेकिन उसके बाद निरंतर हुई बारिश ने मार्च और अप्रैल के दौरान हुई कमी को खत्म कर दिया है। बीते आठ मई को जनपद में 4.3 मिमी, नौ मई को 6.6 मिमी, दस मई को 1.6 मिमी तथा 13 मई को 2.9 मिलीमीटर बारिश हुई है। भारत मौसम विज्ञान विभाग के आकड़ों के अनुसार बीते आठ मई से 16 मई के बीच जनपद में 14.1 मिलीमीटर बारिश हो चुकी है। आम तौर पर जनपद में मई में काफी कम बारिश होती है लेकिन इस वर्ष अप्रत्याशित तौर पर शुरुआती पखवाड़े में सामान्य से काफी ज्यादा बारिश हुयी है। इसकी वजह से पिछले दो सप्ताह के दौरान मौसम काफी सुहावना रहा है।

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चारे की उपलब्धता बढ़ी

मार्च और अप्रैल के महीने में बारिश नहीं होने के कारण चारे की विविधता व्यापक तौर पर प्रभावित हुयी थी। पिछले 13 दिनों से हो रही बारिश के कारण घास में दूब एवं काश प्रजाति पुन: मरणासन्न स्थिति से बाहर आने लगी हैं। मूलत: इसी प्रजाति पर मवेशी पूरे वर्ष निर्भर रहते हैं। इसके अलावा दूध बढ़ाने के लिए मक्का, बजड़े एवं जोन्हरी की फसल मानसून के साथ होती है।उधर जंगलों में होने वाली जनेवा, गोलीला, ढवई, भोड़उत, खड़ एवं ठेहुरा आदि प्रजाति जिन्हें मवेशियों के लिए औषधीय भोजन भी कहा जाता है की स्थिति भी पुन: अच्छी होने लगी है। ज्यादातर प्रजातियां फरवरी मार्च तक लुप्तता की स्थिति में पहुंचने लगती है। केवल नदियों के तटवर्ती हिस्सों में ही कुछ प्रजातियां जीवित रहती थी, लेकिन निरंतर बारिश के कारण रेणुकापार के क्षेत्रों में सभी प्रजातियां पुन: हरी होने लगी हैं।


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