भगवान विष्णु ने तुलसी से किया विवाह
तहसील प्रांगण में वृन्दावन के कलाकारों द्वारा मंचित श्री रासलीला के क्रम में शनिवार की रात इंद्र के मान मर्दनजालन्धर उद्धार व देवी तुलसी पर श्रीहरि विष्णु की कृपा की लीला का मंचन किया गया।इंद्र के अभिमान को चूर करने के उद्देश्य से भगवान शिव द्वारा उत्पन्न जालन्धर ने इंद्र को दंड देने के लिए
जागरण संवाददाता, दुद्धी (सोनभद्र) : तहसील प्रांगण में वृन्दावन के कलाकारों द्वारा मंचित श्री रासलीला के क्रम में शनिवार की रात इंद्र के मान मर्दन, जलन्धर उद्धार व देवी तुलसी पर श्रीहरि विष्णु की कृपा की लीला का मंचन किया गया। इंद्र के अभिमान को चूर करने के उद्देश्य से भगवान शिव द्वारा उत्पन्न जलन्धर ने इंद्र को दंड देने के लिए भगवान शिव, ब्रह्मा व विष्णु से अमोघ शक्ति प्राप्त की। इंद्र ने अपने अभिमान में शिवजी का अपमान कर दिया था, जिस पर क्रोधित शिव ने इंद्र को दंड देने के लिये ही जलन्धर को उत्पन्न किया।
त्रिदेवों की शक्ति लेकर इंद्र से युद्ध करने पहुंचे जलन्धर का इन्द्र ने सामना नहीं किया। भागते हुए त्रिदेव से प्राणों की रक्षा की गुहार लगाई। जलन्धर के त्रिशक्ति के आगे बेबस देवता माया से अ²श्य हो गए। उन्हें खोजते हुए जलंधर एक बाग में पहुंचा। जिसकी स्वामिनी देवी वृन्दा थी। उनकी प्रतिज्ञा थी कि जिस दिन वे इस बाग में किसी पुरुष का दर्शन करेगी इस शर्त के कारण जलंधर से देवी वृन्दा के विवाह के बाद राजमहल में रुकने एवं स्वयं देवताओं की खोज में जाने लगा। पति को युद्ध के लिए जाते देख देवी वृन्दा ने एक माला उस के गले मे डालते हुए कहा कि जब तक मेरा सतीत्व है, आपको कोई मार नहीं सकता। माला टूटने के साथ आपका अंत निश्चित है। जलंधर वृन्दा की बात सुनकर युद्ध के लिए चल दिया। उधर देवताओं की विनती पर भगवान श्रीहरि ने जलंधर का रूप बना कर देवी वृन्दा के साथ छल किया। उधर देवों से युद्ध में जलन्धर मारा गया। जैसे ही देवी वृन्दा को श्रीहरि विष्णु छल करने का आभास हुआ। वह क्रोधित होकर श्रीहरि विष्णु को शाप दिया कि मेरे पति की मृत्यु पर तुम जैसे पत्थर की तरह हो जाओ, तुम आज से पत्थर हो जाओ। इतना सुनते ही देवी लक्ष्मी ने भी वृन्दा को शाप दिया कि तुम भी वन की लकड़ी हो जाओ। श्री हरि के पत्थर व वृन्दा के लकड़ी बनते ही पूरे संसार में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने वृन्दा से क्षमा मांगी व उनसे श्रीहरि को शाप मुक्त करने का अनुरोध किया। तब श्री हरि शालिग्राम स्वरूप में प्रकट होकर देवी वृन्दा को वर देते हैं कि आज से तुम संसार में तुलसी माता के नाम से पूजी जाओगी। तुम्हारे साथ मेरा भी पूजन शालिग्राम के रूप में होगा, जहां तुलसी होगी वहां शालिग्राम का होना आवश्यक होगा। मेरे किसी भी स्वरूप के पूजन में बिना तुलसी दल के कोई भोग मुझे स्वीकार नही होगा। आज से तुम मेरी पटरानियों में स्थान पाओगी और उसी समय प्रभु ने माता तुलसी से विवाह कर उन्हें श्रीधाम में स्थान दिया।
मंचन मण्डली के व्यास जी ने एक से बढ़कर एक भजन, पदावली, अर्धावली व श्लोकी भजन को सुनाकर व्यास पीठ को ज्योतिर्मय किया।
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