कण्व ऋषि की तपोस्थली कंडाकोट उपेक्षा का शिकार
सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किमी दूरी कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपोस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है। इतना महत्वपूर्ण स्थल होने के बावजूद प्रशासन की तरफ से उपेक्षा अब तक जारी है। उबड़-खाबड़ रास्तों से यहां पहुंचने में लोगों को परेशानी होती है।

जागरण संवाददाता, सोनभद्र : सोनभद्र में जिला मुख्यालय से आठ किमी दूरी कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपोस्थली है जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है। इतना महत्वपूर्ण स्थल होने के बावजूद प्रशासन की तरफ से उपेक्षा अब तक जारी है। उबड़-खाबड़ रास्तों से यहां पहुंचने में लोगों को परेशानी होती है। यहां वैदिक कण्व ऋषि का आश्रम है। इसका उल्लेख कालिदास ने अपने अभिज्ञानशाकुंतलम में किया है। हिदू धर्म विश्वकोष में भी वैदिक कण्व ऋषि का सोनभद्र में आश्रम होने की जानकारी प्राप्त होती है। इनके नाम पर ही कंडाकोट नाम अस्तित्व में आया।
लाखों साल पुरानी श्रृंखला पर स्थित कण्व ऋषि के आश्रम के इर्द-गिर्द का हिस्सा खंडहर में तब्दील होने लगा है। चेतना, ज्ञान व अध्यात्म के मर्म को प्राप्त करने वाला स्थल उदासीनता के कारण पहचान खो रहा है। यहां पहुंचने के लोगों को पथरीले रास्तों से जाना पड़ता है। सड़कों पर निकली बड़ी-बड़ी सोलिग भक्तों की परीक्षा लेती हैं। पर्यटकों को होती है परेशानी
यहां पहुंचने के लिए पर्यटक व श्रद्धालुओं को तीन किमी पैदल चलना पड़ता है। ऊबड़-खाबड़ रास्ते से गुजरते हुए लोग कहां पहुंच जाए, इसका कोई ठीकाना नहीं है। कंडोकोट की स्थिति यह कि डमरू सरीखे इस पहाड़ी के ऊपरी हिस्से पर जीवन जीने के सभी साधन मौजूद हैं, वह भी प्रकृति प्रदत्त। सैकड़ों फीट ऊपरी सतह पर एक तालाब है। गुंबदनुमा पत्थर की पहाड़ी का ऊपरी हिस्सा मिट्टी की सतह से पटा हुआ है। इस पर अर्धनारीश्वर भगवान शिव व पार्वती की प्रतिमा है। पेड़-पौधे भरे हुए हैं। 256 सीढि़या तो बनाई गई हैं, लेकिन उन तक पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय से कोई मार्ग नहीं है। वर्जन--
मामला संज्ञान में है। जल्द संबंधित विभाग से समन्वय स्थापित कर कंडाकोट पहुंचने के लिए सड़क मरम्मत शुरू कराया जाएगा। इसके अलावा अन्य कार्य में किए जाएंगे।
- योगेंद्र बहादुर सिंह, एडीएम।
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