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    मजार का एक दरवाजा भारत में खुलता था… दूसरा नेपाल में, छांगुर की राह आसान करने में मददगार बसावट पर चला बुलडोजर

    Updated: Fri, 18 Jul 2025 02:41 PM (IST)

    श्रावस्ती में नेपाल सीमा के पास नो मेंस लैंड पर अवैध निर्माण पाए गए जिनमें मजार और मकान शामिल थे। लखीमपुर और महराजगंज में भी नो-मेंस लैंड पर खेती होने की जानकारी मिली है। बलरामपुर में मतांतरण के मास्टरमाइंड को भी इस अवैध बसावट से मदद मिली थी। श्रावस्ती में डीएम ने सीमा के 10 किमी के दायरे में रजिस्ट्री के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र अनिवार्य कर दिया है।

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    श्रावस्ती में परसोहना गांव में नो-मेंस लैंड पर बने मजार को ढहाता बुलडोजर। जागरण

    भूपेंद्र पांडेय, श्रावस्ती। सीमा रेखा से 10 गज भारतीय क्षेत्र व 10 गज नेपाल क्षेत्र को नो मेंस लैंड माना जाता है। इस पर किसी प्रकार का अतिक्रमण नहीं हो सकता है। नेपाल सीमा के निकट नो मेंस लैंड पर मजार के साथ लोगों ने मकान खड़े कर लिए थे। लखीमपुर और महराजगंज में नो-मेंस लैंड पर खेती हो रही है। यहां की अवैध इस्लामिक बसावट बड़े खतरे की ओर संकेत कर रहा है। 

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    बलरामपुर के मतांतरण के मास्टरमाइंड छांगुर उर्फ जलालुद्दीन की नेपाल तक राह आसान करने में यह अवैध बसावट भी काफी हद तक मददगार रही। पीलीभीत से महराजगंज जिले तक सीमा पर अतिक्रमण के कई मामले हैं। अनेकों स्थानों से सीमा स्तंभ गायब हैं।

    लगभग 70 किलोमीटर नेपाल में सफर करने के बाद राप्ती नदी ककरदरी गांव के पास श्रावस्ती जिले में भारतीय क्षेत्र में प्रवेश करती है। यहां ककरदरी से बहराइच के होलिया गांव तक लगभग 10 किलोमीटर की दूरी में सीमा स्तंभ गायब हैं। 

    इसी प्रकार महराजगंज जिले के पथलहवा एसएसबी कैंप से गंडक नदी तक के सीमा स्तंभ का पता नहीं है। श्रावस्ती में सिरसिया क्षेत्र में भरथारोशनगढ़ गांव में नो मेंस लैंड पर मस्जिद खड़ी थी। 

    परसोहना में नो मेंस लैंड पर मजार इस तरह बनाई गई थी कि उसका अगला दरवाजा भारत में व पिछला दरवाजा नेपाल में खुलता था। सुइया के निकट बघौड़ा में नो-मेंस लैंड पर मस्जिद खड़ी थी। 

    भरथारोशनगढ़ गांव में अहमद हुसैन, मेराज, जाकिर व मेहरुनिंशा का मक्का मकान नो-मेंस लैंड पर बना था। प्रशासन ने सख्ती की तो इन्हाेंने अपना मकान हटा लिया। महराजगंज जिले में नेपाल सीमा से सटे सकरदिनही गांव के किसान नरेश कुशवाहा के खेत के बीच में एक वर्ष पहले ही भारत-नेपाल नोमेंस कमेटी ने सीमांकन कर स्तंभ निर्माण के लिए बांस व लकड़ी के पिलर लगा दिए थे। 

    इसे लेकर भूमि स्वामियों व बॉर्डर कमेटी टीम से नोकझोंक भी हुई थी। बाद में चिह्नित भूमि से ग्रामीणों ने बांस को उखाड़ कर फेंक दिया। आज भी चिन्हाकंन भूमि से लगभग सौ मीटर अंदर भारत की ओर नेपाल राष्ट्र के सकरदीन्ही गांव के आधा दर्जन किसान इस भूमि में खेती कर रहे हैं। 

    कुछ ऐसी ही स्थिति सिद्धार्थनगर में भी है। यहां वर्ष 2020-21 में शोहरतगढ़ तहसील के खुनुवा बाजार में नो मेंस लैंड के पास अवैध प्लाटिंग का प्रकरण सामने आया था। शासन के निर्देश पर हुई जांच में तत्कालीन कानूनगो और लेखपाल को निलंबित कर अवैध प्लाटिंग पर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की गई थी। 

    लखीमपुर के पलिया कला के खजुरिया से गौरी फंटा तक नो-मेंस लैंड पर खेती की जा रही है। अधिकांश स्थानों पर नेपाल के लोगों का अतिक्रमण है। सीमा स्तंभ 205 से 211 तक अतिक्रमण सबसे अधिक है। पिलर संख्या-207 गिर चुका है। 

    पीलीभीत, बहराइच व बलरामपुर जिलों में सीमा के निकट सरकारी जमीनों पर कब्जा व अवैध बसावट के कई मामले हैं, लेकिन यहां की नो मेंस लैंड तक अभी अतिक्रमणकारियों के पांव नहीं पहुंचे हैं। 

    श्रावस्ती में डीएम अजय कुमार द्विवेदी ने सीमा के निकट अवैध बसावट को रोकने के लिए सीमा से 10 किमी के दायरे में जमीन की रजिस्ट्री कराने के लिए सीओ और एसडीएम से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने की अनिवार्यता की है। नो मेंस लैंड पर बने मजार व मस्जिद को बुलडोजर से ढहाया गया है।

    पगडंडी रास्तों से निकलते तस्कर

    नेपाल में पहाड़ पर बसी आबादी की जरूरतें भारतीय क्षेत्र के बाजारों से पूरी होती है। ऐसे में दैनिक उपयोगी और खाद्य सामग्री की तस्करी तो जगजाहिर है, लेकिन नशीली दवा, मादक पदार्थ, शराब, कपड़ा, कनाडियन मटर, जंगली लकड़ी जैसी प्रतिबंधित वस्तुओं के तस्करों को जंगलों के पगडंडी से सुरक्षित राह मिल जाती है। 

    महराजगंज में सोहगीरवा व श्रावस्ती में सोहेलवा जंगल से तस्करी के मामले अक्सर पकड़े जाते हैं। तस्करी रोकने के लिए एसएसबी जवान टीम बनाकर इन रास्तों पर गश्त करते हैं।

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