हिमालय की तलहटी में मिलने वाला दुर्लभ प्रजाति का बार्न उल्लू शामली में बचाया, काला जादू के लिए होती है तस्करी
बिड़ौली क्षेत्र में एक किसान को अपने खेत में घायल अवस्था में एक दुर्लभ प्रजाति का उल्लू मिला। वन विभाग की टीम ने उसे बचाकर अपने कार्यालय ले जाकर उसका इलाज किया। उल्लू के एक पंजे में करंट लगने से जख्म था जिसकी वजह से वह शिकार भी नहीं कर पा रहा था। पूरी तरह से ठीक होने के बाद उसे छोड़ दिया जाएगा।

जागरण संवाददाता, शामली। बिड़ौली क्षेत्र में किसान को शनिवार सुबह अपने खेत में घायल अवस्था में एक उल्लू दिखाई दिया तो उसने वन विभाग को सूचना दी। मौके पर पहुंची टीम ने जब उल्लू को देखा तो वह दुर्लभ प्रजाति का था। उसके एक पंजे जख्म था। टीम उसे वन विभाग के कार्यालय पर ले आई और उपचार कराया। रेंजर ने बताया कि पूरी तरह से सही होने पर उल्लू को छोड़ा जाएगा।
ऊन क्षेत्र के रेंजर कृष्ण कुमार ने बताया कि शनिवार सुबह बिड़ौली क्षेत्र के रामनगर गांव निवासी दिनेश कुमार का फोन आया और उसने बताया कि खेत में एक उल्लू है। वह टीम के साथ मौके पर पहुंचे तो देखा कि वह दुर्लभ प्रजाति का बार्न उल्लू हैं, जो हिमालय की तलहटी में पाया जाता है। वह चल और उड़ नहीं पा रहा था।
करंट लगने से एक पंजा झुलसा हुआ, वन विभाग ने कार्यालय में रखा
उसे विभाग विभाग के कार्यालय में लाया गया और परीक्षण किया। उसके एक पंजे में जख्म था, जिसकी वजह से वह शिकार भी नहीं कर पा रहा था।
शनिवार सुबह बिड़ौली क्षेत्र निवासी व्यक्ति ने वन विभाग को दी सूचना
उन्होंने बताया कि देखने से ऐसा लग रहा था, जैसे करंट लगा हो। वह कई दिन से भूखा भी था, इसलिए उसे कार्यालय पर ही मांस के टुकड़े और पानी आदि दिया गया। उन्होंने बताया कि पूरी तरह से सही होने तक उसे कार्यालय में ही रखा जाएगा। पूरी देखभाल होगी और फिर उसे छोड़ दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि बार्न उल्लू की उम्र लगभग 20 साल होती है, जो उल्लू मिला है वह करीब चार से पांच साल का है।
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काले जादू के लिए भी तस्करी होती है
रेंजर कृष्ण कुमार ने बताया कि बार्न उल्लू वन्य जीव अधिनियम 1972 की अनुसूची एक में सूचीबद्ध है। यह एक लुप्त प्राय प्रजाति है, और इसे अत्यधिक सुरक्षा की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय वन्य जीव संरक्षण समझौते के तहत भी यह सूचीबद्ध है, इसलिए इसकी अंतरराष्ट्रीय तस्करी पर रोक है। भारत में इसे काले जादू, समृद्धि और अच्छे भाग्य के लिए पकड़ा जाता है। इसके चलते ही बार्न उल्लू के अस्तित्व पर खतरा है।
इसके अलावा आवासों का विखंडन, खेती के नए तरीके जैसे कीटनाशकों का प्रयोग, और इसके अंतरराष्ट्रीय बाजार में उच्च मूल्य के कारण इसकी प्रजाति घट रही है।
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