हैरान! 8वीं पास ने बनाया करोड़ों की GST चोरी का 'मायाजाल', मुंबई-पंजाब तक फैले तार, जानिए पूरा फर्जीवाड़ा
महज 8वीं पास एक शख्स ने करोड़ों की जीएसटी चोरी का मायाजाल रचा, जिसके तार मुंबई और पंजाब तक फैले हैं। जांच में पता चला कि आरोपी ने बड़े पैमाने पर फर्जी ...और पढ़ें

प्रतीकात्मक चित्र
जागरण संवाददाता, शाहजहांपुर। जीएसटी चोरी के गिरोह के तार दिल्ली से लेकर मुंबई, पंजाब व राजस्थान तक जुड़े हैं। इसमें शामिल अन्य लोगों तक पहुंचने के लिए पुलिस आरोपितों को रिमांड पर लेने की तैयारी में है। अब तक की जांच में पता चला है कि आठवीं पास गौरव मास्टरमाइंड है। उसने अपने साढ़ू से दिल्ली में जीएसटी का काम सीखा था। उसके पिता की आधार व पैन कार्ड अपडेट करने की दुकान है। वहां पर काम करने वाले सातवीं पास सिद्धार्थ व स्नातक कर चुके दीपक से मिला। दोनों कम्प्यूटर के अच्छे जानकार थे।
उन दोनों को अपने साथ शामिल करके बोगस फर्म बनाकर फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया। सिद्धार्थ ने बताया कि वह घर से भाग कर दिल्ली आया था। यहां कुछ माह जूते की फैक्ट्री में काम किया। उसके बाद गौरव के पिता के पास कम्प्यूटर पर काम करने लगा। दीपक भी यहां पर काम करता था। वहीं पर उससे दोस्ती हुई। उन दोनों ने रुपयों के लालच में गौरव के साथ काम शुरू कर दिया।
बंद कर देते थे फर्म व मोबाइल
यह लोग डेढ़ से दो माह तक फर्म संचालित करते थे। इसके बाद फर्म व नंबर का संचालन बंद कर देते हैं। इसलिए पुलिस इन तक पहुंच ही नहीं पाती है। गौरव व उसके गिरोह ने बड़ी संख्या में बोगस फर्म बनाई हैं। अब तक 150 का ब्योरा मिला है। जांच में कई और फर्म व फर्जीवाड़ा सामने आ सकता है।
बिना अनुमति नहीं कर सकता कोई प्रवेश
गौरव के ठिकाने पर 2024 में जीएसटी की टीम ने छापा मारा था। उस समय वह वहां से भाग निकला था। कुछ माह बाद वह फिर से सक्रिय हो गया। उसने दिल्ली में अपना कार्यालय बनाया है। जिसमें उसके सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं। सीसीटीवी के माध्यम से निगरानी होती रहती है। बिना उसकी मर्जी कोई भी व्यक्ति अंदर प्रवेश नहीं कर सकता है।
काठमांडू में हुआ था विवाद
आरोपित घूमने फिरने व अच्छे कपड़े पहनने के शौकीन हैं। इन लोगों ने 35 लाख रुपये की लग्जरी कार खरीदी थी। जिससे 28 नवंबर को काठमांडू गए थे। वहां बस से टक्कर होने पर विवाद हुआ था। उस समय किसी तरह बचकर भाग आए थे। फर्जीवाड़ेे से जुटाई गई रकम व बनाई गई संपत्ति का विवरण भी जुटाया जा रहा है।
इसलिए नहीं होता था शक
आरोपित एक हजार के बदले दस प्रतिशत तक ब्याज का विज्ञापन देते थे। बैंकों में प्रक्रिया लंबी होने व कोई वस्तु बंधक न बनाए जाने के कारण लोग इनकी बातों में आ जाते थ और इन्हें अपने प्रपत्र दे देते थे। इसके बाद कार्यालय में पूरी प्रक्रिया की जाती थी। इसलिए किसी को शक नहीं होता था। प्री एक्टिव सिम खरीदने के लिए दो से ढाई हजार रुपये तक खर्च करते थे।

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