Updated: Wed, 04 Dec 2024 07:44 PM (IST)
Samhal Violence संभल में जामा मस्जिद सर्वे को लेकर हुई हिंसा के पीछे की साजिश को उजागर करने के लिए पुलिस पिछले उपद्रवों में शामिल लोगों की पहचान कर रही है। खुफिया विभाग की रिपोर्ट के अनुसार कुछ ऐसे लोग हैं जो पहले भी दंगों में शामिल रहे हैं और इस बार भी उनकी भूमिका संदिग्ध है। पुलिस इन लोगों की तलाश कर रही है और उनके खिलाफ कार्रवाई करेगी।
ओमप्रकाश शंखधार, संभल। जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हुई हिंसा के पीछे साजिश की परतें खोलने में जुटी पुलिस पिछले उपद्रव में आगे रहे लोगों को भी चिह्नित कर रही है। इसके लिए खुफिया विभाग ने रिपोर्ट तैयार की है। आजादी के बाद से संभल में 14 बार उपद्रव हो चुका है।
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कुछ ऐसे लोगों के मिलने की आशंका है कि जो पहले भी उपद्रव में अगुवाई करते रहे हैं, इस बार उनकी मौजूदगी देखी जाएगी। उनके पहले के मुकदमों की स्थिति भी पता की जा रही है। संभल में जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर 24 नवंबर को हिंसा हुई थी। फायरिंग और आगजनी होने पर चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 30 से अधिक अधिकारी घायल हो गए। इस हिंसा के पीछे सुनियोजित साजिश प्रतीत हो रही है।
मंगलवार को पुलिस को पाकिस्तानी और अमेरिकी कारतूस के खोखे मिलने से विदेशी फंडिंग की भी आशंका जताई जा रही है। अब पुलिस खुफिया रिपोर्ट के आधार पर उन लोगों को तलाश कर रही है जो पहले भी दंगों में शामिल रह चुके हैं। इस बार भी उनकी भूमिका संदिग्ध है।
संभल में उपद्रव
विभाजन के वक्त संभल में पहली बार उपद्रव हुआ था। दो संप्रदाय के लोगों के आमने-सामने पर आर्थिक क्षति भी हुई। आढ़ती जगपाल शरण की हत्या भी हुई थी। इसके बाद और उपद्रव हुआ।
1953 शिया सुन्नी के बीच विवाद होने पर भी कई लोगों की मृत्यु हुई। इसके बाद 1956, 1959, व 1966 में भी उपद्रव हुए।
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29 फरवरी, 1976 को जामा मस्जिद में घुसकर इमाम मुहम्मद हुसैन की हत्या कर दी गई। इसके बाद हिंसा भड़क उठी। शहर में जमकर लूटपाट व आगजनी की गई। सुबह नौ बजे से दोपहर दो बजे तक उपद्रव की स्थिति बनी रही। इसके 24 दिन के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया। हरि सिंह व राकेश वैश्य की भी हत्या कर दी गई।
इसी वर्ष 24 मार्च को घर में हुए विस्फोट में सलाम नामक युवक की भी मौत हो गई थी। घटना से गुस्साए लोगों ने कामता प्रसाद की चाकू से गोदकर हत्या कर दी।
29 मार्च,1978 को संभल में सांप्रदायिक दंगा हुआ, जिसमें जमकर लूटपाट व आगजनी के साथ हत्याएं की गईं। खुफिया रिपोर्ट के अनुसार इस दंगे के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया था। पुलिस व अन्य लोगों की ओर से दोनों पक्षों के खिलाफ 169 मुकदमे दर्ज कराए गए थे।
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1980 में हुए दंगे में भी शहर व आसपास के 14 लोग मारे गए थे। 1982 में बाबरी मस्जिद मामले को लेकर शहर में उपद्रव हुआ। भीड़ ने हरिशंकर रस्तोगी को मौत के घाट उतार दिया था।
आठ मार्च 1986 को उपद्रवियों ने प्रदीप कुमार नामक लड़के की हत्या कर दी, इसमें रतीउर्रमान को नामजद किया गया तो लोगों ने जुलूस निकाला और पुलिस ने रोकने का प्रयास किया तो सीओ की गाड़ी पर पथराव कर उसे क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इसके बाद तीन लोगों को मौत के घाट उतारा गया।
1990 में राम जन्मभूमि को लेकर धार्मिक उन्माद फैल गया। पुलिस ने कानून व्यवस्था बनाने का प्रयास किया तो जमकर पथराव किया गया, जिसमें पुलिस व पीएसी के कई जवानों को चोटें आईं।
सात दिसंबर 92 को दंगाइयों ने पीएसी पर पथराव व फायरिंग कर दी, जिसमें चार जवान घायल हुए थे। पुलिस व पीएसी की ओर से की गई जवाबी फायरिंग में दो लोगों की जान चली गई। अगले ही दिन रामकुमार व शंभू नामक युवकों की लाशें बरामद हुई थीं। सात दिसंबर से 25 दिन के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया।
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1993 में चार जनवरी को शहर के मुहल्ला वेगम सराय के तालाब में दिनेश नामक युवक की लाश मिलने से शहर में तनाव फैल गया। पुलिस ने किसी तरह बवाल पर काबू पाया।
2001 में छह मार्च को एक व्यक्ति द्वारा दो लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद 2019 में एनआरसी व सीएए को लेकर उग्र भीड़ ने पथराव व फायरिंग करने के साथ ही रोडवेज बसों में आग लगा दी थी। इसमें दो लोगों की गोली लगने से मौत हो गई थी। इसको लेकर दो महीने तक धरना प्रदर्शन हुआ था। अब 24 नवंबर को भी जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हिंसा की गई।
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