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    कहीं खनन माफिया ले गए मिट्टी तो किसी जमीन पर भी काट दिए पट्टे... संभल में अपने ही स्मारकों को भूला ASI

    Updated: Wed, 29 Jan 2025 11:52 AM (IST)

    Sambhal News In Hindi हिंसा के बाद संभल के ऐतिहासिक स्मारकों की दुर्दशा हो रही है। संभल के ऐतिहासिक स्मारक एएसआई की अनदेखी के कारण बदहाल हैं। इनमें से कई स्मारकों पर अवैध कब्जा हो गया है और कुछ जर्जर हो चुके हैं। जिला प्रशासन ने हाल ही में इन स्मारकों का निरीक्षण किया और उनकी दुर्दशा सामने आई है।

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    संभल के फिरोजपुर में स्थित किला। जागरण आर्काइव

    जागरण संवाददाता, संभल : हिंसा के बाद संभल के ऐतिहासिक स्मारकों की दुर्दशा भी सामने आई है। इनमें नौ स्मारक गुमथल खेड़ा, सरथल खेड़ा, बेरनी व फिरोजपुर का किला, जामा मस्जिद, चंद्रेश्वर महादेव मंदिर, सौंधन का किला, पृथ्वीराज चौहान की बावड़ी और अमरपति खेड़ा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के संरक्षण में हैं। खास बात यह है इन स्मारकों को एएसआई ने भुला दिया था।

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    इस वजह से स्मारकों की करोड़ों की भूमि पर कब्जा कर लिया गया। उसके पट्टे भी कर दिए गए। भवन भी जर्जर हो चुके हैं। 2012 में संभल अलग जिला बन गया। लेकिन, कुछ पर अभी भी मुरादाबाद जिला दर्शाते बोर्ड लगे हैं। 24 नवंबर 2024 की हिंसा के बाद जिला प्रशासन ने स्मारकों को देखा तो इनकी दुर्दशा सामने आई है।

    वर्षों से एएसआई अधिकारी इन्हें देखने तक नहीं आए। लेकिन, अब जिला प्रशासन ने एएसआई की टीम को बुलाकर इन स्मारकों की हकीकत दिखाई तो चौकाने वाली बात सामने आई हैं। क्योंकि सभी स्मारक बदहाल हैं। जो, जिम्मेदारों की पोल खोलने के लिए पर्याप्त हैं।

    स्मारक - 1 अमरपति खेड़ा से खनन माफिया ले गए मिट्टी, जमीन पर भी काट दिए गए पट्टे

    गांव अल्लीपुर भीड़ स्थित अमरपति खेड़ा (टीला) एएसआई के संरक्षण में है। लेकिन, इस टीके को संरक्षित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए हैं। हकीकत यह है कि 1995 में इस टीले की जमीन पर पट्टे काट दिए गए और अब वहां पर खेतीबाड़ी होती है। खनन माफिया भी यहां पर सक्रिय हैं और टीले की भूमि से मिट्टी उठाते हैं। लंबे समय के बाद प्रशासन की जानकारी मिलने पर एएसआइ की टीम ने अब इस टीले का निरीक्षण किया था। उसके बाद डीएम-एसपी भी वहां पर पहुंचे थे। इतिहास पर नजर डालें तो यहां पर 21 समाधियां होती थीं। उनमें पृथ्वीराज चौहान कालीन गुरु अमरपति की बताई गई है।

    स्मारक - 2 चंदेश्वर मंदिर के बोर्ड पर लिखा मुरादाबाद, 65 बीघा भूमि पर हो गया अवैध कब्जा

    24 कोसीय परिक्रमा मार्ग पर स्थित गांव चंदायन स्थित चंदेश्वर महादेव भी एएसआई के संरक्षण में है। लेकिन, यहां पर ध्यान न देने की वजह से लोगों ने अवैध कब्जे कर लिए। पटवारी और प्रधान की संलिप्तता में यहां पर लगभग 65 बीघा भूमि पर पट्टे काट दिए गए। अब खेल सामने आया तो एएसआइ की उदासीनता का भी पता चला। कुल भूमि 84 बीघा थी मगर, मौके पर मात्र 19 बीघा ही मिली थी।

    स्मारक - 3 सौंधन का किला भी बदहाल, 200 लोगों ने कब्जाई जमीन

    गांव सौंधन में किला है। इतिहास के मुताबिक मुगल शासक शाहजहां के शासनकाल में 1645 ई. में करवाया गया था। बाद में एक हिंदू राजा ने इसे जीत लिया था। यहां हर साल एक मेला भी लगता है। 15 बीघा क्षेत्र में फैले किले पर अवैध कब्जा कर लिया गया है। 50 से अधिक मकान बने हैं। जिनमें 200 से अधिक लोग रहते हैं। किले की स्थिति भी बदहाल है।

    स्मारक - 4 जर्जरावस्था में फिरोजपुर का किला, हादसे का भी अंदेशा

    मुगल बादशाह शाहजहां के दौर में 1650 या 1655 में इस किले का निर्माण कराया गया था। इस किले के संरक्षण का जिम्मा भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास है। वर्तमान में इस किले की स्थिति बेहद जर्जर है। इस किले पर संरक्षित स्मारक का बोर्ड तो लगा है, लेकिन किला लगातार जर्जर हो रहा है। बताते हैं कि यहां पर सैयद फिरोज शाह फिरोजपुर गांव में आकर बसे थे। वह मुगल शासक शाहजहां के सेनापति थे।

    क्या है एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण)

    भारत के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत आने वाली यह संस्था देश में ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण का काम करती है। यह संस्था पुरातात्विक सर्वेक्षण यानी पुरानी चीजों का गहन अध्ययन करती है। देश के किसी हिस्से में पुरातात्विक इमारतें, संरचनाएं या वस्तुएं मिलने पर एएसआई ही उसकी जांच-पड़ताल करता है। ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव, मेंटेनेंस और अन्य जरूरी काम एएसआई की ही जिम्मेदारी है।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को अंग्रेजों के शासनकाल के समय साल 1861 में बनाया गया था। इसकी स्थापना देश की सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए संस्कृति मंत्रालय के तहत की गई थी।

    भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का कार्यालय संस्कृति मंत्रालय के अधीन है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की टीम जब किसी ऐतिहासिक इमारत या खंडहर का सर्वे करती है, तो उस पर संस्कृति मंत्रालय नजर रखती है।

    जिन ऐतिहासिक इमारतों के संरक्षण की जिम्मेदारी एएसआइ ने ली है, उनके काया कल्प की जिम्मेदारी भी उसी की है। इस बारे में कई बार एएसआइ को पत्राचार भी किया गया है। उम्मीद है कि इन ऐतिहासिक स्मारकों के कायाकल्प का काम भी जल्द ही शुरू हो जाएगा। - डा. राजेंद्र पैंसिया, डीएम संभल।

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