खेत से सीधे आपके स्मार्टफोन तक: संभल की स्ट्राबेरी अब आनलाइन, मिनटों में डिलीवरी
संभल की मीठी क्रांति! कभी ठंडे प्रदेशों की पहचान रही स्ट्राबेरी अब संभल के खेतों की शान बन गई है। जिले के 2.5 हजार एकड़ में इसकी खेती हो रही है। संभल ...और पढ़ें

प्रतीकात्मक चित्र
शोभित कुमार, जागरण, संभल। स्ट्राबेरी...यानी खट्टा-मीठा स्वादिष्ट फसल। अभी तक इसकी खेेती सर्द एवं पहाड़ी इलाकों में की जाती रही है लेकिन, अब संभल की धरा पर भी तकनीक से होने वाली इस फल की खेती हर दिन बढ़ती जा रही है। हजारों बीघा के अलग-अलग खेतों में होने वाली स्ट्राबेरी से किसानों के जीवन में खुशहाली भी छा रही है।
यहां की स्ट्राबेरी दिल्ली, बिहार और बंगाल के अलावा आनलाइन प्लेटफार्मों पर भी पहुंचने लगी है। वर्तमान में स्ट्राबेरी की खेती यौवन पर है और किसान लगातार निगरानी करने में जुटे हुए हैं। यहां पर करीब ढ़ाई हजार एकड़ में इसकी खेतीबाड़ी हो रही है। संभल से सटे हुए इलाके रायसत्ती, नठेर, कल्याणपुर, खानपुर खुमार, मंडलाई में स्ट्राबेरी की खेतीबाड़ी बढ़ती जा रही है।
अभी तक यहां पर आलू की खेती का चलन था मगर, कम लागत में अधिक मुनाफा होने की वजह से किसानों ने खेतीबाड़ी का ट्रेड बदल दिया है। नगर के मुहल्ला रायसत्ती निवासी तनवीर अहमद ने बताया कि उन्होंने वर्ष 200 में तीन एकड़ भूमि में इस खेती को शुरू किया था। जो आज बढ़कर करीब दस एकड़ हो गई है।
बोले, वर्ष 1989-81 में उनके पिता मशरूर अहमद पंतनगर में लगने वाले मेले में गए थे। जहां पहली बार स्ट्राबेरी के फल व पौधे को देखा था। इसके बाद कई बार वहां पर गए और उसके बारे में जानकारी ली। कई साल की जानकारी के बाद 1998 में सबसे पहले खेत के एक हिस्से में सौ पौधे लगाए थे। जहां उसके फल को परिवार के सदस्यों ने पहली बार खाया तो उसका स्वाद उन्हें काफी भाया।
ऐसे में रिश्तेदारों व परिचितों को भी बांटा था। क्योंकि उस समय तक उसका सिर्फ नाम ही सुना था। जब खाया तो स्वाद भी पता चला। साथ ही खेती का तरीका भी समझ में आ गया था। इसके बाद जमीन को तैयार किया और वर्ष 2000 में तीन एकड़ भूमि में खेती की। तनवीर अहमद ने कहा कि अब लागत पहले से अधिक है। मगर कीमत वही है।
पहले भी खाद व कीटनाशक दवा का उपयोग होता था और अब भी होता है। मगर उस समय उसकी कीमत कम थी। परन्तु अब कीमत भी पहले से काफी बढ़ गई है। ऐसे में लागत अधिक व मुनाफा कम हो गया है। यह स्ट्राबेरी एक फल है, जो कि कुछ साल पहले तक ठंडे व पहाड़ी इलाकों में होता था और इस कारण वहां से मंडी में कम ही मात्रा में आता था।
कम होने उस समय पैदावार कुछ ही स्थान पर होने के कारण उसकी कीमत भी अधिक थी। मगर अब धीरे धीरे पहाड़ी इलाकों के साथ साथ मैदानी इलाकों में भी इस स्ट्राबेरी की खेती किसानों को भा गई और वह इस काे करने में अपनी रुचि दिखाने लगे। इस कारण ही हर साल इस खेती का रकबा बढ़ता ही जा रहा है और अब करीब दो से ढाई हजार एकड़ में इसकी खेती हो रही है।
इस कारण यहां पैदा हो रही स्ट्राबेरी दिल्ली, लखनऊ, नोएडा, कानपुर के साथ ही उत्तराखंड के रुद्रपुर, बिहार व पश्चिम बंगाल की मंडी में जा रही है और वहां के लोगों को स्वाद से अपनी ओर लुभा रही है। नगर के मुहल्ला रायसत्ती निवासी तनवीर अहमद ने बताया कि उन्होंने वर्ष 200 में तीन एकड़ भूमि में इस खेती को शुरू किया था। जो आज बढ़कर करीब दस एकड़ हो गई है।
ड्रिप तकनीक से होती है सिंचाई
इस फसल को बहुत ही साफ सुथरे तरीके से किया जाता है। जिससे फल खराब न हो सके। इसके लिए मिट़्टी में ड्रिप तकनीक से पौधे की सिंचाई की जाती है। पहले क्यारी बनाई जाती है, फिर उस मिट्टी के ऊपर भी पन्नी बिछाई जाती है। जिससे स्ट्राबेरी का फल मिट्टी से न छू सके। ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि इस पौधे की जड़ जमीन के अंदर गहरे तक नहीं जाती है। वह क्यारी के सिर्फ उतरी पर्त में ही फैलती है। जिसके लिए ड्रिप तकनीक काफी कारगर है। ड्रिप तकनीक से कम पानी खर्च होता है और पौध भी नहीं गलती है।
सितंबर से अंतिम या अक्टूबर के पहले सप्ताह में होती है बोआई
स्ट्राबेरी के पौधे की बोआई सितंबर माह के अंतिम या अक्टूबर माह के पहले सप्ताह में की जाती है। जहां इसकी पौध महाराष्ट्र के पूना या हिमाचल प्रदेश से खरीदकर लाई जाती है। जहां पौध आने के बाद अगले दिन ही उसकी बोआई करा दी जाती है। पहले इसके एक पौधे की कीमत करीब पांच रुपये थी। जबकि अब एक पौधे की कीमत दस रुपये है।
बोआई के करीब एक माह के बाद उस पर फूल और करीब 20 दिन में इस पर फल आ जाता है। अक्टूबर में बोआई के बाद मार्च तक इस पौधे पर फल आता है। इसके बाद इसकी खेती खत्म हो जाती है। मगर इस दौरान फसल को काफी ध्यान से पालना पड़ता है। जहां उसे अधिक ठंड व कोहरे से बचाने के लिए खेत में प्रत्येक क्यारी को दिन ढलने से पहले ही पन्नी से ढक दिया जाता है।
मौसम साफ होने पर सुबह करीब नौ बजे पन्नी को हटा देते हैं। मगर इसके साथ ही उसकी नराई पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। क्योंकि पौधे के पास घास भी उग आती है। साथ ही कई बार पत्ते पीले पड़ने या सूखने से भी फल व पौधे को नुकसान हो जाता है। इस लिए रोजाना काफी संख्या में मजदूर स्ट्राबेरी के फल को तोड़ने के साथ नराई भी करते हैं। बाद में उसको इकट्ठा करके उसकी पैकिंग की जाती है।
आनलाइन बाजार में भी संभल की स्ट्राबेरी
अब प्रत्येक व्यक्ति हाइटेक हो रहा है। जिसमें किसान भी शामिल हो रहे हैं। इन्हीं में संभल के स्ट्राबेरी उत्पादक किसान मुहम्मद गुलरेज भी शामिल हैं। जिन्होंने आनलाइन सामान बेचने वाली कंपनी से हाथ मिलाया है और वहां से आर्डर मिलने के बाद वह कंपनी को अच्छी गुणवत्ता की स्ट्राबेरी अच्छे से पैक कर भेजते हैं और वहां से कंपनी द्वारा आर्डर करने वाले व्यक्ति को वह स्ट्राबेरी भेज दी जाती है।
उन्होंने कहा कि वह एप्पल एग्रो नामक कंपनी को स्ट्राबेरी बेच रहे हैं और वहां से जैप्टो नाम की कंपनी को दे देती है। वहां से आनलाइन आर्डर के बाद उनके द्वारा आर्डर करने वाले व्यक्ति को वह पहुंचा दी जाती है।
इसके लिए हमें पैकिंग के दौरान टिशू पेपर स्ट्राबेरी के नीचे लगाते है। ऐसे कंपनी के आर्डर के बाद चार से पांच घंटे में हम उसे दिल्ली पहुंचाते हैं। उसके बाद वहां से आनलाइन कंपनी को भेज दिया जाता है। जिससे वह उपभोक्ता को मिल सके। इस दौरान उसकी गुणवत्ता का अच्छे से ख्याल रखा जाता है।

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