UP News: सदियों से आयोजित हो रहा है मेला गुघाल, इसमें आते हैं लाखों श्रद्धालु, इसके बारे में कितना जानते हैं आप
Saharanpur News सहारनपुर में जाहरवीर गोगा जी महाराज की म्हाड़ी एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहाँ हर साल मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु आते हैं। गोगा जी को गोगा पीर के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है। श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां मांगी गई मन्नतें पूरी होती हैं।
जागरण संवाददाता, सहारनपुर। सहारनपुर में जाहरवीर गोगा जी महाराज की म्हाड़ी का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है और यह उत्तर भारत के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह म्हाड़ी गंगोह रोड पर मानकमऊ में स्थित है और इसे गुघाल मेले के नाम से भी जाना जाता है। यह मेला हिंदू-मुस्लिम एकता और सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक माना जाता है। इस बार यह मेला पांच सितंबर से शुरू होगा।
भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की दशमी से होता है तीन दिवसीय मेले का आयोजन
यहां हर वर्ष भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की दशमी को तीन दिवसीय मेला आयोजित होता है, जिसमें राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से लाखों श्रद्धालु निशान और प्रसाद चढ़ाने आते हैं। गत चार अगस्त को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाबा जाहरवीर गोगा म्हाडी मंदिर में आकर पूजा-अर्चना की थी। दो से चार अगस्त तक म्हाड़ी मेला और पांच सितंबर से मेला गुघाल का आयोजन होगा।
जाहरवीर गोगाजी का परिचय
जाहरवीर गोगा जी, जिन्हें गोगा पीर, जाहर पीर या गोगा चौहान के नाम से भी जाना जाता है, एक लोकदेवता और वीर योद्धा थे। उनका जन्म राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा गांव में विक्रम संवत 1003 (लगभग 946 ई.) में हुआ था। उनके पिता राजा जेवर सिंह और माता बाछल थीं, जो सरसावा (सहारनपुर) के राजा कुंवरपाल की पुत्री थीं। इस कारण सरसावा को उनकी ननिहाल माना जाता है।
म्हाड़ी की स्थापना
ऐसा माना जाता है कि गोगा जी सहारनपुर आए थे और गंगोह रोड पर रुके थे। उन्होंने अपने भक्त कबली भगत को मछली पकड़ने का कार्य छोड़कर पूजा करने का आदेश दिया और चांदी का नेजा (प्रतीक चिह्न) देकर म्हाड़ी की स्थापना कराई। यह म्हाड़ी राजस्थान के बागड़ से लाई गई ईंट से बनाई गई थी।
म्हाडी मेले का इतिहास
सहारनपुर में गोगा म्हाड़ी का मेला लगभग 800-1000 वर्षों से आयोजित हो रहा है। यह राजस्थान के बागड़ के बाद दूसरा सबसे बड़ा गोगा मेला माना जाता है। माना जाता है कि लगभग 1450 साल पहले गोगा जी ने सहारनपुर में नेजा स्थापित किया था, जिसके बाद से छड़ियों के पूजन और मेले की परंपरा शुरू हुई। 26 छडियों के आगमन के साथ मेला शुरू होता है। नेजा गोगा जी का प्रतीक है।
आस्था और परंपराएं
श्रद्धालु यहां आटा, चना, गुड़, मिठाई, झंडा और छड़ियां चढ़ाते हैं। मान्यता है कि सच्चे मन से मांगी गई मन्नत यहां अवश्य पूरी होती है। गोगा जी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है, और लोग सर्पदंश से सुरक्षा के लिए उनकी प्रार्थना करते है। गोगा जी में हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदाय समान रूप से आस्था रखते हैं। सहारनपुर का मेला इस साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है। मुस्लिम समुदाय उन्हें गोगा पीर के रूप में सम्मान देता है।
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