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    खाकी का मानवीय चेहरा: रामपुर की ‘स्कूल वाली दीदी’ ने बदली 17 बच्चों की तकदीर!

    Updated: Sat, 20 Dec 2025 05:45 AM (IST)

    उत्तर प्रदेश के रामपुर में, ‘स्कूल वाली दीदी’ के नाम से मशहूर एक महिला पुलिसकर्मी ने 17 गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा की ज्योति जलाई है। उन्होंने इन ...और पढ़ें

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    रामपुर की ‘स्कूल वाली दीदी’

    अनिल अवस्थी, जागरण, रामपुर। खाकी की वर्दी में समाज सेवा का जुनून। जरूरतमंद महिलाओं की पेंशन बनवाती हैं तो काम में अड़चन की शिकायत पर थाने से खुद दौड़ी चली जाती हैं। क्षेत्र का कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रह जाए इसको लेकर मुहिम चलाती हैं। ऐसी ही हैं महिला आरक्षी अमृता भूषण। क्षेत्र में इन्हें स्कूल वाली दीदी के नाम से जाना जाता है।

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    मूल रूप से रसूलपुर धंतला थाना खरखौदा जिला मेरठ की रहने वाली अमृता ने शिक्षक बनने की चाह में बीएड किया। कोरोना के फेर में शिक्षकों की भर्ती टली तो वर्ष 2021 में पुलिस विभाग में बतौर आरक्षी खाकी पहन ली। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वर्ष 2022 से अमृता खजुरिया थाने में तैनात हैं। पुलिस बीट के तहत गांव-गांव से जुड़ाव है।

    अगस्त-2025 से मिशन शक्ति के तहत गांव-गांव चौपाल लगाकर अमृता ने महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना शुरू किया। इसी क्रम में गांव मंसूरपुर में लगी चौपाल में एक महिला शाहजहां के साथ तीन बच्चों को उछलकूद करते देखा तो उन्होंने बरबस उनकी पढ़ाई के बारे में सवाल पूछ लिया।

    महिला ने बताया कि तीनों बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं। इस पर अमृता को झटका लगा। उन्होंने उसी चौपाल में महिलाओं को शिक्षा का महत्व समझाया। अमृता से प्रभावित होकर महिला ने तीनों बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाने पर हामी भर दी। अगले दिन अमृता उन बच्चों को लेकर प्राथमिक पाठशाला पहुंच गईं। तीनों को प्रवेश दिला दिया।

    इसके बाद गांव में स्कूल न जाने वाले बच्चों के बारे में जानकारी जुटाई। पांच अन्य परिवारों से आठ बच्चे तलाशकर उन्हें भी स्कूल पहुंचाया। ये बच्चे वसीर अहमद, नसीर अहमद, मुख्त्यार, अय्यूब, खालिद और रफीक के परिवार से संबंधित हैं। एक गांव में 11 बच्चों को स्कूल भेजने का श्रेय क्या मिला अमृता को लोग स्कूल वाली दीदी के नाम से जानने लगे।

    बात निकली तो गांव अहरों तक पहुंची। वहां के कुछ लोगों ने अमृता से संपर्क कर बताया कि आधार कार्ड न होने से छह बच्चों को स्कूल में प्रवेश नहीं मिल पा रहा है। अमृता ने तत्काल सभी बच्चों के अभिभावकों से संपर्क कर उनका शपथपत्र तैयार कराया। शपथपत्र के आधार पर सभी छह बच्चों को प्रवेश दिला दिया।

    अब तक 17 बच्चों को स्कूल पहुंचाने के बाद उनकी शिक्षा से वंचित अन्य बच्चों की तलाश जारी है। इतना ही नहीं अमृता ने गांव अहरो की फरमीदा बेगम व सरीफन और सरायकदीम की नसरीन की वृद्धावस्था पेंशन जबकि, भीमरी की रहने वाली ओमवती गिरि की विधवा पेंशन खुद दौड़भाग करके शुरू कराई है।

    इस तरह चढ़ा जुनून

    अमृता बताती हैं कि शिक्षा की बदौलत ही वह पुलिस विभाग की वर्दी पाने में सक्षम हुई हैं। इसी तरह अगर सभी बेटियां पढ़-लिख जाएंगी तो वह स्वावलंबी बनेंगी। मिशन शक्ति के दौरान घर-घर संपर्क करने से पता चला कि जागरुकता की कमी या छोटी-मोटी अन्य समस्याओं की आड़ में कई लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं जाने देते।

    अगर इन्हें थोड़ा जागरूक कर दिया जाए तो निश्चित रूप से लोग बच्चों को स्कूल भेजेंगे। शिक्षित होकर बेटियां आसानी से समाज की मुख्य धारा में जगह बनाने में सफल होंगी। अमृता बताती हैं कि कुछ इसी तरह की सोच के साथ उन्होंने अपने थानाक्षेत्र के हर बच्चे को स्कूल तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है।

     

     

    महिला सिपाही अमृता का गांवों से काफी जुड़ाव है। वह जरूरतमंद महिलाओं की मदद को तत्पर रहती हैं। साथ ही उनके प्रयास से शिक्षा से वंचित बच्चे स्कूल भी जाने लगे हैं।

    - इंतजार अहमद, ग्राम प्रधान मंसूरपुर

     

     

    महिला आरक्षी अमृता बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिलाने व जरूरतमंद महिलाओं की पेंशन शुरू कराने जैसे कार्यों में सराहनीय भूमिका निभा रही है। मिशन शक्ति में उसका प्रदर्शन उल्लेखनीय है। इसी तरह अन्य पुलिसकर्मियों को आगे बढ़कर समाजसेवा के कार्यों से भी जुड़ना चाहिए।

    - विद्या सागर मिश्र, पुलिस अधीक्षक


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