Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    श्री विद्या का केंद्र है श्री त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ

    By Edited By:
    Updated: Wed, 28 Mar 2012 10:29 PM (IST)

    रामपुर। चैत्र नवरात्र चल रहे हैं और देवी मंदिरों में भक्तों की भीड़ है। इस सब के बीच श्री त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ अपना अलग ही महत्व रखती है। उत्तर भारत में श्री विद्या का एकमात्र केंद्र होने के कारण यहां दूरदराज से भक्त साधना और मनोकामना पूर्ति के लिए आते हैं।

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    शक्तिपुरम कालोनी स्थित श्री त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ में त्रिपुरसुंदरी मां ललिता का विग्रह है। माता सदाशिव के नाभि कमल पर विराजमान हैं। बायी ओर श्रीराम का परिवार है, जिसमें श्रीराम, लक्ष्मण, माता सीता के अलावा बाबा बाल बजरंग की मूर्तियां हैं। दांयी ओर सद्गुरु परमहंस जितेंद्र चंद्र भारतीय जी की प्रतिमा है और उसके बराबर शिव परिवार की प्रतिमाएं हैं। शीर्ष पर श्री यंत्र स्थापित है, जो शक्ति का बिन्दु है। पीठ के आचार्य डा. राधे श्याम वासन्तेय ने बताया शक्ति साधना में दशमहाविद्या का विशेष महत्व माना जाता है। महात्रिपुरसुंदरी, राजराजेश्वरी, बाला, पंचदशी, षोडशी, श्री ललिता, त्रिपुरेश्वरी आदि नाम से श्री विद्या की ही उपासना विशेष रूप से प्रचलित है। बोले मां ललिता ज्ञान विज्ञान, आध्यात्मिक चेतना निर्गण-सगुण समेत सारी शक्तियों की अधिष्ठात्री है। चूंकि नवरात्र में शक्ति की साधना की जाती है इसलिए यहां खासी भीड़ रहती है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सवेरे से लेकर रात तक यहां भीड़ रहती है। नवरात्र में सवेरे पूजन अर्चन के साथ-साथ यज्ञ होता है। दोपहर में देवी के छंदों में महिलाओं की भीड़ रहती है तो शाम को ध्यान योग पर चर्चा के साथ-साथ नवरात्र और शक्ति साधना का गूढ़ रहस्य समझाया जाता है। नवमी पर विशाल यज्ञ और भंडारा होता है। इस दिन हजारों की भीड़ पीठ पर उमड़ती है। इसी दिन पूरे उत्तर भारत से भक्त माता के दर्शन, यज्ञ और महाप्रसाद के लिए आते हैं।

    ------

    परमात्मा से मिलाती है श्री विद्या

    रामपुर : आचार्य वासन्तेय ने बताया कि श्री विद्या जीवात्मा को परमात्मा से मिलन की स्थूल से बिन्दु तक की यात्रा है। बिन्दु अर्थात संपूर्ण ऊर्जा का केंद्र। बोले कि नाद और प्रकाश की ऊर्जा से तीनों लोकों का निर्माण हुआ। वहीं फिर आठ वाक शक्तियों में प्रकट हुई और स्वर एवं व्यंजन के रूप में 58 पीठों का सृजन कर दिया। उसी ब्रह्मांड शक्ति के साधकों ने अन्वेषण के लिए जो यंत्र विज्ञान का अनुभव किया, वहीं श्रीयंत्र है, जो ललिता महात्रिपुरसुंदरी का भौतिक विग्रह है। इसकी तीन प्रकार से साधना की जाती है। इसमें सगुण उपासना श्रीयंत्र के रूप में, सूक्ष्म की साधना मंत्र विज्ञान के रूप में और योगी चक्र विज्ञान के रूप में साधना करते हैं। ब्रह्मांड पुराण में भी श्री विद्या एवं श्री ललिता का विशेष उल्लेख है। श्री दुर्गा सप्तशती में हृदय ललिता देवी के नाम से उल्लेख मिलता है। वेदों में श्री विद्या को गुप्त रूप से प्रकट किया गया है। दक्षिण भारत में घर-घर श्री यंत्र और श्री विद्या का विधान रहा है। कामाख्या, त्रिपुरा, ललिता, भुवनेश्वरी आदि नामों से मंदिर बने हैं। आदि गुरु शंकराचार्य एवं उनके गुरु ने श्री विद्या का प्रचार प्रसार किया।

    इस तरह हुई शक्तिपीठ की स्थापना

    रामपुर : श्री त्रिपुरेश्वरी शक्तिपीठ की स्थापना लंबे अनुष्ठान के बाद हुई। इसके आचार्य डा. राधेश्याम शर्मा वासन्तेय ने बताया कि वर्ष 1983 में जब शक्तिपुरम कालोनी मूर्त रूप में आई तो यहां भूमि पूजन उनके गुरु आचार्य श्री जितेंद्र चंद्र भारतीय जी ने कराया। वर्ष 1986 में भूतल बनकर तैयार हुआ और शिव परिवार की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस बीच उनको ध्यान साधना में बाबा बाल बजरंग ने श्रीराम परिवार की प्राण प्रतिष्ठा का निर्देश दिए। बजरंग बाण का बचपन से पाठ करने के कारण श्री राम परिवार की प्राण प्रतिष्ठा के प्रयास शुरू हुए और वर्ष 1987 में हनुमान जयंती पर श्रीराम परिवार में जिसमें भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्मण और बाबा बाल बजरंग की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस मौके पर बजरंग बाण के असंख्य पाठ हुए। इस दौरान पीठ में ध्यान, योग, अनुष्ठान आदि होते रहे। वर्ष 1994 में साधना में ही आदेश हुआ कि यहां महात्रिपुरसुंदरी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा की जाए। इसके बाद इसके प्रयास शुरू हुए जिसमें उनके मित्रों, शिष्यों के साथ उनकी पत्‍‌नी विमला शर्मा ने भी पूरा सहयोग दिया। वर्ष 1996 में यहां माता के विग्रह के साथ-साथ श्री यंत्र की स्थापना हुई। माता के विग्रह की पूरे नगर में परिक्रमा कराई गई। इसके लिए एक माह तक अनुष्ठान चलता रहा। लाखों गायत्री मंत्र का जाप हुआ। इसी का परिणाम है कि पीठ सिद्ध रूप में हमारे सामने हैं जिसमें मनोकामना के लिए दूर-दूर से भक्त आते है। नवरात्र के अलावा गुप्त नवरात्र, ललिता जयंती, हनुमान जयंती, होली पर नरसिंह यज्ञ आदि अनुष्ठान होते हैं। सुबह यहां योग की कक्षाएं लगाई जाती हैं। योग आचार्य वासन्तेय ही कराते हैं। आचार्य रजा महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष रह चुके हैं। उनके निर्देशन में कई शोधार्थी हिन्दी में पीएचडी भी कर चुके हैं।

    मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर