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    पशुधन योजना पर बीमा कंपनी ने ऐसा क्या किया जो पशु पालक को देने पड़ गए 54000, उपभोक्ता फोरम ने दिया था आदेश

    Updated: Sat, 04 Oct 2025 03:18 PM (IST)

    रायबरेली में पशुधन बीमा योजना के तहत एक किसान को बीमा कंपनी द्वारा गुमराह करने पर उपभोक्ता फोरम ने कंपनी पर जुर्माना लगाया है। किसान सूरज पाल ने भैंस का बीमा कराया था जिसकी मृत्यु होने पर कंपनी ने दावा खारिज कर दिया था। फोरम ने किसान के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कंपनी को 50 हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है।

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    पशु पालक को गुमराह करना बीमा कंपनी को पड़ा मंहगा, देने होंगे 54 हजार

    जागरण संवाददाता, रायबरेली। सरकार द्वारा पशु पालकों के लिए चलाई जा रही पशुधन योजना पर बीमा कंपनी द्वारा किसान को गुमराह करना मंहगा पड़ा। उपभोक्ता फोरम ने पशु पालक को राहत देते हुए बीमा कंपनी को 50 हजार रुपये भुगतान का आदेश दिया है। क्षतिपूर्ति व्यय दो हजार व वाद व्यय के लिए भी दो हजार अतिरिक्त भुगतान के लिए कहा है।

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    बरगदहा कठगर निवासी सूरज पाल ने उपभोक्ता फोरम में वाद दायर करते हुए कहा कि कृषि कार्य के साथ-साथ वह पशु पालन कार्य करता है। वादी ने सरकार द्वारा किसानों के हित के लिए चलाई जा रही पशुधन बीमा योजना में एक भैंस का 50 हजार का बीमा कराया था, जो एक वर्ष तक मान्य था। इसके लिए उसने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी के प्रीमियम का भुगतान भी किया था।

    बीमा करते समय वादी ने चिकित्साधिकारी द्वारा जारी भैंस का स्वास्थ्य प्रमाण पत्र भी कंपनी को दिया था। भैंस बीमा अवधि में मर गई। इसकी सूचना तत्काल बीमा कंपनी को दी गई। इसके बाद कंपनी के सर्वेयर द्वारा क्लेम संबंधित सभी दस्तावेज तैयार कर भुगतान के लिए फाइल बीमा कंपनी को सौंप भेजी गई।

    काफी दिनों तक कंपनी की तरफ से किसी प्रकार की कोई सूचना नही दी गई, जबकि सूरज ने इसके लिए कंपनी के कई चक्कर भी लगाए। जून 2020 में बीमा कंपनी द्वारा पत्र भेजकर दावा नो क्लेम कर दिया गया। जिस पर थक हार कर सूरज ने उपभोक्ता फोरम की शरण ली। नोटिस भेजकर बीमा कंपनी को तामीला कराया गया।

    बहस के दौरान कंपनी के अधिवक्ता ने जवाब दिया कि बीमित व मृत पशु में अंतर है। वादी का पशु खेत में मरा है। अधिवक्ता ने कहा कि वादी द्वारा भैंस की ठीक से देखभाल नहीं की गई। वह खेत पर था, जबकि उसे घर पर होने चाहिए।

    अधिवक्ता ने कहा कि बीमा करते समय टैग पशु के कान के ऊपर लगा था, जबकि मृत पशु के टैग कान के बीच में लगा था। इस पर वादी के अधिवक्ता केपी वर्मा ने जवाब दिया कि ग्राम प्रधान व पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और सर्वेयर की जांच आख्या में कहीं भी पशु के अंतर होने का जिक्र है।

    चिकित्सक की रिपोर्ट में टैग जहां लगा था, वहीं पोस्टमार्टम के समय टैग लगा होने की बात भी लिखी है। दोनों की जिरह सुनने के बाद उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष मदन लाल निगम, सदस्य प्रतिमा सिंह व सुनीता मिश्रा ने बीमा कंपनी की सभी जवाब खारिज कर दिए। वादी के अधिवक्ता के दावे को स्वीकार करते हुए वादी के पक्ष फैसला सुनाया।