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चोर ने लिखा पत्र... 'महाराज जी जब से चुराई मूर्ति, मेरा हो रहा अनिष्ट'; बोरी में भरकर राधा-कृष्ण को छोड़ गया वापस

गऊघाट आश्रम के मंदिर से चोरी हुई अष्टधातु की मूर्ति वापस मिल गई है। चोर ने मूर्ति के साथ एक पत्र भी छोड़ा है जिसमें उसने अपनी गलती की माफी मांगी है। चोर ने लिखा है कि जब से उसने मूर्ति चुराई है तब से उसे बुरे सपने आ रहे हैं और उसके बेटे की तबीयत भी खराब हो गई है।

By Jagran News Edited By: Abhishek Pandey Updated: Wed, 02 Oct 2024 08:02 AM (IST)
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बोरी में भरकर राधा-कृष्ण को छोड़ गया वापस

जागरण संवाददाता, प्रयागराज। सात दिन पहले एक चोर गऊघाट स्थित आश्रम के मंदिर से अष्टधातु की मूर्ति चुरा ले गया। मूर्ति चोरी होने से आहत आश्रम के महंत ने अन्न-जल त्याग दिया। उधर, चोर के साथ कई तरह की विपरीत स्थितियां पैदा होने लगीं। वह चुपचाप पत्र के साथ मूर्ति वापस रख गया।

महंत को संबोधित पत्र में लिखा- महाराज जी मुझसे बहुत बड़ी भूल हुई, मेरा अनिष्ट हो रहा है, मुझे क्षमा कर देंगे। खालसा आश्रम के मंदिर से राधा-कृष्ण की अष्टधातु से बनी मूर्ति 23 सितंबर की देर रात चोरी हो गई। आश्रम के महंत स्वामी जयराम दास महाराज की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात के विरुद्ध केस लिखकर जांच की, लेकिन चोरों का पता नहीं लग पा रहा था।

इसी बीच मंगलवार दोपहर तकरीबन 12 बजे राष्ट्रीय राजमार्ग के सर्विस रोड स्थित गऊघाट लिंक मार्ग पर एक बोरी में लिपटी मूर्ति राहगीरों ने देखी तो स्वामी जय रामदास महाराज को बताया। इसके बाद मूर्ति को खालसा आश्रम ले गए। बोरी में एक पत्र भी था। जयराम दास महाराज ने राधा कृष्ण की मूर्ति का जलाभिषेक कर पुनः उसी मंदिर में स्थापित कर पूजा-पाठ प्रारंभ कर दिया।

मूर्ति मिलने से भक्त हर्षित हो उठे। नवाबगंज इंस्पेक्टर अनिल कुमार मिश्रा पहुंचे। महंत ने पुलिस को वह पत्र भी दिखाया, जिसमें चोर ने माफीनामा लिखा है।

चोर का माफीनामा

महाराज जी प्रणाम, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई। अज्ञानतावश मैने भगवान राधा-कृष्ण की मूर्ति को चुरा लिया था। जबसे मूर्ति को चुराया, तब से बुरे सपने आ रहे हैं। मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हो गई है। थोड़े पैसों के लिए मैंने बहुत गंदा काम किया है। मैंने मूर्ति बेचने के लिए उसके साथ काफी छेड़छाड़ की है। अपनी गलती की माफी मांगते हुए मैं मूर्ति को रखकर जा रहा हूं।

विनती करता हूं कि मेरी गलती को माफ करते हुए भगवान को फिर से मंदिर में रखवा दिया जाए। पहचान छुपाने के लिए पालिश कराकर उसका आकार बदल गया है। महाराज जी हमारे बाल-बच्चों को क्षमा करते हुए अपनी मूर्ति स्वीकार करें।

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