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    कभी भी टूट सकती हैं सांसें, फ‍िर भी ऑक्‍सीजन लेकर कुंभ पहुंचे श्रीमहंत इंदर गिरि‍, देखने वालों की लगी भीड़

    Updated: Mon, 06 Jan 2025 08:09 PM (IST)

    महाकुंभ मेले में लगातार देश भर से संत-महात्मा व अखाड़ों का आगमन जारी है। इसी क्रम में आवाहन अखाड़े के शिविर में श्रीमहंत इंदर गिरि‍ महाराज का आगमन हुआ है। वे ऑक्‍सीजन के सहारे कुंभ पहुंचे हैं। टूटती उखड़ती सांसों से साथ श्री महंत का कुंभ और सनातन प्रेम को देख कर हर कोई उनके सामने नतमस्तक हो गया। उन्‍हें देखने के ल‍िए लोगों की भीड़ लगी है।

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    ऑक्‍सीजन लेकर कुंभ पहुंचे श्रीमहंत इंदर गिरि‍।

    जागरण संवाददाता, महाकुंभनगर। सेक्टर-18 में सजा है श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा। यहां प्रवेश करते ही आपको बिस्तर पर मिलेंगे श्रीमहंत इंदर गिरि‍। इनके सिरहाने पर आक्सीजन सिलेंडर रखा है। ऑक्‍सीजन सिलेंडर की मदद से ही वह सांस लेते हैं। ऐसा बताया जा रहा है क‍ि उनका अब तक छह बार ऑपरेशन हो चुका है। डाक्टरों ने चलने-फिरने से मना किया है फिर भी वह नहीं माने। शिष्यों की मदद से इनकी दिनचर्या पूरी होती है।

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    श्रीमहंत इंदर गिरि‍ बताते हैं क‍ि वर्ष 2021 में हरिद्वार में कुंभ का आयोजन हुआ था। उस दौरान वह वहां पर अग्नि तपस्या कर रहे थे। अग्नि तपस्या के चलते शरीर का तापमान काफी अधिक था। अचानक ठंडा पानी उनके ऊपर गिरा और शरीर का तापमान लुढ़क गया। इसका सीधा असर उनके फेफड़ों पर पड़ा। सांस लेने में दिक्कत हुई तो अस्पताल पहुंचे।

    2021 से अब तक छह बार हो चुका है ऑपरेशन

    डॉक्टरों ने बताया कि फेफड़ों को काफी नुकसान पहुंचा। उनका खूब इलाज चला। 2021 से अब तक फेफड़ों के छह ऑपरेशन हो चुके हैं। सुधार नहीं होने पर डाक्टरों ने उन्हें हमेशा ऑपरेशन सपोर्ट पर रहने की सलाह दी है। अब ऑक्सीजन के सहारे बिस्तर पर ही भगवान की आराधना कर रहे हैं।

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    कार से पहुंचे महाकुंभ

    वह बताते हैं क‍ि 2025 के महाकुंभ के अखाड़ों में तैयारी चल रही थी। अखाड़े से सूचना मिली कि संतों को कुंभ के लिए कूच करना है तो मन नहीं माना। सोचा जीवन का क्या ठिकाना? महाकुंभ बार-बार नहीं आएगा। शिष्यों से बात करने के बाद यहां कार से उन्हें लाया गया।

    1986 से कुंभ में हो रहे शामिल

    श्रीमहंत इंदर गिरि बताते हैं कि जब उन्होंने संन्यास लिया तब उनकी उम्र मात्र आठ साल की थी। पढ़ाई दूसरी ही कक्षा तक हो पाई थी। माता-पिता चाहते थे कि वह संत बनें, क्योंकि उनके परिवार में उनसे पहले छह पीढ़ी संतों की रह चुकी थी। माता-पिता की इच्छा पर वह परिवार की सातवीं पीढ़ी में संत बने।

    2013 के कुंभ में बनाए गए थे अखाड़े के श्री महंत

    वहीं 1980 में उन्‍होंने दीक्षा प्राप्‍त की। 1986 में पहली बार वह हरिद्वार के कुंभ में शामिल हुए थे। तब से हर कुंभ और अर्धकुंभ में भाग लेते आ रहे हैं। हालांकि, बीमारी के कारण अब वह चलने-फिरने में असमर्थ हैं। उनके शिष्य उन्हें उठाकर सभी स्थानों पर ले जाते हैं। 2013 के प्रयागराज कुंभ में वह अखाड़े के श्री महंत बनाए गए थे।

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