'निर्धारित सेवा पूरी न करने के कारण ग्रेच्युटी पाने का अधिकार नहीं', इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा कि 60 वर्ष से अधिक की सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाली प्रधानाध्यापिका ग्रेच्युटी की हकदार नहीं है। कोर्ट ने बेटे द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें मां की बकाया ग्रेच्युटी की मांग की गई थी। कोर्ट ने शासनादेश का हवाला देते हुए कहा कि 60 वर्ष में सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापक ही ग्रेच्युटी के हकदार हैं।

विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 60 वर्ष नौ माह 11 दिन की सेवा के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने वाली सीनियर बेसिक स्कूल की प्रधानाध्यापिका को ग्रेच्युटी पाने का हकदार नहीं माना। कोर्ट ने अपनी मां की ग्रेच्युटी की मांग में दाखिल बेटे की याचिका को खारिज कर दिया है।याची की मां ने 60 वर्ष में सेवानिवृत्ति मांगी, लेकिन शिक्षा सत्र का लाभ भी ले लिया। शासनादेश के अनुसार 60 वर्ष में सेवानिवृत्त अध्यापक ही ग्रेच्युटी के हकदार हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने मिर्जा इमरान बेग की याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
याचिका में बेसिक शिक्षा अधिकारी एटा द्वारा मां की बकाया ग्रेच्युटी भुगतान करने से इन्कार करने के आदेश को चुनौती दी गई थी। याची का कहना था कि उसकी मां ने 60 वर्ष की आयु में स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति की मांग की। उसे स्वीकार करते हुए उन्हें 31 मार्च 2019 को सेवानिवृत्त कर दिया गया। इसके बाद याची की मां की 23 अप्रैल 2019 को मौत हो गई।
याची के पिता को ग्रेच्युटी व फेमिली पेंशन के अलावा सभी देयों का भुगतान कर दिया गया। एक अक्टूबर 2021 को याची के पिता की भी मौत हो गई। इसके बाद याची की मृतक आश्रित कोटे में चतुर्थ श्रेणी पद पर नियुक्ति की गई। उसने मां की बकाया ग्रेच्युटी की मांग में याचिका दाखिल की। कोर्ट ने चार हफ्ते में बीएसए एटा को निर्णय लेने का आदेश दिया।
बीएसए ने शासनादेश के आधार पर ग्रेच्युटी पाने का हकदार न पाते हुए अर्जी खारिज कर दी। उसे चुनौती दी गई थी। बीएसए के अधिवक्ता बीपी सिंह कछवाह का कहना था कि याची की मां की सेवा नियत अर्हता के अधीन नहीं थी। इसलिए वह ग्रेच्युटी पाने की हकदार नहीं हैं।
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