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    प्रयागराज के कटरा की रामलीला में पर्वत लेकर उड़ेंगे हनुमान जी, चक्कर लगाएगा मेघनाद, अचंभित व रोमांचित करेंगे कलाकार

    Updated: Sun, 21 Sep 2025 06:25 PM (IST)

    प्रयागराज में शारदीय नवरात्र के दौरान रामलीला का मंचन आस्था और उल्लास का माहौल बनाता है। श्रीकटरा रामलीला कमेटी की रामलीला अद्भुत कौशल और तकनीक के प्रयोग से दर्शकों को अचंभित करेगी। इस बार हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत लेकर उड़ते दिखेंगे वहीं मेघनाद अलग-अलग स्वरूपों में घूमेगा। रावण को यहां सम्मान दिया जाता है।

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    प्रयागराज में कटरा की रामलीला का मंचन करते कलाकार। जागरण आर्काइव

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज।  उल्लासित माहौल, हर्षित तन और प्रफुल्लित मन। उम्र का बंधन न, धनाढ्य-गरीबी का भेद। हर व्यक्ति में परमानंद की अनुभूति की व्याकुलता। आस्था की नैया पर आसीन होकर हर कोई पहुंचता है रामलीला मंचन स्थल। करुणा, वात्सल्य, त्याग व पराक्रम से परिपूर्ण रामलीला आनंदातिरेक से भर देती है। हर पल होता है भक्तिभाव से युक्त। रोम-रोम श्रीराम की भक्ति में रमता है, जिससे मानव कुछ पल के लिए सांसारिक भवसागर से दूर हो जाता है। अवसर होता है शारदीय नवरात्र का।

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    अचंभित करेगी श्रीकटरा की रामलीला

    अद्भुत कौशल, रोमांच और अचंभा से परिपूर्ण रहती है श्रीकटरा रामलीला कमेटी की लीला। ध्वनि-प्रकाश के माध्यम से मंचित होने वाली नयनाभिराम रामलीला की प्रस्तुति हर किसी को अचंभित करेगी। लीला को आकर्षित बनाने के लिए कमेटी नई लीला को जोड़ेगी। नारद मोह की लीला हर किसी को हंसाएगी। वहीं, लक्ष्मण के मुर्छित होने पर हनुमान जी द्रोणागिरी पर्वत लेकर हवा में उड़ते दिखेंगे। हनुमान जी काे पर्वत लेकर उड़ते देखना किसी अचंभा से कम नहीं होगा।

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    रामलीला में होगा तकनीक का प्रयोग

    मेघनाद को तकनीक के जरिए लीला के मैदान में अलग-अलग स्वरूप धारण करके घूमता दिखाया जाएगा। अद्भुत अभिनय, अस्त्र-शस्त्र, वस्त्र और तकनीक के अद्भुत समायोजन से रामलीला आकर्षित बनाई जाएगी। देश की यह एकमात्र रामलीला कमेटी है जहां रावण को सम्मान व आदर के भाव से देखा जाता है। रावण को विद्वान, पराक्रमी योद्धा माना जाता है।

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    डाल्वी साउंड संवाद को प्रभावी बनाएगा

    श्रीकटरा रामलीला की शुरुआत श्रृंगारिया समुदाय ने की, जो साल-दर-साल रोमांचित व आकर्षक हो रही है। अगर देखा जाए तो बीते कुछ वर्षों से लीला को आकर्षक बनाया जा रहा है। मंच पर जीवंतता लाने के लिए पेड़-पौधे लगाए गए हैं। डाल्वी साउंड संवाद को प्रभावी बनाएगा। वहीं पात्रों के मुकुट, वस्त्र, अस्त्र-शस्त्र नए मंगाए गए हैं। लंका से अयोध्या आने के बाद सीता की अग्नि परीक्षा का दृश्य देख हर कोई दंग हो जाएगा। यहां सीता अग्नि में साक्षात प्रवेश करते दिखेंगी।

    मन मोहेगा भरद्वाज आश्रम का दृश्य

    वहीं लंका से लौटने के बाद प्रयाग में भरद्वाज आश्रम का दृश्य विशेष रूप से डाला गया है। यहां श्रीराम महर्षि भरद्वाज से आशीर्वाद मांगेंगे। महर्षि ब्रह्माहत्या के कारण श्रीराम को आशीर्वाद नहीं देंगे। श्रीराम उसका प्रायश्चित के लिए सवा करोड़ शिवलिंग का निर्माण व अभिषेक करेंगे।

    1857 में शृंगारिया समुदाय के लोगों ने शुरू की थी रामलीला

    कमेटी के अध्यक्ष सुधीर गुप्ता कक्कू व मंत्री विपुल मित्तल के अनुसार वर्ष 1857 में भरद्वाज आश्रम पर रहने वाले नाथ सम्प्रदाय के शृंगारिया (शृंगार करने वाले) समुदाय के लोगों ने लीला की शुरुआत की। शुरुआत में रामलीला का मंचन करने वाले राम, लक्ष्मण व अन्य पात्रों को श्रृंगारिया परिवार के लोग कंधे पर बैठाकर पुलिस लाइन के पास स्थित मैदान तक ले जाते थे। वहीं रामलीला का मंचन होता था। फिर वापस सारे पात्रों को कंधे पर बैठाकर भरद्वाज आश्रम लाया था। इसका सिलसिला वर्षों तक चला।

    अंग्रेजों ने रामलीला पर लगा दी थी रोक

    कमेटी के पूर्व अध्यक्ष गोपाल बाबू जायसवाल बताते हैं कि वर्ष 1924 में अंग्रेजों ने रामलीला मंचन पर रोक लगा दिया, परंतु 1930 से स्थानीय लोगों के प्रयास से रामलीला पुन: शुरू हुई। तब से इसका सिलसिला अनवरत चल रहा है। हर साल इसमें कुछ नया करने का प्रयास किया जाता है।