Prayagraj Ramlila : पथरचट्टी रामलीला लुभाएगी, टीवी कलाकार पंकज बेरी मेघनाद के रूप में नजर आएंगे, अवधी गीत भी मन मोहेंगे
Prayagraj Ramlila प्रयागराज में शारदीय नवरात्र में रामलीला का मंचन एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजन के रूप में होता है। यह मंचन लोगों को सांसारिक बंधनों से दूर ले जाता है और श्रीराम की भक्ति में डुबो देता है। श्रीपथरचट्टी रामलीला कमेटी की रामलीला विशेष रूप से प्रसिद्ध है जहाँ अवधी गीतों और आधुनिक तकनीक का संगम देखने को मिलता है।

जागरण संवाददाता, प्रयगाराज। दशरथ नंदन की अद्भुत लीला देखनी हो तो एक बार प्रयागराज की ऐतिहासिक रामलीला जरूर देखें। एक बार देखेंगे तो बार-बार खुद ही रामलीला स्थल पर बरबस चले आएंगे। यहां की आकर्षक, परंपरागत और आस्था का संगम लिए हुए रामलीला में आधुनिकता का भी पुट नजर आता है। यहां श्रीपथरचट्टी रामलीला की विशेषता जान सकेंगे।
रामलीला की परंपरा वैसे तो सदियों पुरानी है। देश के अलग-अलग भागों में रामलीला मंचन के जरिए लोगों को धर्म-आध्यात्म व सनातन परंपरा से जोड़ा जाता रहा है। इसमें प्रयाग की भूमिका अग्रणी है। किवदंती है कि यहां 16वीं शताब्दी से रामलीला मंचन आरंभ हुआ। श्रीपथरचट्टी की रामलीला देखने दूर-दूर से लोग आते रहे हैं।
1980 के दशक में रामलीला मंचन में बदलाव हुआ। ध्वनि-प्रकाश से लीला का मंचन करवाकर प्राचीन परंपरा में रोचकता का तड़का लगाकर आकर्षक बनाया गया। कर्णघोड़ा शोभायात्रा, श्रीराम-भरत मिलाप, श्रीराम का राजगद्दी प्रमुख आकर्षण होता है।
अवधी गीतों की बहेगी बयार
प्राचीन श्रीपथरचट्टी रामलीला कमेटी की रामलीला 'कथा रामराज की' अत्यंत मनोरम, रोचक और मोहक होगी। रामलीला को नए और आकर्षक सेट सज्जा के साथ अवधी गीतों की सुरीली बयार बहेगी। ग्राफिक सिस्टम से तीर छोड़ना, युद्ध का रोमांच के साथ अयोध्या और लंका का राजदरबार, गंगातट, समुद्र सेतु, कुंभकर्ण का एक-एक अंक कटकर गिरना और हनुमान जी काे उड़ते देखना रोमांचक अनुभूति कराएगा।
पंकज बेरी भी करेंगे अभिनय
प्रमुख आकर्षण टीवी कलाकार पंकज बेरी का अभिनय होगा। वो मेघनाथ का पात्र निभाकर लीला दर्शकों को रोामंचित करेंगे। सुरसा-हनुमान संवाद, रामेश्वरम में श्रीराम द्वारा शिव का पूजन करना। भगवान शंकर का प्रकट होना लीला को रोमांचक बनाएगी।
कमेटी प्रवक्ता लल्लूलाल गुप्त ने बताया रामलीला का इतिहास
कमेटी के प्रवक्ता लल्लूलाल गुप्त सौरभ के अनुसार श्रीपथरचट्टी की लीला 16वीं शताब्दी में शुरू हुई। सर्वप्रथम कमौरीनाथ महादेव मंदिर हीवेट रोड के पास मैदान में रामलीला होती थी। तब सम्राट अकबर रामलीला देखने जाते थे। दर्शकों की भीड़ बढ़ने से जगह कम होने लगी। इसे देखते हुए 1837 में इसे शहर के मध्य भाग में करने का निर्णय लिया गया, उस समय चारों ओर पत्थर थे, जिसमें रामलीला का मंचन होता था। दर्शक भी उन्हीं पत्थरों में बैठकर लीला देखते थे।
रामलीला प्रसिद्ध हुई तो इस मुहल्ले का नाम रामबाग हो गया
यहां की रामलीला इतनी प्रसिद्ध हुई कि मुहल्ले का नाम रामबाग रख दिया गया और कमेटी श्रीपथरचट्टी के नाम से बनी। पहले अयोध्या, मथुरा से कलाकारों की टोलियां बुलाई जाती थी। धीरे-धीरे इसे विस्तृत स्वरूप दिया जाने लगा। फिर 1985 के बाद आधुनिकता लाने का प्रयास किया गया। वर्ष 1999 से इसे ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से प्रस्तुत किया जाने लगा। यह पूरे देश में पहली ऐसी रामलीला है जिसका प्रदर्शन ध्वनि और प्रकाश के माध्यम से पूरी भव्यता से किया जाता है।
भव्य होता है भरत मिलाप
श्रीपथरचट्टी रामलीला कमेटी का भरत मिलाप अत्यंत भव्य होता है। कमेटी की यह परंपरा 1837 से चली आ रही है। विजया दशमी के बाद एकादशी को चौक में होने वाले भरत-मिलाप को देखने के लिए दूर-दूर से सैकड़ों लोग आते हैं। भव्य मंच पर श्रीराम व भरत, लक्ष्मण-शत्रुघ्न को गले मिलते देखना हर किसी के लिए अद्भुत पल होता है।
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