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    Maithilisharan Gupt Birth Anniversary : साहित्यिक धारा बहाने झांसी से प्रयाग खिंचे चले आए थे मैथिलीशरण गुप्त

    Updated: Sun, 03 Aug 2025 03:49 PM (IST)

    राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म तीन अगस्त 1886 को झांसी के चिरगांव में हुआ था। उनका साहित्यिक नगरी इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से गहरा नाता था। जब भी यहां आते तो साहित्यकारों से मिलते कुछ लोगों के घर भी जाते थे। कवियित्री महादेवी वर्मा के बुलावे को वह टाल नहीं पाते थे।

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    राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविताएँ पूरे राष्ट्र को प्रेरणा देती हैं।

    जागरण संवाददाता, प्रयागराज। कवि मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि महात्मा गांधी ने यूं ही नहीं कहा। मैथिलीशरण ने अधिकतर कविताएं ऐसी लिखीं जो पूरे देश को प्रेरित करती हैं। 'नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो-कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो'।

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    आज जिस तरह से युवा, परिस्थितियों से हार कर अनुचित कदम उठा रहे हैं, ऐसी मनोदशा को दशकों पहले करीब से समझते हुए कवि मैथिलीशरण गुप्त ने यह प्रेरक कविता लिखी थी। इसे पढ़कर जीवन को तन्मयता से जीने और कुछ कर गुजरने का जोश भरा जा सकता है।

    प्रयागराज से था घनिष्ठ संबंध 

    मैथिलीशरण गुप्त का इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से घनिष्ठ संबंध था। हिंदी जगत में प्रतिष्ठा भी उन्हें यहां इंडियन प्रेस से प्रकाशित 'सरस्वती' पत्रिका से मिली। इसमें छपने के लिए उन्होंने अपनी पहली कविता ब्रजभाषा में लिखकर भेजी थी, जिस पर उपनाम ’रसिकेंद्र’ लिखा था। तत्कालीन संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने यह कहकर कविता लौटा दी थी कि अब रसिकेंद्र बनने का जमाना गया। कविता को खड़ी बोली में लिखिए। तब मैथिलीशरण गुप्त ने ’हेमंत' शीर्षक से कविता लिखकर भेजी जिसे कुछ संशोधित करके सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित किया गया।

    जन्म झांसी में, मन लगा प्रयाग में

    मैथिलीशरण गुप्त का जन्म तो तीन अगस्त 1886 को झांसी के चिरगांव में हुआ लेकिन उन्होंने साहित्यिक नगरी इलाहाबाद को अधिक प्राथमिकता दी। हिंदी साहित्यकार रविनंदन सिंह के अनुसार मैथिलीशरण गुप्त उप्र हिंदुस्तानी एकेडेमी की परिषद के दो बार (1933-36 और 1936-39) सदस्य रहे। जब भी प्रयाग आते तो साहित्यकारों से मिलते, कुछ लोगों के घर भी जाते थे। महादेवी वर्मा के बुलावे को टाल नहीं पाते थे।

    कवि दिवस के रूप में मनाई जाती है जन्मतिथि

    तीन अगस्त को मैथिलीशरण गुप्त की जन्मतिथि कवि दिवस के रूप में मनाई जाती है। मैथिलीशरण गुप्त के जन्म-शताब्दी वर्ष के अवसर पर पहली बार वर्ष 1987 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने कवि-दिवस मनाए जाने की शुरुआत की थी। हिंदुस्तानी एकेडेमी के तत्कालीन सचिव और प्रसिद्ध कवि डा. जगदीश गुप्त की संकल्पना को आधार बनाकर एकेडेमी के तत्कालीन अध्यक्ष डा. रामकुमार वर्मा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरबहादुर सिंह को 18 जुलाई 1987 को पत्र लिखकर कवि-दिवस मनाए जाने की औपचारिक स्वीकृति मांगी थी। इसे सरकार ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था।

    मैथिलीशरण का निधन 12 दिसंबर 1964 को हुआ

    प्रथम कवि-दिवस के अवसर पर मैथिलीशरण गुप्त के जिस तैलचित्र पर एकेडेमी में माल्यार्पण किया गया वह परंपरा आज भी निभाई जाती है। इसे डा. अभिनव गुप्त ने बनाया था, जो अब हमारे बीच नहीं रहे। मैथिलीशरण का निधन 12 दिसंबर 1964 को हुआ।

    रामकुमार वर्मा की असहमति को सहर्ष स्वीकारा

    वर्ष 1934 में डा. रामकुमार वर्मा ने मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य साकेत पर हिंदी साहित्य सम्मेलन की पत्रिका 'सम्मेलन' में एक समीक्षा लिखी थी। उसमें कुछ प्रसंगों पर असहमति दर्शाते हुए उन्होंने खंडनात्मक टिप्पणियां भी की थी। इस पर मैथिलीशरण गुप्त की कोई विपरीत प्रतिक्रिया नहीं हुई बल्कि उसी वर्ष अपने भाई सियारामशरण गुप्त के साथ रामकुमार वर्मा के घर आए और उनकी काव्यदृष्टि की प्रशंसा की। इसके बाद रामकुमार वर्मा ने मैथिलीशरण गुप्त पर एक लेख लिखा 'हिंदी काव्य के विकास में मार्ग-निर्देशक'।

    भारत-भारती में कराया समसामयिक दर्शन

    राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कृति भारत-भारती खूब प्रसिद्ध हुई। यह कृति भारत के गौरवशाली सांस्कृतिक इतिहास का दर्शन कराती है, ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, साधु संत, तीर्थ गुरु, शिक्षित, नेता, कवि, नवयुवक, धनी, शिक्षा, राष्ट्रभाषा, स्त्री शिक्षा और समय की अनुकूलता पर उन्होंने कलम चलाई। वर्ष 1912 में प्रकाशित यह कविता तीन खंडों अतीत, वर्तमान और भविष्य में विभाजित है। इसमें मैथिलीशरण गुप्त ने सामाजिक कुरीतियों और नैतिक पतन को भी बड़ी संजीदगी से उकेरा है। इसके अलावा उन्होंने गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा, पंचवटी की रचना की।