Maha Kumbh के अंतिम स्नान पर्व महाशिवरात्रि पर त्रिग्रहीय योग, संगम में डुबकी लगाने से अमृत के समान मिलेगा पुण्य
Maha Kumbh 2025 महाकुंभ का अंतिम स्नान पर्व महाशिवरात्रि 26 फरवरी को है। इस दिन कुंभ राशि में त्रिग्रहीय योग का दुर्लभ संयोग बन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार इस योग में संगम में स्नान करने से अमृत के समान पुण्य की प्राप्ति होगी। महाशिवरात्रि भगवान शिव की आराधना का विशेष पर्व है। इस दिन शिवलिंग की पूजा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

जागरण संवाददाता, महाकुंभ नगर । Maha Kumbh 2025: सनातन धर्म की आध्यात्मिक ऊर्जा के संवाहक महाकुंभ के साक्षी देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु बने। दैहिक, दैविक और भौतिक कष्टों से मुक्ति और तृप्ति की प्राप्ति को संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाई। यज्ञ-अनुष्ठान में लीन रहे।
पौष पूर्णिमा पर बने बुधादित्य योग में आरंभ हुए महाकुंभ की पूर्णाहुति (समापन) कुंभ राशि में त्रिग्रहीय योग के अद्भुत संयोग में होगा। कुंभ राशि में त्रिग्रहीय योग की पुण्य बेला में संगम में स्नान करने वाले श्रद्धालुओं को अमृत के समान पुण्य की प्राप्ति होगी।
13 जनवरी को पौष पूर्णिमा स्नान पर्व से शुरू हुआ था महाकुंभ
महाकुंभ का शुभारंभ 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा स्नान पर्व से हुआ। श्रद्धालुओं ने अखाड़ों का वैभव देखा, गृहस्थों का अखंड तप कल्पवास की साधना के साक्षी बने। संत सम्मेलनों में धार्मिक मुद्दों पर मंथन हुआ। कुंभनगरी प्रयाग की वसुंधरा पर संतों के आशीर्वाद की छांव में जो आए वह धन्य हो गए।
पौष पूर्णिमा, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, वसंत पंचमी, माघी पूर्णिमा स्नान पर्व पर त्रिवेणी के पवित्र जल में डुबकी लगाकर आत्मा की परमात्मा से मिलन की अनुभूति की। महाकुंभ का अंतिम स्नान पर्व महाशिवरात्रि 26 फरवरी को पड़ रहा है। उसमें भी दुर्लभ संयोग बन रहा है।
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी के अनुसार फाल्गुन कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 26 फरवरी की सुबह 9.19 बजे तक है। इसके बाद चतुर्दशी तिथि लग जाएगी। जो 27 फरवरी की सुबह 8.08 बजे तक रहेगी। चतुर्दशी तिथि पर महाशिवरात्रि का योग बनता है। उक्त तारीख पर श्रवण नक्षत्र शाम 4.10 तक है। इसके बाद घनिष्ठा नक्षत्र लगेगा। मकर राशि में चंद्रमा और कुंभ राशि के सूर्य, शनि व बुध संचरण करेंगे। यह मिलकर अमृत के समान योग बना रहे हैं।
अमृत कलश का प्रतीक है कुंभ राशि
पाराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय के अनुसार कुंभ का अर्थ कलश है। कलश का अभिप्राय अमृत कुंभ कलश से है। उसी कुंभ राशि में सृष्टि के सर्जक सूर्य, न्याय के देवता शनि और ज्ञान के प्रतीक बुध ग्रह का संचरण हो रहा है। जलतत्व की प्रतीक मकर राशि में शीतलता प्रदान करने वाले चंद्रमा का संचरण होना अद्भुत संयोग है।
महाकुंभ में लोग संगम के पवित्र जल में स्नान करने आ रहे हैं। उस दृष्टि से कुंभ और मकर राशि में जिन ग्रहों का संचरण हो रहा है वह अत्यंत प्रभावशाली और पुण्यकारी हैं। इसमें संगम स्नान करके भगवान शिव की साधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी।
कल्याणकारी है महाशिवरात्रि
ज्योतिषाचार्य डा. अमिताभ गौड़ के अनुसार महा अर्थात ''महान'', रात्रि अर्थात ''अज्ञान की रात''। परमात्मा शिव तब आते हैं जब अज्ञान अंधकार की रात्रि प्रबल हो जाती है। परम-आत्मा का ही नाम है शिव, जिसका संस्कृत अर्थ है ''सदा कल्याणकारी'', अर्थात वो जो सभी का कल्याण करता है। महाशिवरात्रि वह महारात्रि है जिसका शिव तत्व से घनिष्ठ संबंध है। यह पर्व शिव के दिव्य अवतरण का मंगल सूचक पर्व है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वह हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर आदि विकारों से मुक्त करके परम सुख शांत और ऐश्वर्य प्रदान करते हैं ।
विशेष फलदायी है शिवलिंग की पूजा
ज्योतिषाचार्य आचार्य नागेश दत्त द्विवेदी बताते हैं कि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव सबसे पहले शिवलिंग के स्वरूप में प्रगट हुए। इसी कारण से इस तिथि को पर भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग के प्रकाट्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। शिव पुराण के अनुसार शिवजी के निराकार स्वरूप का प्रतीक ''लिंग'' शिवरात्रि की पावन तिथि की महानिशा में प्रकट होकर सर्वप्रथम ब्रह्मा और विष्णु के द्वारा पूजित हुआ था। इसी कारण शिवलिंग की पूजा का विशेष फलदायी है।
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