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    भस्म की लेप, चांदी की पालकियां, घोड़े और अस्त्र-शस्त्र... Maha Kumbh में अमृत स्नान के लिए अखाड़े के साधु-संत तैयार

    Updated: Mon, 13 Jan 2025 09:44 PM (IST)

    रहस्य शक्ति और आभा के बीच गंगा-यमुना-सरस्वती की त्रिवेणी का ऐसा जीवंत क्षेत्र जहां रेत के एक कण मात्र के स्पर्श से भाग्योदय की मान्यता है। अखाड़ों की तैयारियां जोरों पर हैं। नागा संन्यासी शरीर पर भस्म का लेप लगा रहे हैं। रथ और घोड़े तैयार हो चुके हैं। मंगलवार सुबह जब धर्मपथ पर आगे बढ़ेंगे तो यही चमकाई जा रही चांदी की पालकियां उनका आसन होंगी।

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    14 जनवरी को अमृत स्नान के लिए अखाड़े के साधु-संत पूरी तरह से तैयार हैं। (तस्वीर जागरण)

    अमरीष मनीष शुक्ल, महाकुंभ नगर। संगम तट से लगभग तीन किलोमीटर दूर कल-कल करती गंगा की धारा को पार करते ही शुरू होता है अखाड़ों का साम्राज्य। रहस्य, शक्ति, राजर्षि आभा के बीच गंगा-यमुना सरस्वती की त्रिवेणी का ऐसा जीवंत क्षेत्र, जहां रेत के एक कण मात्र के स्पर्श से भाग्योदय की मान्यता है।

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    मकर संक्रांति की पूर्व संध्या का वैभव अपने पूर्ण रूप में आ चुका है। मानो महाकुंभ मेला को साकार करने का पूर्ण दायित्व इन्हीं अखाड़ों के पुरुषार्थ पर है। श्री शंभू पंचायती अटल अखाड़ा के द्वार पर सह गर्जना जैसा स्वर अचानक चौका देता है। ए कहां जाता है?

    परशुधारी संत ने तमतमाते हुए स्वर में कहा। सामने खड़ी युवाओं की टोली ने हाथ जोड़ लिया, कहा- महराज दर्शन करना है। फिर प्रश्न होता- आज प्रवेश नहीं मिलेगा, अपना कार्य बताओ? उत्तर की जगह टोली ने आगे की राह थाम ली।

    देवस्थल के पास भगवान गणेश और देव स्वरूप दो भाले अपने राज्य को देख रहे हैं। ये भाले अखाड़े के देवता हैं। यही भाला देव रूप में संगम तट की तरफ ले जाया जाएगा और अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित नागा इसकी रक्षा करते हुए आगे बढ़ेंगे। पूछने पर पता चला कि आठ महंतों का एक घेरा होगा और इस घेरे के बीच में दोनों देव भाले होंगे। इनके बाहरी हिस्से को कई चरणों में नागा साधुओं का चक्रव्यूह होगा।

    एक भाले पर लाल और दूसरे पर काला कपड़ा देख मन में सवाल उपजा, आखिर दोनों भालों पर लगे कपड़ों में कैसा अंतर दिख रहा है? जवाब महंत सत्यम गिरी ने दिया- यह काले रंग का तुर्रा लगे भाले का नाम भैरव प्रकाश भाला है, जबकि लाल तुर्रा वाला भाला सूर्य प्रकाश है। अखाड़े की सेना इन्हीं की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध होती है। इसी अखाड़े से सटे हुए दशनाम नागा संन्यासी श्री पंचायती अखाडा निर्वाणी का प्रवेश द्वार भीड़ से भरा है। यहां रात में धर्मध्वजा के लिए एक मंत्रोचार के बाद पवित्र धागों से बांध दी गई है।

    यहां सोमवार की पूरी रात नागा संन्यासी नहीं सोएंगे। बैनर छपकर आ चुका था, उस पर हल्दी का टीका कर रहे महंत ने अपनी तैयारियों का जिक्र किया। बोले-अमृत स्नान के लिए हम बहुत लालायित हैं। हर किसी को उनकी जिम्मेदारी सौंप दी गई है। घोड़े तैयार किए जा रहे हैं। योग्यता के अनुरूप नागाओं को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है।

    नागाओं ने शरीर पर भस्म का लेप लगाया

    नागाओं ने अपने शरीर पर भस्म का लेपन शुरू कर दिया है। अतिरक्त राख तैयार की जा रही है। 24 घंटे जलती आग और यज्ञ शाला की पवित्र भस्म शिखा, जटा, मस्तक व शरीर के हर अंग को सुरक्षा कवच में बदल देगी। यही विश्वास भी उनका है। अखाड़ों की यह तैयारियां आगे भी चल रही हैं। तापोनिधि पंचायती श्री आनंद अखाड़ा से लेकर 13 अखाड़े अपनी पूर्ण शक्ति के साथ मंगलवार सुबह जब धर्मपथ पर आगे बढ़ेंगे तो यही चमकाई जा रही चांदी की पालकियां उनका आसन होंगी।

    रथ और घोड़े तैयार हो चुके हैं

    साज-सज्जा के बाद दिव्य रूप ले चुके घोड़ों को देखकर मंत्रमुग्धता आएगी। निर्मोही अखाड़े का प्रथम दृश्य ही मन मस्तिष्क में बनी उस छवि का भाव अचानक बदल देता है। संतों का घेरा है और सामने भगवान शिव का प्रिय अस्त्र त्रिशूल है, जिसे शक्ति, सृष्टि और विनाश का प्रतीक माना जाता है।

    महाकुंभ क्षेत्र में सभी अखाड़ों में एक जैसा दृश्य है। संतों में लालसा है, मां गंगे से मिलने की, उन्हें आत्मसात करने की। इस लालसा में वर्षों बीते हैं तो अब उसे वह पूरा करना चाहते हैं। पूरी दुनिया महाकुंभ को देखना चाहती है और अखाड़ों का रहस्य, नागा संन्यासियों के पौरुष का इससे बेहतर समय और क्या होगा।

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