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    Maha Kumbh 2025: तेरे नयनों की ज्योति से मेरे अंधेरे पथ पर उजास, महाकुंभ में नहाने और कमाने आए दंपती की कहानी

    Updated: Wed, 15 Jan 2025 09:34 PM (IST)

    महाकुंभ में एक दंपती की कहानी सामने आई है जिसमें पति की आंखों में रोशनी नहीं है लेकिन पत्नी के साथ और सहारे से वह जीवन की चुनौतियों का सामना कर रहा है। दंपती जौनपुर से महाकुंभ में नहाने और कमाने के लिए आया है। आशिया बेगम ने बताया कि उनके पति की आंखों में पैदायशी दिक्कत है लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और जीवन संघर्ष का सामना किया।

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    महाकुंभ नगर में नागवासुकी मंदिर के पास एक-दूसरे का अवलंबन बना यह दंपती। जागरण

    पवन तिवारी, महाकुंभनगर। तू प्रति क्षण साथ है तो बावरा मन क्यों हो उदास, तेरे नयनों की ज्योति से मेरे अंधेरे पथ पर उजास… उनकी आंखों में अंधेरा है, पर वे हैं भाग्य के बड़े धनी। जैसे विधाता ने नेत्रों की ज्योति छीन ली, लेकिन संगिनी के रूप में जीवन की नैया का खेवनहार दे दिया। 

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    महाकुंभ में गंगा तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ के झोंकों से बचता-बचाता आगे बढ़ता जा रहा था यह जोड़ा। बांस का चार-पांच फीट का एक टुकड़ा। पत्नी आगे-आगे, पीछे पति। दोनों के कंधों पर बांस टिका था। 

    बांस के बीच टंगा था बड़ा सा झोला। झोला क्या, आप समझें कि यह उनकी पूरी गृहस्थी थी। गृहस्थी की इस गाड़ी को आगे बढ़ा रहा था सामंजस्य का पहिया। उनके बीच का असीम प्रेम इस गाड़ी का मानो ईंधन हो। 

    इस दंपती से बतियाने का मन हुआ। उनकी कई बातों ने तो आश्चर्य में डाल दिया। नाम बताया आशिया बेगम। साथ में कौन हैं ये? हसबेन (हस्बैंड)। अच्छा, क्या नाम है इनका? रोशन हाशमी। आशिया की मांग में सिंदूर था। 

    मैंने कहा- आपने सिंदूर लगाया है? हंसते हुए कहती हैं क्यों? नहीं लगा सकती? आप महाकुंभ में आई हैं आशिया? क्यों! क्या नहीं आ सकते हम? नहीं..नहीं बिलकुल आ सकती हैं। आशिया हंसती हैं। बातें सुनकर उनके पति के चेहरे पर भी हल्की सी मुस्कान तैर गई। 

    कहते हैं, जौनपुर से एक महीने के लिए यहां आए हैं। नहाने भी और कमाने भी। आशिया अपनी तकलीफ साझा करती हैं- कल रात खुले में गुजारनी पड़ी। डर रहे थे कि कहीं ओस में बीमार न पड़ जाएं। आज मेले के किसी बाबू ने बताया- रैनबसेरे में चले जाएं आप दोनों। वहीं जा रहे। ठौर मिलेगा तो एक महीने यहीं टिक जाएंगे। टिकुली बिंदी, चोटी, फीता बेचेंगे। 

    बात करते-करते थोड़ी और खुलती हैं आशिया। पूछा कि इनकी आंखों में कब से दिक्कत है? कहती हैं- पैदायशी। अच्छा! तब भी इनसे शादी कर ली आपने? शर्माती हैं- आंखें झुकी हुईं हैं। फिर मुस्कुराकर पति की ओर ताकती हैं। 

    कहती हैं- मन के बड़े सच्चे हैं ये। इनकी आंखों में रोशनी नहीं तो क्या? हम हैं ना। इनका साथ पाकर लगता है इस दुनिया में मैं अकेली नहीं। महाकुंभ के विशाल मेले की इस लघुकथा में प्रेम, विश्वास और जीवन संघर्ष के कितने मर्मस्पर्शी प्रसंग जुड़े हैं। 

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