Maha Kumbh 2025: अखाड़ों की संवैधानिक पीठ 'चेहरा-मोहरा' का आदेश सर्वोपरि, दोषी संत को मिलती है सजा
महाकुंभ 2025 में अखाड़ों की संवैधानिक पीठ चेहरा-मोहरा का आदेश सर्वोपरि है। दोषी संतों को सजा मिलती है। अखाड़ों में अनुशासन बनाए रखने के लिए आंतरिक संवैधानिक व्यवस्था है। चेहरा-मोहरा में सुनवाई के बाद ही दंड का प्रावधान है। अखाड़े के संतों के लिए त्याग तपस्या और अनुशासन का पालन अनिवार्य है। अखाड़ों के संतों को आंतरिक विवाद का निस्तारण कराने के लिए थाना व कोर्ट जाने पर रोक है।
शरद द्विवेदी, महाकुंभनगर। अखाड़ों की अनोखी दुनिया के अपने नियम-कानून हैं। इह लोक के साथ परलोक बनाने में जुटे संतों का अपना संविधान है। उसे मानने को हर कोई बाध्य है। चाहे वह साधारण संत हो अथवा कोई ख्यातिलब्ध महामंडलेश्वर। किसी ने हीलाहवाली की तो दंड का भागी बनना तय है, लेकिन उसे (दंड) मनमानी तरीके से नहीं दिया जाता। इस पीठ में निर्णय शास्त्र व नीति संगत होता है।
इसे प्राकृतिक न्याय के अनुसार व्यवहार में लिया जाता है। दोषी संत के खिलाफ पहले अभियोग चलाया जाता है। यह प्रक्रिया अखाड़े की संवैधानिक पीठ 'चेहरा-मोहरा' के निर्देशन में चलती है। चेहरा-मोहरा से पारित आदेश का पालन करना सबके लिए अनिवार्य व अकाट्य होता है।
अखाड़ों में अनुशासन सर्वोपरि है। उसे बनाए रखने की उनकी आंतरिक संवैधानिक व्यवस्था है। पूरी प्रक्रिया नियम-कानून के अनुरूप चलती है। इसके लिए बकायदा पीठ का गठन किया जाता है। अखाड़े के सभापति उसके अध्यक्ष होते हैं। इनके अंतर्गत मंत्री व सचिव, उपमंत्री व अखाड़े के पंच परपमेश्वर (पांच विद्वान संत) काम करते हैं। ये अखाड़े के समस्त संतों के कार्यों की निगरानी करते हैं।
छावनी प्रवेश के समय तैनात कोतवाल।-जागरण आर्काइव
अखाड़े की संपत्ति कहां-कहां है? उसे कौन देख रहा है? उसकी प्रगति कितनी है? हर अखाड़े के मुख्यालय में उसकी प्रतिमाह समीक्षा बैठक होती है। यह व्यवस्था कुंभ-महाकुंभ में भी चलती है। अखाड़े का शिविर लगने पर वहां की व्यवस्था पर नजर रखने के लिए एक कैंप चेहरा-मोहरा का बनाया जाता है। अखाड़े के प्रमुख पदाधिकारी प्रतिदिन वहां बैठते हैं। कहीं खामी मिलती है तो संबंधित संत को बुलाकर सुनवाई की जाती है। गलती साबित होने पर दंड की घोषणा की जाती है।
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सुनवाई का है संवैधानिक तरीका
अखाड़ों में किसी को यूं ही सजा नहीं मिलती। इसके लिए संवैधानिक प्रक्रिया अपनायी जाती है। अगर किसी के खिलाफ शिकायत मिलती है तो उसे अखाड़े के पंचों की ओर से नोटिस दी जाती है। एक नोटिस का जवाब न मिलने पर दोबारा दी जाती है। अगर फिर जवाब नहीं मिला तो तीसरी नोटिस दी जाती है।
इसके बाद भी जवाब न मिलने पर संबंधित संत के खिलाफ अनुशानात्मक कार्रवाई की जाती है। अगर वह नोटिस का जवाब देते हैं तो मामले की सुनवाई होती है। बचाव में पक्ष व साक्ष्य देने का मौका दिया जाता है। अगर अखाड़े के पंच उससे संतुष्ट होते हैं तो कार्रवाई नहीं की जाती। असंतुष्ट रहने पर सजा सुनाई जाती है।
छावनी प्रवेश के समय तैनात कोतवाल।-जागरण आर्काइव
...इसलिए है चेहरा-मोहरा नाम
जिस पर कोर्ट में दोषी को सजा देने से पहले उसे कटघरे में खड़ा करके सुनवाई की जाती है। न्यायमूर्ति पक्ष-विपक्ष की बातें सुनने के बाद साक्ष्य देखकर निर्णय देते हैं। उसी प्रकार अखाड़े में दोष लगाने वाले व दोषी संत को सामने खड़ा किया जाता है। दोनों का पक्ष सुनकर साक्ष्य देखे जाते हैं। एक-दूसरे का चेहरा देखकर सुनवाई होती है।
इसी कारण इस प्रक्रिया को 'चेहरा-मोहरा' नाम दिया गया है। अगर कोई गलत आरोप लगाता है तो उसे वही सजा दी जाती है जो दोषी होने के बाद संबंधित संत को मिलनी होती है। दोषी को अखाड़े से निष्कासित करने के साथ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाती है। आंतरिक कार्रवाई को दूसरे लोग न देख पाएं उसके लिए चेहरा-मोहरा में आम व्यक्ति का प्रवेश वर्जित रहता है।
निष्पक्षता के लिए मढ़ी का रखा जाता है ध्यान
अखाड़े की समस्त प्रक्रिया लोकतांत्रिक है। समस्त निर्णय में निष्पक्षता का पूरा ध्यान रखा जाता है। यह देखा जाता है कि दोषी संत किस मढ़ी के हैं। वह जिस मढ़ी के होते हैं निर्णायक मंडल में उनकी मढ़ी के संत को भी शामिल किया जाता है। इसके बाद सामूहिक राय पर निर्णय सुनाया जाता है जो सर्वमान्य होता है।
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थाना व कोर्ट जाने पर है रोक
अखाड़ों के संतों को आंतरिक विवाद का निस्तारण कराने के लिए थाना व कोर्ट जाने पर रोक है। अखाड़ों का मत है कि अंदर की बात बाहर नहीं जानी चाहिए। थाना व कोर्ट जाने पर मामला सार्वजनिक हो जाता है। साथ ही कानूनी प्रक्रिया वर्षों तक चलती है। इससे संत परंपरा व अखाड़ों की छवि खराब होती है।
बिना अखाड़े की अनुमति लिए अगर कोई संत अपना मामला लेकर कोर्ट अथवा पुलिस के पास जाते हैं तो उन्हें तत्काल पदमुक्त कर दिया जाता है। ऐसे संत को अखाड़े की समस्त जिम्मेदारियों से हटा दिया जाता है। इसके बाद अखाड़े की ओर से उसकी कानूनी लड़ाई लड़ी जाती है।
छावनी प्रवेश के समय महामंडलेश्वर की सुरक्षा में तैनात कोतवाल।-जागरण आर्काइव
अखाड़ों में इन कृत्यों पर मिलती है सजा
- धार्मिक गतिविधि की जगह धनार्जन में लिप्त रहना।
- आपराधिक लोगों से संबंध रखना।
- अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाने के लिए किसी से पैसा लेना।
- अखाड़े अथवा समाज की संपत्ति पर कब्जा करना।
- अखाड़े अथवा समाज के लोगों से झूठा वादा करके आर्थिक गबन करना।
- चारीत्रिक दोष लगना
पिछले 10 वर्षों में अखाड़ों द्वारा की गई बड़ी कार्रवाई
- अनुशासनहीनता करने पर जूना अखाड़ा ने महामंडलेश्वर पायलट बाबा को निष्कासित कर दिया। प्राश्चित करने पर उन्हें दोबारा वापस लिया।
- संन्यास परंपरा के विपरीत आचरण करने पर जूना अखाड़ा ने राधे मां को महामंडलेश्वर पद से मुक्त कर दिया।
- चारीत्रिक दोष का आरोप लगने पर शनि साधक महामंडलेश्वर दाती महाराज को श्रीमहानिर्वाणी अखाड़ा ने पदमुक्त कर दिया।
- चारीत्रिक दोष का आरोप लगने पर श्रीमहानिर्वाणी अखाड़ा ने महामंडलेश्वर नित्यानंद को निष्कासित कर दिया।
- शराब का कारोबार करने का मामला सामने आने पर श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने महामंडलेश्वर सचिन दत्ता को निष्कासित कर दिया।
- महामंडलेश्वर बनाने को पैसा लेने का आरोप लगने पर श्रीनिरंजनी अखाड़ा ने महामंडलेश्वर मंदाकिनी पुरी को निष्कासित कर दिया।
- माफिया डान प्रकाश पांडेय उर्फ पीपी की गलत जानकारी देकर जूना अखाड़ा में शामिल कराने पर थानापति राज गिरि का निष्कासित किया गया।
- अनुशासनहीनता करने पर निर्मोही अनी अखाड़ा ने नासिक के महामंडलेश्वर जयनेंद्रानंद दास, चेन्नई के महामंडलेश्वर हरेंद्रानंद, अहमदाबाद के महंत राम दास, उदयपुर के महंत अवधूतानंद, कोलकाता के महंत विजयेश्वर दास का निष्कासित किया।
अखाड़े की सुरक्षा में तैनात कोतवाल बैठकर चाय पीते।-जागरण आर्काइव
त्याग, तपस्या व अनुशासन का पालन करना अखाड़ों के संतों को अनिवार्य है। साधारण संत, पदाधिकारी, महामंडलेश्वर व आचार्य महामंडलेश्वर सबके लिए नियम बराबर है। गलती होने पर दंड का प्राविधान है। उसके पहले चेहरा-मोहरा में सुनवाई होती है। वहां से जो निर्णय आता है उसे मानने के लिए सभी बाध्य हैं। इससे कोई बच नहीं सकता। न किसी की मनमानी चलती है। यह प्रक्रिया निरंतर चलती है। इसके लिए अखाड़े के संतों को एकता और अनुशासन में बांधा जाता है।
-श्रीमहंत रवींद्र पुरी, अध्यक्ष अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व श्रीनिरंजनी अखाड़ा
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