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    प्रयागराज के चौक में कृष्णा का चटपटा खस्ता-छोला के स्वाद का क्या कहने, खाएंगे तो एक प्लेट और मांगेंगे...

    By Jagran News Edited By: Brijesh Srivastava
    Updated: Mon, 24 Nov 2025 02:59 PM (IST)

    प्रयागराज के चौक में कृष्णा का खस्ता-छोला अपनी अनूठी स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। 45 वर्षों से प्रह्लाद गुप्ता के परिवार द्वारा संचालित यह ठेला भारती भवन पुस्तकालय के पास स्थित है। ग्राहक इसके हींग, सौंफ और गरम मसाले से बने खस्ते और छोले के दीवाने हैं। कृष्णा गुप्ता बताते हैं कि स्वाद का रहस्य मसालों के मिश्रण में है। सुबह-शाम यहां नाश्ते के शौकीनों की भीड़ लगती है, जो एक प्लेट और मांगने को मजबूर हो जाते हैं।

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    प्रयागराज के चौक में ठेले पर ग्राहकों को खस्ता-छोला का स्वाद दिलाते कृष्णा गुप्ता। जागरण 

    अमरदीप भट्ट, प्रयागराज। जब कुछ चटपटा आइटम खाने के बाद ग्राहक कहें कि 'एक प्लेट और देना भाई' तो यह स्वाद का जादू नहीं तो और क्या है। यह जादू दिखाने के लिए कोई बड़ा सा चमचमाता हुआ आकर्षक मंच और रंग बिरंगी वेशभूषा नहीं बल्कि प्रहलाद गुप्ता के नाम से संचालित एक टूटा फूटा और बेहद पुराना ठेला ही काफी है।

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    हल्का नाश्ता जुबाे का बदल देगा स्वाद

    इनके ठेले पर बिकता है हींग, सौंफ और घर के पिसे गरम मसाले से बना हुआ खस्ता, साथ में भट्ठी की आंच पर खौलता हुआ काबुली चना, आलू मिला रसेदार छोला। सवाल पेट भरने का नहीं सुबह-शाम हल्का नाश्ता और जुबान के स्वाद का है। स्वाद अन्य जगहों से कुछ अलग मिले तो ग्राहक स्वयं ही दूर-दूर से खिंचे चले आते हैं।

    भारती भवन पुस्तकालय के समीप लगाते हैं ठेला 

    कुछ ऐसा ही है भारती भवन पुस्तकालय के समीप डॉ. बलवंत राम झा के बंगले के सामने ठेले पर बिकने वाले खस्ता और छोले का। वर्तमान में प्रह्लाद तो नहीं है लेकिन उनके बेटे कृष्णा गुप्ता इस पुश्तैनी व्यापार का संचालन कर रहे हैं। मां, पत्नी, बहन, भाई, सभी इस रोजगार से एक साथ जुड़े हैं। घर में सभी तरह के आइटम बनाए जाने के बाद उसे ठेले पर लाया जाता है।

    समोसा और पापड़ी का स्वाद भी लीजिए 

    बनते तो समोसा और पापड़ी भी हैं लेकिन सबसे ज्यादा ग्राहक खस्ता और छोला को ही पसंद करते हैं। 45 साल का लंबा अरसा गुजर गया है। प्रह्लाद गुप्ता ने सन 80 में इसकी शुरुआत की थी। अब बेटे कृष्णा गुप्ता इस दैनिक रोजगार में जुटे हैं। खस्ता और छोला में इस तरह के स्वाद के संबंध में कृष्णा गुप्ता बताते हैं कि मसाले के मिश्रण पर सब कुछ आधारित होता है।

    खस्ते में नहीं नजर आता घी  

    खस्ते को कोयले की भट्ठी की आंच में पकाने पर उसका स्वाद गैस वाले चूल्हे से अलग आता है। आमतौर पर अन्य दुकानदार जो खस्ता बनाते हैं उसमें घी की मात्रा अधिक हो जाती है। कृष्णा गुप्ता के यहां जो खस्ता मिलता है उसे कड़ाही से निकलने के करीब 15 मिनट बाद ठेले पर लाया जाता है ताकि जितना घी निकल सकता है निकाल जाए। 

    सुबह-शाम आइए फिर देखिए 

    नाश्ते के शौकीनों की भीड़ कृष्णा गुप्ता के पास सुबह और शाम को चार बजे के बाद लगती है। कहते भी हैं कि सुबह शाम को आइए फिर देखिए। मुट्ठीगंज, लोकनाथ, खुशहाल पर्वत, गुड़मंडी आदि मुहल्लों से ग्राहक इनके यहां खूब आते हैं। ज्यादातर लोग एक बार खस्ता छोला खाने के बाद दोबारा मांगते हैं। ठेले पर आए स्वतंत्र पांडेय ने कहा कि 1995 से यहां खस्ता, छोला खाने के लिये आ रहे हैं। लोकनाथ में कई अन्य जगह खस्ता मिलता है यह खानपान और जायके वाला पुराना पुराना मोहल्ला ही है लेकिन कृष्णा गुप्ता के खस्ता छोला में मिलने वाला स्वाद कुछ अलग ही है।

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