अमरूद की नई तकनीक ‘इस्पेलियर सघाई प्रणाली, करेले की बेल की तरह तारों पर लिपटेंगी डालें, दोगुना होगा उत्पादन
प्रयागराज समेत चार जनपदों में अमरूद की पैदावार बढ़ाने के लिए इस्पेलियर सघाई प्रणाली नामक एक नई बागवानी तकनीक का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। लखनऊ के केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस तकनीक में, अमरूद के पेड़ों की शाखाओं को तारों पर लपेटा जाता है, जिससे उन्हें पर्याप्त धूप मिलती है और उत्पादन दोगुना हो जाता है। अगले वर्ष तक फसल का उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।

अमरूद की नई तकनीक ‘इस्पेलियर सघाई प्रणाली का प्रयोग करके प्रयागराज के बागवान उत्पादन दोगुना कर सकेंगे।
सूर्य प्रकाश तिवारी, प्रयागराज। कहीं किसी बाग में अगर आपको अमरूद के पेड़ की डालें करेले की बेल की तरह तारों पर लिपटी दिखें तो चौंकिएगा नहीं। अमरूद की यह कोई नई प्रजाति नहीं, बल्कि बागवानी की नई तकनीक है जो उत्पादन को दोगुना करके बागवानों की झोली भरेगी। प्रयागराज समेत प्रदेश के चार जनपदों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में इस पर काम शुरू हो गया है।
खुसरोबाग में इस नई पद्धति से अमरूद बाग तैयार हो रहे
अमरूद की बागवानी की इस नई तकनीक ‘इस्पेलियर सघाई प्रणाली’ की खोज लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिकों ने की है। शहर स्थित औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र खुसरोबाग में इस नई पद्धति से ललित, स्वेता और इलाहाबादी सुरखा प्रजातियों की बाग तैयार की जा रही है।

मरूद की बागवानी में धूप की अहम भूमिका
औद्यानिक प्रयोग एवं प्रशिक्षण केंद्र के प्रभारी विजय किशोर सिंह ने बताया कि अमरूद की बागवानी में धूप की अहम भूमिका होती है। पुरानी पद्धति से होने वाली बागवानी में तीन से लेकर छह मीटर की दूरी के बीच पेड़ लगाए जाते थे। पेड़ के बड़े होने पर उनकी डालें पूरे बाग में छा जाती थी। धूप सिर्फ ऊपर के हिस्से पर ही लगती थी, जिसकी वजह से ऊपरी डालों में ही फल लगते थे।
अगले वर्ष तक फसल का उत्पादन शुरू होगा
इसी कमी को दूर करने के लिए यह नई पद्धति खोजी गई है। प्रयागराज के साथ ही सीतापुर, उन्नाव और बाराबंकी जनपदों में भी बागवानी की इस पद्धति का अभिनव प्रयोग चल रहा है। इस पद्धति से तैयार हो रहे नए बाग में अगले वर्ष तक फसल का उत्पादन शुरू होगा। इसके बाद बागवानों को इसे दिखाया जाएगा। निश्चित तौर पर यह पद्धति बागवानों की आमदनी बढ़ाने में फायदेमंद साबित होगी।
नई पद्धति में ऐसे करते हैं बागवानी
इस पद्धति में कतारबद्ध पौधे रोपे जाते हैं, जिसमें पौधों के बीच दो से तीन मीटर की दूरी होती है। हर कतार के दोनों सिरों पर लोहे के एंगल लगाए जाते हैं। इन्हीं एंगल में कुछ-कुछ दूरी पर छेद करके तार बांध दिए जाते हैं। पौधों की शाखाएं जैसे-जैसे बढ़ती हैं, वैसे-वैसे उन्हें इन्हीं तारों में लपेट दिया जाता है, जिससे वह इधर-उधर फैल नहीं पातीं। हर पौधे को पर्याप्त धूप मिलती है। फल हमेशा नई शाखाओं में आते हैं। इसलिए, फसल के सात से आठ माह पहले पेड़ों की छटाई होती। अधिक से अधिक नई शाखाएं निकलती हैं। उत्पादन दोगुना तक बढ़ जाता है।
बागों में बढ़ेगी पेड़ों की संख्या
अभी तक जिस पद्धति से बागवानी होती आई है, उसमें एक हेक्टेयर में 300 से लेकर अधिकतत एक हजार पाैधे लगाए जाते थे। जबकि, इस पद्धति में पौधों के बीच की दूरी घटा दी गई है। ऐसे में एक हेक्टेयर की बाग में करीब 1600 पौधे तक लगाए जा सकेंगे। पेड़ों का आकार छोटा होने के कारण फलों में बैग लगाने आदि में सहूलियत होगी।

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