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    Hindi Diwas 2025 : प्रयागराज का हिंदी भाषा को समृद्ध करने में ऐतिहासिक योगदान, ऐसे पुरोधाओं व हिंदी संस्थान के बारे में जानें

    Updated: Sun, 14 Sep 2025 05:54 PM (IST)

    Hindi Diwas 2025 आज हिंदी दिवस है। 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। प्रयागराज को हिंदी के विकास में विशेष योगदान देने का गौरव प्राप्त है। महामना पं. मदन मोहन मालवीय पं. बालकृष्ण भट्ट और महादेवी वर्मा जैसे मनीषियों ने हिंदी की जड़ों को मजबूत किया। हिंदी साहित्य सम्मेलन और हिंदुस्तानी एकेडेमी जैसे संस्थानों ने भी हिंदी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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    Hindi Diwas 2025 हिंदी को नन्हें पौधे से वटवृक्ष बनाने में प्रयागराज के हिंदी साहित्य सम्मेलन का भी योगदान है।

    अमरदीप भट्ट, प्रयागराज। Hindi Diwas 2025 प्रयागराज के हिंदी पुरोधाओं को हिंदी को नन्हें पौधे से वटवृक्ष बनाने में गौरव प्राप्त है। यह विशिष्टजन या प्रयाग की माटी से जन्मे या दूसरे शहरों से आकर अपना सर्वस्व जीवन यहीं रहकर हिंदी के लिए न्योछावर किया।

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    भारत रत्न महामना पं. मदन मोहन मालवीय, पं. बालकृष्ण भट्ट, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', पं. देवीदत्त शुक्ल, महीयसी महादेवी वर्मा, प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत जैसे मनीषी, इन सभी ने हिंदी की जड़ें इतनी मजबूत की जिससे बने वृक्ष की छांव तले कालांतर में हिंदी पुष्पित, पल्लवित हुई। 

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    14 सितंबर को मनाया जाता है हिंदी दिवस

    आज 14 सितंबर है। हिंदी दिवस हर वर्ष इसी दिन मनाया जाता है। तारीख विशेष इसलिए है, क्योंकि 14 सितंबर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला था। हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में लेखकों और संस्थाओं का अमूल्य योगदान रहा है। 

    अंग्रेजी की मानसिकता वालों को जवाब हैं हिंदी के पुरोधा

    Hindi Diwas 2025 वर्तमान पीढ़ी में हिंदी को लेकर भ्रम है। यह कि अंग्रेजी में बात नहीं कर पाते हैं, अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम स्कूल में पढ़ाते हैं और वेशभूषा पाश्चात्य देशों की शैली जैसी नहीं तो फिर आप हैं क्या ? ऐसी मानसिक रखने वालों को जवाब हैं वह लेखक जिन्होंने 1990 के आसपास तक हिंदी का सुनहरा काल बनाया जब भारत में पूरी तरह से ब्रिटिश सरकार की सत्ता स्थापित हो चुकी थी। उस दौर के लेखकों और समीक्षकों को एक दूसरे पर नाज था, हिंदी के प्रति उनमें निष्ठा की भावना कूट-कूट कर भरी थी।

    हिंदी को प्रमुखता देने की थी ललक

    उस दौर में आम बोलचाल के साथ ही लेखन और पठन-पाठन में भी हिंदी को प्रमुखता देने की ललक थी। उस कालखंड के बाद लोगों में हिंदी के प्रति भावना कुछ बदलने लगी। हिंदी पर आते खतरे को महामना पं. मदन मोहन मालवीय जैसे लोगों ने भांप लिया था। फलस्वरूप महामना के प्रयास से हिंदी साहित्य सम्मेलन जैसे संस्थान स्थापित हुए ताकि हिंदी की ताकत में कहीं कोई कमी न आने पाए।

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    हिंदी की सेवा के लिए सरकारी नौकरी भी छोड़ी

    सम्मेलन ही नहीं, इंडियन प्रेस और उप्र हिंदुस्तानी एकेडेमी को भी इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में ही स्थापित हुए, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जैसे पुरोधा हिंदी की सेवा के लिए रेलवे की नौकरी तक ठुकरा कर झांसी से प्रयागराज चले आए। हिंदी पर अंग्रेजी का हमला न होने पाए इसमें इन तीनों संस्थानों की बड़ी भूमिका रही। तीन प्रमुख मोर्चे की तरह इन संस्थानों ने प्रयागराज के ही लेखकों, हिंदी साहित्यकारों के बलबूते अंग्रेजी को सिर नहीं उठाने दिया।

    हिंदी साहित्य सम्मेलन, एक अनूठा संस्थान

    Hindi Diwas 2025 हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने, हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि के व्यापक प्रचार प्रसार के लिए उद्देश्य से नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ने एक मई 1990 को हुई बैठक में अखिल भारतीय स्तर पर एक साहित्य सम्मेलन बुलाने का निश्चय किया। 10 अक्टूबर 1910 को महामना पं. मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में काशी में ही हिंदी साहित्य सम्मेलन का अधिवेशन हुआ। इसमें सभी राज्यों के साहित्यकारों ने आकर भाग लिया।

    सम्मेलन का प्रधानमंत्री पीडी टंडन बने

    राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन के इस आशय का प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार किया गया कि इसी प्रकार के सम्मेलन हर साल विभिन्न शहरों में होने चाहिए। उसी बैठक में तय हुआ कि आगामी अधिवेशन प्रयाग में होगा। इसके बाद हिंदी साहित्य सम्मेलन नाम की एक समिति बनी, पीडी टंडन को इसका प्रधानमंत्री बनाया गया। पीडी टंडन चूंकि प्रयाग के रहने वाले थे इसलिए सम्मेलन का अस्थायी कार्यालय एक वर्ष के लिए प्रयाग में बनाए जाने का निर्णय हुआ। इसके बाद हिंदी साहित्य सम्मेलन उत्तरोत्तर उन्नति करता हुआ आगे बढ़ा और अखिल भारतीय स्तर पर इसकी ख्याति होने के साथ ही हिंदी की ताकत बढ़ती गई।

    सम्मेलन की ओर से दिए जाते हैं सर्वोच्च सम्मान

    हिंदी जगत का सर्वोच्च सम्मान साहित्यवाचस्पति, मंगला प्रसाद पारितोषिक, डा. प्रभात शास्त्री सम्मान, हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रबंध विभाग की ओर से दिए जाते हैं। हिंदी अधिवेशन हर साल अलग-अलग अहिंदी भाषी राज्यों में होता है। सम्मेलन का प्रचार विभाग हिंदी प्रचार की योजनाओं को संचालित करता है। हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री कुंतक मिश्र कहते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में साहित्यकारों और हिंदी साहित्य सम्मेलन ने विशेष योगदान दिया है। साहित्यकारों ने एकजुट होकर हिंदी की अलख जगाई। सम्मेलन ने अहिंदी भाषी राज्यों में हिंदी लेखन कर रहे लोगों को प्रोत्साहित किया, यह क्रम निरंतर चल रहा है।

    गौरवशाली अतीत समेटे है उप्र हिंदुस्तानी एकेडेमी

    हिंदुस्तानी एकेडेमी उत्तर प्रदेश के प्राचीनतम हिंदी संस्थानों में से एक है। इसका गौरवशाली अतीत है। इसकी स्थापना वैसे तो लखनऊ में तत्कालीन प्रांतीय गवर्नर मैरिस द्वारा 29 मार्च सन 1927 में हुई थी। कुछ समय बाद मुख्यालय प्रयागराज में स्थापित हुआ। हिंदी, उर्दू तथा हिंदी की सहयोगी भाषाओं अवधी, ब्रज, भोजपुरी, बुंदेली को समृद्ध व लोकप्रिय बनाने में एकेडेमी का अविस्मरणीय योगदान है। अपने स्थापना काल से ही एकेडेमी साहित्यिक एवं भाषायी विमर्शों द्वारा हिंदी साहित्य को समृद्ध करती आ रही है।

    इनकी भूमिक महत्वपूर्ण रही

    इस एकेडेमी के गठन में पं. यज्ञ नारायण उपाध्याय, डा. ताराचंद, तत्कालीन शिक्षा मंत्री राज राजेश्वर बली, हाफिज हिदायत हुसैन, बाबू धनपत राय 'प्रेमचंद', बाबू अयोध्या सिंह, बाबू श्यामसुंदर दास, श्रीधर पाठक, सर तेज बहादुर सप्रू की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एकेडेमी की ओर से वार्षिक साहित्य सम्मेलन की शुरुआत 10, 11 जनवरी 1930 को प्रयाग में हुई थी। इसके बाद चार, पांच और छह अप्रैल 1931 को दूसरा वार्षिक सम्मेलन, तीसरा पांच व छह मार्च 1932 को हुआ था। सर तेज बहादुर सप्रू के प्रयास से 1928 में व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया।

    पुरोधाओं की याद में आज भी होती है व्याख्यान

    डा. धीरेंद्र वर्मा, डा. उदय नारायण तिवारी, डा. हरिमोहन, विजयदेव नारायण साही आदि की स्मृति में व्याख्यानमाला के आयोजन अब भी होती है। समय-समय पर निराला, पंत, प्रेमचंद, फिराक गोरखपुरी, महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, अज्ञेय आदि पर भी व्याख्यानमालाएं आयोजित की जाती रही हैं।

    बनाया डिजिटल पुस्तकालय

    हिंदुस्तानी एकेडेमी ने अपने पुस्तकालय को डिजिटल कर दिया है ताकि आज की युवा पीढ़ी हिंदी और एकेडेमी की ओर उन्मुख हो। इसमें हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी की लगभग 36000 पुस्तकें शोधार्थियों, जिज्ञासु एवं गंभीर पाठकों को लाभान्वित कर रही हैं।

    ऐसे करें हिंदी के पुरोधाओं का सम्मान

    इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. मुश्ताक अली कहते हैं कि लक्ष्मीकांत वर्मा, रघुवंश सहाय वर्मा, डा. जगदीश गुप्त, सत्य प्रकाश मिश्र जैसे लोग काफी हाउस में बैठते थे। चर्चा के केंद्र में केवल हिंदी होती थी। एक वह दौर भी आया जब महादेवी वर्मा, निराला के सान्निध्य में हिंदी के पैरोकारों की जुटान होती थी। पं. बालकृष्ण भट्ट ने आधी रोटी खाई लेकिन अंग्रेजी भाषा से मोर्चा लेने के लिए 'हिंदी प्रदीप' का प्रकाशन कराया। इन सब पुरोधाओं का मान सम्मान बनाए रखने के लिए हिंदी भाषा लिखत पढ़त में ही नहीं, बाेलचाल में भी रखना चाहिए।

    प्रयागराज में कब क्या होंगे आयोजन 

    उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की ओर से 14 सितंबर से हिंदी पखवारा मनाया जाएगा।

    14 सितंबर- कविता पाठ ( श्री संस्कार वाटिका न्यास, इन्दलपुर, नैनी, प्रयागराज)

    16 सितंबर- प्रयागराज के चयनित विद्यालयों में हिंदी निबंध प्रतियोगिता

    19 सितंबर- सांस्कृतिक केंद्र में हिंदी की उपयोगिता पर भाषण प्रतियोगिता

    23 सितंबर- चार ग्रामीण विद्यालयों में काव्य पाठ एवं व्याख्यानमाला

    24 सितंबर- सांस्कृतिक केंद्र परिसर में युवा कवि सम्मेलन

    26 सितंबर- केंद्र के कर्मचारियों का हिन्दी निबंध लेखन प्रतियोगिता