सहमति के लिए शादी का झूठा वादा कर संबंध बनाना दुष्कर्म, हाई कोर्ट ने सुनाया यह फैसला
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि शादी का झूठा वादा कर महिला से संबंध बनाना दुष्कर्म है। कोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि झूठे वादे से प्राप्त सहमति, सहमति नहीं मानी जाएगी। यह फैसला पीड़िता के अधिकारों की रक्षा करता है।

तस्वीर का इस्तेमाल प्रतीकात्मक प्रस्तुतीकरण के लिए किया गया है। जागरण
विधि संवाददाता, जागरण, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शादी का झूठा वादा कर यौन संबंध बनाने वाले अभियुक्त के खिलाफ दायर चार्जशीट को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा है कि अगर शुरू से ही शादी का वादा झूठा था और एकमात्र उद्देश्य पीड़िता की सहमति हासिल करना था तो ऐसा यौन संबंध दुष्कर्म की श्रेणी में आएगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की एकलपीठ ने दिया है। गोरखपुर के सहजनवां क्षेत्र निवासी पीड़िता ने 17 जनवरी 2024 को रवि पाल, उसके भाई अंकित पाल, पिता महेंद्र पाल और मां मुन्नी देवी के खिलाफ दुष्कर्म और साजिश के आरोप में एफआइआर दर्ज कराई।
कहा कि रवि पाल ने उससे शादी का झूठा वादा करके 21 नवंबर 2023 को अपने घर, 23 नवंबर को एक होटल और दिसंबर में दिल्ली ले जाकर दुष्कर्म किया। तीन जनवरी 2024 को उसे दिल्ली में अकेला छोड़ दिया। आरोपित ने हाई कोर्ट में धारा 482 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर कर चार्जशीट और मुकदमे की कार्रवाई रद करने की मांग की। उसके वकील ने दलील दी कि संबंध सहमति से थे। एफआइआर में देरी हुई है और पीड़िता ने आरोपित को फंसाने के लिए झूठा मामला रचा है।
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पीड़िता के अधिवक्ता प्रिंस कुमार श्रीवास्तव ने दलील दी कि अभियुक्त ने शादी का झूठा वादा कर संबंध बनाया था। झूठे वादे पर मिली सहमति को वैध सहमति नहीं कहा जा सकता। हाई कोर्ट ने कहा कि एफआइआर और पीड़िता के बयानों से साफ जाहिर है कि अभियुक्त ने शादी का झूठा वादा कर ही उसकी सहमति हासिल की। यह मामला सहमति से बने यौन संबंधों वाला नहीं है, बल्कि झूठे वादे के आधार पर सहमति ली गई थी जो प्रथम दृष्टया दुष्कर्म की श्रेणी में आता है।

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