महाकुंभ में दिखा प्रकृति का संगम, बोनसाई से लेकर मटका-काले बांस की लगी प्रदर्शनी; ...और भी बहुत कुछ है खास
भारतीय वानिकी एवं अनुसंधान शिक्षा परिषद परेड मैदान में हरित महाकुंभ की झलक दिख रही है। इस प्रदर्शनी में बोनसाई पौधे दुर्लभ बांस की प्रजातियां औषधीय पौधे और प्राकृतिक कृषि मॉडल प्रदर्शित किए गए हैं। जहां एक ओर बोनसाई के छोटे-छोटे वृक्षों में प्रकृति का सौंदर्य सिमट कर खड़ा है वहीं विशाल और दुर्लभ बांस की प्रजातियां अपनी उपयोगिता और विशेषताओं से दर्शकों को आकर्षित कर रही हैं।

मृत्युंजय मिश्र, महाकुंभ नगर। महाकुंभ का महासंगम इस बार सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी एक अनोखा अनुभव लेकर आया है। गंगा की पावन धारा के किनारे जहां श्रद्धालु आत्मशुद्धि के लिए स्नान कर रहे हैं, वहीं भारतीय वानिकी एवं अनुसंधान शिक्षा परिषद परेड मैदान में "हरित महाकुंभ" की झलक दिखा रहा है।
इस प्रदर्शनी में बोनसाई पौधे, दुर्लभ बांस की प्रजातियां, औषधीय पौधे और प्राकृतिक कृषि मॉडल प्रदर्शित किए गए हैं। जहां एक ओर बोनसाई के छोटे-छोटे वृक्षों में प्रकृति का सौंदर्य सिमट कर खड़ा है, वहीं विशाल और दुर्लभ बांस की प्रजातियां अपनी उपयोगिता और विशेषताओं से दर्शकों को आकर्षित कर रही हैं।
प्रदर्शनी में रखी गईं दुर्लभ बांस की प्रजातियां
प्रदर्शनी में भारत की कुछ अत्यंत दुर्लभ बांस प्रजातियां प्रस्तुत की गई हैं, जिनमें से कई आमतौर पर देखने को नहीं मिलती हैं। यहां आए लोगों को बताया जा रहा है कि भारत में 136 से अधिक बांस प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनका न केवल पर्यावरणीय बल्कि आर्थिक महत्व भी बहुत अधिक है।
मीठा बांस भी प्रदर्शनी में रखा गया
इसमें उत्तर-पूर्व भारत और पश्चिम बंगाल में मिलने वाला पतला बांस, सजावटी सामान बनाने के लिए पीला बांस और दुर्लभ काला बांस शामिल है। इसके अलावा पूर्वोत्तर में मिलने वाला मीठा बांस भी प्रदर्शनी में रखा गया है, जिसके अंकुर का उपयोग खाद्य पदार्थ के रूप में होता है।
वहीं, स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाई गई बांस की टोकरी, फर्नीचर और अन्य हस्तशिल्प उत्पादों को भी रखा गया है, जिनकी खूबसूरती और निपुणता दर्शकों को आकर्षित कर रही है।
छोटे आकार में प्रकृति की भव्यता है बोनसाई
अगर प्रकृति को अपनी हथेलियों पर सहेजना चाहते हैं तो बोनसाई से बेहतर कुछ नहीं हो सकता है। प्रदर्शनी में बरगद, पीपल, आम और पाकड़ के बोनसाई पौधे रखे गए हैं, जो अपनी नन्हीं लेकिन प्रभावशाली उपस्थिति से मन मोह रहे हैं। प्रदर्शनी में केवल बांस और बोनसाई ही नहीं, बल्कि औषधीय पौधों और आधुनिक कृषि तकनीकों की भी विशेष झलक देखने को मिल रही है।
आर्थिक और पारिस्थितिकीय समृद्धि का प्रतीक है बांस
साथ ही मियावाकी पौधारोपण तकनीक और एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल को भी समझाया गया है। परियोजना सहायक श्रीप्रकाश ने बताया कि "बांस भारत में केवल एक पौधा नहीं, बल्कि आर्थिक और पारिस्थितिकीय समृद्धि का प्रतीक है।" इस प्रदर्शनी से लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि कैसे बांस और अन्य पौधों का उपयोग आर्थिक लाभ, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास के लिए किया जा सकता है।
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