Updated: Tue, 03 Sep 2024 02:46 PM (IST)
Prayagraj News इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फतेहपुर के रहने वाले एक व्यक्ति की तलाक की अपील खारिज कर दी जिसमें उसने अपनी पत्नी को पागल बताया था। अदालत ने कहा कि बिना आरोप साबित किए तलाक नहीं दिया जा सकता। व्यक्ति की अपील भी खारिज कर दी गई। अदालत ने पत्नी के पागलपन के आरोपों को साबित करने की आवश्यकता बताई।
विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि पागलपन के आधार पर पत्नी से तलाक की मांग करने वाले पति पर साक्ष्यों के आधार पर दावे को साबित करने का भार होता है। आरोप साबित न कर पाने के कारण तलाक न देने के आदेश के खिलाफ अपील कोर्ट ने खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने फतेहपुर के एक दंपत्ति की अपील पर दिया।
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फतेहपुर निवासी याची का विवाह 2005 में हुआ था। लगभग सात वर्षों तक पति पत्नी एक साथ रहे। उनकी दो बेटियां हुईं। विवाद के चलते पति-पत्नी जनवरी 2012 से अलग-अलग रह रहे हैं। पति ने पत्नी पर पागलपन और क्रूरता के आधार पर परिवार अदालत में तलाक के लिए अर्जी दाखिल की, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
आदेश को हाई कोर्ट में दी चुनौती
इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को यह साबित करना था कि उसकी पत्नी लाइलाज मानसिक बीमारी से पीड़ित है। तलाक के लिए ऐसी बीमारी होनी चाहिए, जिसमें दिमाग का अपूर्ण विकास हो, मनोरोगी विकार सहित दिमाग का कोई अन्य विकार या विकलांगता शामिल है। इसके अलावा ऐसा मानसिक विकार, जिसके चलते पीड़ित व्यक्ति असामान्य रूप से आक्रामक या गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदाराना हरकत करे।
कोर्ट ने कहा कि विपक्षी पत्नी एक सुशिक्षित महिला है। इसने स्नातक की पढ़ाई पूरी की थी। दोनों पक्ष सात साल तक वैवाहिक रिश्ते में रहे। ऐसा कोई तथ्य या सबूत प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे अधीनस्थ अदालत के आदेश में हस्तक्षेप किया जाए। कोर्ट ने अपील खारिज कर दी।
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