गुजरात में खुदाई के दौरान मिला डायनासोर का 'अंडा' लाया गया Mahakumbh, प्रदर्शनी में देखने वालों की जुटी भीड़
महाकुंभ में शाकभक्षी डायनोसार टाइटैनोसोरस के अंडे का जीवाश्यम लाया गया है। यह लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन गया है। दिन भर इसे देखने के लिए लोग पहुंचते हैं। इसे गुजरात के खेड़ा जिले में राहियोली से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था। जिसे अब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने सेक्टर एक में अपनी प्रदर्शनी में आम लोगों के देखने के लिए रखा है।

अमरीश मनीष शुक्ल, महाकुंभ नगर। वर्ष 2015 में हॉलीवुड की एक फिल्म "जुरासिक वर्ल्ड" आई थी। डायनासोर पर आधारित इस फिल्म ने करोड़ों दर्शकों को रोमांच और आश्चर्य से भर दिया था। इसके बाद डायनासोर को लेकर खूब चर्चा हुई। तब से एक सवाल हर कोई एक दूसरे से पूछ ही लेता है कि क्या आपने कभी डायनासोर का "अंडा" देखा है...?
यह कितना बड़ा होता है, कैसा दिखता है, वजन क्या है..? ढेर सारे सवाल अब तक आपके मन में कौंध उठे होंगे। पर अब इसे अपनी खुली आंखों से देख व हाथ से छू सकते हैं। महाकुंभ में शाकभक्षी डायनोसार टाइटैनोसोरस के अंडे का जीवाश्यम लाया गया है। यह लोगों के लिए कौतूहल का विषय बन गया है।
गुजरात में खुदाई के समय मिला था अंडा
दिन भर इसे देखने के लिए लोग पहुंचते हैं। इसे गुजरात के खेड़ा जिले में राहियोली से खुदाई के दौरान प्राप्त किया गया था। जिसे अब भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने सेक्टर एक में अपनी प्रदर्शनी में आम लोगों के देखने के लिए रखा है। टाइटेनोसौर आज के पैटागोनिया के जंगलों में लगभग 100 से 95 मिलियन वर्ष पूर्व, क्रिटेशस काल के अंत में रहते थे और यह अब तक खोजे गए सबसे बड़े डायनासोरों में से एक है।
महाकुंभ के सेक्टर एक में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की प्रदर्शनी में विभिन्न खनिज पदार्थ, जीवाश्म आदि के बारे में जानकारी देते अधीक्षण भूविज्ञानी उत्कर्ष त्रिपाठी, सुभाष कुमार। जागरण
122 फीट लंबा था जीवाश्म
यह 122 फीट लंबा था। यानी आज के छह मंजिला घर के बराबर। यह जानवर जीवाश्म विज्ञान में हाल ही में मिली सबसे शानदार खोजों में से एक है। यहां हिमाचल प्रदेश में मिला स्टीगोडान इनसिगनिस का दायां निचला जबड़ा भी जीवाश्म के रूप में आ चुका है। स्टीगोडान के प्रत्यक्ष पूर्वज एशियाई हाथियों, अफ़्रीकी हाथियों और मैमथों के अलग-अलग विकासवादी सफर शुरू करने से भी पहले से मौजूद थे।
वे 11 मिलियन साल पहले से लेकर 6,000 साल पहले तक एशिया, अफ़्रीका और यहां तक कि उत्तरी अमेरिका में मौजूद थे। अब उनका सिर्फ जीवाश्म ही है। इसे लोग प्रयाग में देख सकते हैं। इसके अलावा भारत में पाए जाने वाले विभिन्न खनिजों को यहां देखा जा सकता है।
कैसे बनी पृथ्वी और कैसे आया जीवन
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के अधीक्षण भूविज्ञानी उत्कर्ष त्रिपाठी बताते हैं कि यहां 542 मिलियन वर्ष पूर्व प्रीकैम्ब्रियन युग का स्ट्रोमेटोलाइट्स देख सकते हैं। इससे पृथ्वी पर प्रारंभिक जीवन के बारे में जानकारी मिलती है। यह अतीत की जलवायु, महासागरीय रसायन विज्ञान एवं वायुमंडलीय स्थितियों के बारे में बताता है।
वहीं प्राचीन स्ट्रोमेटोलाइट्स का अध्ययन मंगल जैसे अन्य ग्रहों पर संभावित जीवन की खोज में योगदान देता है। पृथ्वी कैसे बनी? महाद्वीप कैसे बने? जीवन की उत्पत्ति कैसे हुई? इसका पूरा क्रमिक विकास वैज्ञानिक ढंग से समझा व देखा जा सकता है। भू विज्ञान के क्षेत्र अथवा जिज्ञासु के अलावा हर तरह के लोगों को यहां चौंकाने वाली वस्तुएं भी देखने को मिलेंगी।
क्या-क्या देखने को मिलेगा
सेक्टर एक में लगी भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की प्रदर्शनी में मध्य प्रदेश के कटनी से लाया गया बाक्साइट, बिहार से लाया गया एसबेस्टस, गढ़वाल उत्तराखंड से लाया गया जिप्सम, स्पिटी घाटी हिमालय से आमेनाईट देख सकते हैं। इसके अलावा गोंडवाना से लाया गया वर्टीब्रेरिया, स्ट्रोमेटोलाइट, सोनभद्र से लाया गया स्वर्णयुक्त स्फटिक भी प्रदर्शनी में रखा गया है।
इसके अलावा मलंजखंड एमपी से लाया गया चैल्कोपाइराइट, हिनोटा से किंबरलाइट, जावर राजस्थान से गैलेना, कर्नाटक से हेमाटाइट, राजस्थान से लेपिडोलाइट को भी यहां देखा जा सकता है।
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