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    HC Verdict: निठारी कांड में जांच एजेंसियों को बड़ी नसीहत है इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला, जान‍िए क्‍या-क्‍या कहा

    By Jagran NewsEdited By: Prabhapunj Mishra
    Updated: Wed, 18 Oct 2023 08:26 AM (IST)

    Nithari Kand निठारी कांड में सोमवार को आए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद जहां सीबीआई की जांच पर कई सवाल खड़े क‍िये हैं वहीं दूसरी ओर हाईकोर्ट का यह फैसला बड़ी नसीहत भी है। सवाल यही है कि हत्याएं दर हत्याएं होती रहीं लेकिन किसने की उसका पता नहीं चल सका तो क्यों? सवाल यह भी उठ रहे हैं कि क्या जांच एजेंसी को ऐसे मामले में विवेचना के लिए प्रशिक्षित करने की जरूरत नहीं है।

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    Allahabad High Court: नसीहत है न‍िठारी कांड पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

    विधि संवाददाता, प्रयागराज। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निठारी कांड में दिए गए फैसले से जांच एजेंसियों को बड़ी नसीहत दी है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य और अभियुक्त के अपराध कुबूल करने संबंधी इकबालिया बयान की निशानदेही पर की गई बरामदगी सुबूतों की कड़ी कसौटी पर कसी जाएगी। इकबालिया बयान में किए गए अपराध के राजफाश को सुबूतों के आधार पर साबित नहीं किया गया तो अभियुक्त संदेह का लाभ उठा लेगा।

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    पूर्व शासकीय अधिवक्ता अरुण कुमार मिश्र कहते हैं कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173(8)के तहत ट्रायल के दौरान यदि विवेचना में खामी थी तो पुनर्विवेचना की जानी चाहिए थी। अपराध के उचित और निष्पक्ष विचारण के लिए सही विवेचना जरूरी है। निठारी कांड के ट्रायल के दौरान जांच एजेंसी सीबीआइ ने 118 दस्तावेजी साक्ष्य व 46 गवाह पेश कराए। बताया कि अभियुक्त की निशानदेही पर नरकंकाल व औजार की बरामदगी हुई।

    कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि पुलिस ने सुरेंद्र कोली को तीन दिसंबर 2006 को पूछताछ के लिए थाने बुलाया और 29 दिसंबर 2006 को गिरफ्तार किया। अभिरक्षा में 60 दिन रखकर प्रताड़ना दी, उसे पीटा गया और इकबालिया बयान दर्ज किया गया। यह गंभीर मामला है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। हालांकि इसी इकबालिया बयान पर भरोसा कर ट्रायल कोर्ट ने 13 आपराधिक मामलों में कोली को दोषी मानकर मौत की सजा सुनाई थी।

    कोली को पांच मिनट की विधिक सहायता दी गई। हाई कोर्ट ने माना है कि अभियुक्त को प्रभावी विधिक सहायता न देना, मेडिकल न कराना और कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी कर जुर्म कुबूल करवाने को बयान साबित हुआ नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा है कि कोली, मोनिंदर सिंह पंधेर का घरेलू नौकर था। उसने गरीबी के कारण स्कूल छोड़ा। ढाई हजार रुपये की तनख्वाह पर नौकरी से अपनी बूढ़ी बीमार मां, पत्नी व दो बच्चों का पालन कर रहा था।

    उसका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं। एक ही तरीके से डेढ़ साल में 17 हत्याएं की गईं। मानव शरीर काटने की उसे पूर्व में जानकारी नहीं थी। पंधेर की कोठी व जलनिगम की रिहायशी कालोनी के गलियारे में 17 खोपड़ियां बरामद हुईं। किसी ने दुर्गंध की शिकायत नहीं की। गिरफ्तारी में भी स्थापित मानकों का पालन नहीं किया गया। जनता का कोई स्वतंत्र गवाह नहीं है। गिरफ्तारी मेमो तैयार नहीं किया गया। पंचनामे में भी कोई स्वतंत्र गवाह नहीं आया।

    कोर्ट ने कहा है कि सीबीआइ ने कुल 16 मामलों में चार्जशीट दायर की। पुलिस कस्टडी में कोली 60 दिन रहा है। उस पर हमला भी हुआ। जेल में भी उसने खतरा महसूस किया। ऐसे में नहीं माना जा सकता कि कोली का इकबालिया बयान स्वैच्छिक है। अभियोजन के एक गवाह ने खुद ही कहा है कि जब वह मौके पर पहुंचा तो नरकंकाल बरामदगी के लिए खोदाई चल रही थी। सीबीआइ ने कहा था कि अभियुक्त की निशानदेही पर खोपड़ी, हड्डियां व कंकाल बरामद हुए। लापता लड़की के मोबाइल फोन में कोली का सिम मिला।

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